तिब्बत के तकलाकोट (बुरंग शहर ) से कुछ किलोमीटर दूर स्थित हैं लाल रंग का एक मंदिर। कैलाश मानसरोवर के लिपुलेख मार्ग के यात्रियों को जब भारतीय क्षेत्र मे एक सप्ताह के पैदल ट्रेक करके पैदल ही भारत चीन बॉर्डर पार कराई जाती हैं तो इस दुर्गम ट्रेक की थकान को तिब्बत के तकलाकोट मे ही मिटाई जाती हैं। कई दिनों तक बिना इंटरनेट,कॉल और अन्य लोगो के हस्तक्षेप से दूर रहने के बाद यात्रियों को तकलाकोट मे ही इंटरनेट मिलता हैं।ये जगह और लिपुलेख से यहाँ का रोड कोई स्वर्ग से कम नहीं हैं। खैर,इस जगह के बारे मे लिखने को बहुत कुछ हैं ,जिसका पूरा एक चेप्टर 'चलो चले कैलाश' किताब मे मेने लिखा हैं।
इस मंदिर को भारतीय लोग 'खोचारनाथ मंदिर ' बोलते हैं। इसके अंदर एक बड़ी सी देव प्रतिमा मिलती हैं जिसके दोनों तरफ थोड़ी छोटी प्रतिमाये मिलती हैं। हम लोग इसे राम लक्ष्मण और सीता जी की प्रतिमा बोलते हैं। माना जाता हैं ,सीता जी धरती की गोद मे समाने के बाद स्वर्ग मे जाने के लिए कैलाश पर्वत का यह पवित्र मार्ग ही अपनाया था और इसी जगह पर वो धरती से स्वर्ग जाने के लिए प्रकट हुए। इसीलिए यहाँ सीता जी की मूर्ति लगायी गयी एवं इन्हे पूजने के लिए यहाँ राम लक्ष्मण की मूर्ति भी तिब्बती धर्मगुरुओं ने साथ मे लगायी।
यह भी पढ़ेंः श्री राम को खोजने के लिए भारत के राम सर्किट का सफर कर लिया, हाथ लगा खज़ाना
इस मंदिर को तिब्बत मे खोरजाक मोनेस्ट्री बोलते हैं। यह मंदिर /मोनेस्ट्री कई ब्लॉक मे विभाजित हैं ,जिसमे तिब्बत के कई देवी देवताओं की कहानिया मूर्तरूप और तस्वीरों से बताई गयी हैं।इन कहानियों पर डिटेल मे चर्चा के लिए वहा कोई नहीं मिलता क्योकि उधर के लोग ना तो हिंदी समझते हैं ना ही अंग्रेजी। तिब्बती क्षेत्र मे हम लोग शॉपिंग के लिए हम लोग कैलकुलेटर का इस्तेमाल करते थे। इसी मोनेस्ट्री /मंदिर मे एक लम्बी अँधेरी सुरंग भी मौजूद हैं जिसमे से गुजरना पवित्र माना जाता हैं। सुरंग मे काफी अँधेरा होने से आगे का रास्ता नहीं दिखायी देता और कई बार मुड़ाव पर यात्री दिवार से टकरा जाते हैं। यहाँ कई तिब्बती पर्यटक कैलाश यात्रियों के साथ फोटो खिचवा कर ले जाते हैं।
यह भी पढ़ेंः इस स्थान पर घटित घटना की वजह से अयोध्या के भगवान राम को भोगना पड़ा था 14 साल का वनवास
आसपास बर्फीली वादियों से घिरा यह मंदिर हमेशा से शांति का प्रतिक रहा हैं।
कैसा लगा आपको यह आर्टिकल, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।
अपनी यात्राओं के अनुभव को Tripoto मुसाफिरों के साथ बाँटने के लिए यहाँ क्लिक करें।
बांग्ला और गुजराती के सफ़रनामे पढ़ने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें।