मध्यमहेश्वर यात्रा का सारांश (Summary of Madhyamaheshwar Journey)

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मध्यमहेश्वर यात्रा का सारांश (Summary of Madhyamaheshwar Journey)

Photo of मध्यमहेश्वर यात्रा का सारांश (Summary of Madhyamaheshwar Journey) 1/1 by Abhyanand Sinha

जब हम पहली बार केदारनाथ गए थे तभी से मन में पांचों केदार (केदारनाथ, मध्यमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर) के दर्शन करने की इच्छा हुई थी जो धीरे-धीरे फलीभूत भी हो रही है। केदारनाथ के बाद तुंगनाथ गया और फिर दुबारा भी तुंगनाथ पहुंच गया। समय के साथ आगे बढ़ते हुए दुबारा भी हमने केदारनाथ यात्रा कर लिया और उसके बाद बारी थी किसी और केदार तक पहुंचने की। दो बार केदारनाथ और दो बार तुंगनाथ के दर्शन के पश्चात हमारे कदम चल पड़े थे एक और केदार मध्यमहेश्वर के दर्शन करने। मध्यमहेश्वर यात्र का पूरा विवरण लिखने से पहले आइए पढि़ए उसी यात्रा का सारांश। हमारी यह यात्रा 27 सितम्बर 2018 की शाम को दिल्ली से आरंभ होकर 2 अक्टूबर सुबह को दिल्ली आकर समाप्त हुई। (यात्रा का आरंभिक और समाप्ति स्थल-दिल्ली)। रांसी से मध्यमहेश्वर की दूरी 18 से 20 किलोमीटर है जो पैदल ही तय करनी होती है या घोड़े द्वारा।

11.15ः ट्रेन में बैठना, साॅरी बैठना नहीं सो जाना (कहीं फिर से देहरादून न पहुंच जाए इसलिए जगे जगे रात गुजार देना)।

सुबह 3.50ः हरिद्वार पहुंचन कर ट्रेन रुकने पर बाबा को जगाना और ट्रेन से उतरना (बाबा मने बीरेंद्र बाबा, हमारे सहयात्री बीरेंद्र भैया)।

4.15ः हरकी पैड़ी पहुंचना।

5.15ः बस स्टेशन वापस आना।

6.00ः चाय बिस्किट निपटा कर तैयार।

6.15ः उखीमठ की बस नहीं मिली तो रुद्रप्रयाग के लिए गोपेश्वर की बस में बैठना।

6.45ः बस का गोपेश्वर के लिए प्रस्थान।

10.30ः देवप्रयाग पहुंचना।

दोपहर 12.45ः रुद्रप्रयाग पहुंचना और वहां पहुंचकर पता लगना कि जीप की हड़ताल और सिर चकराना और विचार करना कि चलिए बदरीनाथ निकलते हैं, लेकिन उसके बाद रांसी चलने का ही निर्णय करना।

1.00ः रांसी की बस का मिलना, फिर ये पता लगना कि बस रांसी नहीं जाएगी, केवल बोर्ड लगा है और बस रांसी से करीब 15-17 किलोमीटर पहले मनसूना तक जाएगी और बस के प्रस्थान तक चाय को निर्वाण प्राप्ति देना।

1.45ः बस का मनसूना के लिए प्रस्थान

4.15ः उखीमठ पहुंचना और 45 मिनट बस का वहीं खड़े रहना।

4.45ः बस का उखीमठ से मनसूना की तरफ चलना।

शाम 5.00ः मनसूना पहुंचना, बादलों के घूंघट में छुपे सुनहरे चौखम्भा का दर्शन और उसके बाद हरेंद्र खोयाल जी (रांसी ग्राम निवासी) से मिलना और रवींद्र भट्ट जी (रांसी ग्राम निवासी) और हरेंद्र जी के सहयोग से जीप का इंतजाम।

रात 7.00ः रांसी पहुंचना और वहां जाते ही अशोक भट्ट जी द्वारा कमरे के बारे में बताना कि वो कमरा आपका है और उसके बाद रवींद्र भट्ट जी से मुलाकात।

9.00ः पेट पूजा (पेट पूजा से पहले कटे चांद पर हाथ साफ करना, इस बार पहाड़ की चोटी से नहीं, पेड़ के झुरमुटों से)।

11.00ः नींद माता की शरण में।

सुबह 4.30ः जागना और बीरेंद्र भैया को झोल झोल कर जगाना।

5.50ः रांसी से मध्यमहेश्वर के लिए प्रस्थान (पैदल यात्रा)।

6.15ः चौखम्भा के प्रथम दर्शन।

8.10ः गोंडार पहुंचना और चाय पीना।

8.30ः गोंडार से आगे के लिए चलना।

10.30ः खडारा चट्टी पहुंचना और चाय पीना।

11.45ः नानू चट्टी पहुंचना और चाय-मैगी का लुत्फ उठाना।

12.30ः नानू चट्टी से आगे की तरफ प्रस्थान।

1.45ः मैखम्भा चट्टी पहुंचना और दुकान वाले के आग्रह पर खिचड़ी खाना, जब तक खिचड़ी बनी तब तक वहीं चटाई बिछाकर नींद की खुमारी में डूबना।

2.45ः मैखम्भा चट्टी से आगे बढ़ना।

3.30ः कून चट्टी पहुंचना और दो मिनट बैठने के बाद चलते रहना और इसके आगे इंद्रदेव का प्रकोप झेलना और इंद्रधनुष देखना।

शाम 5.15ः मंदिर तक पहुंचना और कमरा लेना और आधा-आधा लीटर चाय को निपटाना और कुछ देर आराम और आस-पास घूमना।

6.30ः आरती में शामिल होना।

रात 8.00ः खाना खाकर नींद माता की शरण में।

10.30ः नींद खुलना और करीब दो घंटे बेचैनी में रात गुजारना और फिर नींद माता के आंचल में छुप जाना।

4.45ः जागना और फिर वही कहानी कि बीरेंद्र बाबा को हिला-डुला कर जगाना।

5.15ः बूढ़ा मध्यमहेश्वर के लिए निकलना और रास्ता भटकते हुए वहां तक पहुंचना।

7.45ः बूढ़ा मध्यमहेश्वर से वापसी।

8.30ः मंदिर तक पहुंचना फिर ठंडे पानी में नहाना।

9.30ः रुद्राभिषेक, पूजा आदि विधियों में शामिल होना।

11.00ः चाय (आधा लीटर) के साथ पराठे का भोग (एक पराठे का वजन 4 के बराबर)।

1.30ः मैखम्भा चट्टी (यहां से बीरेंद्र बाबा का नंदा देवी एक्सप्रेस की गति से आगे चले जाना और हमारा मसूरी एक्सप्रेस बन जाना)।

2.00ः नानू चट्टी और इसके आगे एक जगह लुढ़कने का मजा लेना जिसके कारण पीठ में चोट जबरदस्ती लगी।

3.00ः खडारा चट्टी, इसके आगे मेरे पीछे आ रहे दो लोगों को हमारे साथी बीरेंद्र जी के बारे में पूछना, वो आगे चले गए बताने पर उनको खूब सुनाना कि इससे अच्छा तो आप अकेले आते।

3.00ः बीरेंद्र बाबा का एक जगह बैठे दिख जाना, उन्होंने हाथ इसे ईशारा किया तो मेरा मन किया कि कैमरा फेंक कर मार दूं, पर कैमरा अपना था इसलिए नहीं मारा।

4.30ः गोंडार गांव पहुंचना।

6.30ः झरनों का आनंद लेते हुए तथा अपने आप को घसीटते हुए जंगलों को अंधेरे पार करने के बाद पक्की सड़क पर आना। जल्दी जल्दी जंगलों को पार करने के कारण तेज चलते रहने पर पैर में बड़े-बड़े फोले पर पड़ जाना।

7.15ः रांसी पहुंचना और थकान के कारण पक्की सड़क पर भी डेढ़ किलोमीटर का सफर पांच किलोमीटर के बराबर लगना।

8.30ः भोजन देवता का आवाहन लेकिन थकान के कारण बाबाजी (बीरेंद्र भैया) भूखे सोए।

10.30ः जय हो निंदिया माई की, मतलब कि नींद माता के आंचल में छुप जाना।

5.00ः जागना और 6 बजे बीरेंद्र जी को झोल-झाल कर जगाना, अशोक भट्ट जी का एक ट्रेवलर वाले से बात करना कि मेरे दो भाई को हरिद्वार लेते जाओ।

6.45ः ट्रेवलर का हरिद्वार की तरफ प्रस्थान।

7.50ः उखीमठ पहुंचना (मनसूना से उखीमठ तक चौखम्भा का ऐसा दृश्य दिखा कि बिल्कुल मन उसी में खोया रहा, एक बार उखीमठ से मनसूना के बीच पैदल यात्रा जरूर करूंगा)।

9.45ः रुद्रप्रयाग बाइपास से गुजरना।

दोपहर 12.00ः देवप्रयाग पहुंचना।

शाम 4.30ः हरकी पैड़ी, फिर वाधवा जी से मिलना और वाधवा जी को मेरा बैग उठाकर मस्ती में चल देना और पंकज शर्मा जी से मिलन, चाय नाश्ता और हरकी पैड़ी पर ही 9.15 तक गंगा मैया से संवाद।

रात 9.15ः होटल की तरफ बढ़ना (रघुवंशी होटल रेलवे स्टेशन के पास), मस्त खाना मिला, जितना खाना है खाओ, जो खाना है खाओ पैसे उतने ही लगेंगे और हमारे पैसे अमेरिका वाले बाबा जी मतलब कि वाधवा जी देंगे।

10.30ः हरिद्धार बस स्टेशन पहुंचना।

10.45ः हरिद्वार से बस का प्रस्थान।

सुबह 3.30ः दिल्ली पहुंचना।

4.00ः घर पहुंचकर नींद माता की जय करते हुए सुबह तक के लिए गहरी निद्रा में।

मध्यमहेश्वर कथा संपन्नः भवति।