भारत वो देश है जहाँ आपको हर थोड़ी दूर पर कुछ अलग दिखाई देगा। हमारी अनेकता में एकता की मिसाल केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में दी जाती है। यहाँ के लोगों की बोली, उनका पहनावा और उनके रहने के तरीके से लेकर खाना खाने और बनाने की विधि तक हर चीज में विविधता दिखाई देती है। इसी वजह से भारत के हर हिस्से की अपनी अलग पहचान है। अलग-अलग दिशाओं के राज्य एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। लेकिन अगर हम भारत के उस हिस्से की बात करें जहाँ प्राकृतिक और सांस्कृतिक के साथ-साथ आधुनिकता ने भी बढ़िया तरीके से अपनी जगह बनाई है तो उसमें सबसे पहला जिक्र दक्षिण भारत का आएगा।
दक्षिण भारत के राज्यों में आपको गजब की हरियाली देखने के लिए मिलेगी। इन राज्यों में बढ़ते टूरिज्म की वजह से यहाँ विकास की गति भी हमेशा से काफी तेज रही है। लेकिन अच्छी बात ये है कि मॉडर्न होने की दौड़ में होते हुए भी इन राज्यों ने अपने कल्चर और नेचर दोनों का खास ख्याल रखा है। केरल में आपको जितनी आधुनिक सुख सुविधाएं मिलेंगी उतना ही रिच कल्चर भी मिलेगा। एक तरह से ये पूरा राज्य ही प्रकृति और संस्कृति को मिलाकर बनाया गया है। केरल के सभी शहरों में आपको बढ़िया टाउन प्लानिंग के साथ-साथ हरियाली का भंडार भी मिलेगा। जब मॉडर्न कल्चर और पारंपरिक कल्चर का समागम होता है तब वो नजारा बेहद खूबसूरत होता है। ऐसी ही खूबसूरती को दर्शाता है केरल ये शहर त्रिशूर।
त्रिशूर
क्या आप जानते हैं त्रिशूर इस इलाके का सबसे पुराना प्लान किया गया शहर है? खैर अगर आप ये बात नहीं भी जानते हैं तो बता दें त्रिशूर को केरल की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि त्रिशूर में कल्चर और आर्ट का बड़ा खजाना देखने के लिए मिलता है। खासतौर से ये जगह त्रिशूर पूरम के लिए जानी जाती है जो इस इलाके का सबसे लोकप्रिय और बड़ा फेस्टिवल भी है। स्वर्ण जड़ित हाथियों, आतिशबाजियों, रंगारंग कार्यक्रमों से सजा ये फेस्टिवल किसी महोत्सव से कम नहीं होता है।
त्रिशूर 65 एकड़ की पहाड़ी पर स्थित है जिसे थेक्किंकड मैदानम कहा जाता है। पहाड़ी पर वादक्कुमनाथ मंदिर है। त्रिशूर पूरम का आयोजन इसी मैदान पर किया जाता है। ये मैदान सभी तरफ से स्वराज राउंड से घिरा हुआ है जिसकी वजह से देखने में ये जगह किसी बड़े गोल की तरह लगती है। लगभग पूरा शहर ही गोलाई में बनाया गया है। स्वराज राउंड के बाहर आउटर रिंग रोड चलती है। शहर के इस डिजाइन की वजह से त्रिशूर में ट्रैफिक लगभग ना के बराबर मिलता है। पूरे शहर को अलग-अलग ब्लॉक्स में बांटा गया है जो इसके रख-रखाव में बहुत मदद करता है। क्योंकि पूरे शहर की रचना ही गोलाकार ढंग से की गई है, ऊँचाई से देखने में ऐसा लगता है कि सभी लोग एक पैटर्न में चल रहे हैं।
क्या देखें?
केरल को प्राकृतिक सुंदरता का खजाना कहा जाता है। इसलिए अगर कोई भी जगह केरल में स्थित हो आपको समझ जाना चाहिए कि वहाँ देखने के जगहों और करने के लिए चीजों की कमी नहीं होगी।
1. परमेकवु भगवती मंदिर
त्रिशूर का ये मंदिर वैष्णवी देवी को समर्पित है और ये राज्य का सबसे बड़ा मंदिर है जिसमें पीठासीन देवी हैं। देवी वैष्णवी को दुर्गा मां का ही रूप माना जाता है। इस मंदिर का ढांचा इतना आधुनिक और नायाब है कि आपको विश्वास नहीं होगा की इस मंदिर को बने 1000 साल से भी ज्यादा का समय हो गया है। मंदिर में आने के लिए आपको समय का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। ये मंदिर केवल सुबह 4 बजे से शाम 4 बजे तक ही भक्तों के लिए खुला रहता है। इसके अलावा इस मंदिर की एक बात और है जो इसे बेहद खास बनाती है। त्रिशूर पूरम में इस मंदिर की खास भूमिका रहती है। पूरम परेड की शुरुआत इसी मंदिर से होती है जो यहाँ से निकलकर वड़दक्कुमनथन मंदिर तक जाती है। इस परेड में 15 हाथियों के झुंड के साथ-साथ मेलम वादकों की टोली भी शामिल रहती है।
2. केरल कलामंडलम
केरल कलामंडलम को दक्षिण भारत की कला और संस्कृति के संरक्षण और शिक्षा को संजोने और बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था। ये एक शैक्षिक संस्थान है जिसकी स्थापना महान कवि वल्लातोल नारायण मेनन और उनके साथी मुकुंद राजा ने 1930 में की थी। इस संस्थान को बनाने के लिए सार्वजनिक फंड की मदद ली गई थी। केरल कलामंडलम को बनाने का मुख्य मकसद केरल के विलुप्त हो रहे आर्ट और संस्कृति को संजोना था। इसके बाद कोचीन के महाराजा और बाद में केरल सरकार ने भी इस जगह के संरक्षण में मदद की। इन सभी वजहों से आज ये जगह त्रिशूर के सबसे फेमस और लोकप्रिय जगहों में से है। अगर आप पारंपरिक केरलाई संस्कृति और कला के बारे में जानना चाहते हैं तब आपको ये जगह खूब पसंद आएगी।
3. डोलर्स बेसिलिका
लगभग 2500 वर्ग फुट में फैले इस चर्च को त्रिशूर की शान कहा जाता है। डोलर्स बेसिलिका का ढांचा इंडो-गोथिक स्टाइल में बनाया गया जिसकी वजह से चर्च देखने में बेहद सुंदर लगता है। ये चर्च एशिया का तीसरा और दो मंजिला गलियारों वाला देश का सबसे बड़ा चर्च है। चर्च का गुंबद इतना ऊँचा है कि इसे परमेकवु भगवती मंदिर से भी देखा जा सकता है और मंदिर से चर्च आने में केवल 10 मिनट का ही समय लगता है। बेसिलिका के ठीक पीछे बाइबल टॉवर है जिसे आपको देख लेना चाहिए। टॉवर के ऊपर से आसपास के इलाकों का बेहद मोहक नजारा दिखाई देता है जो आपका दिल खुश कर देगा। बेसिलिका की दीवारों पर खूबसूरत पेंटिंग की गई है और साथ में बाइबल के कुछ हिस्सों को भी लिखा गया है।
4. शक्तन तम्पुरन महल
त्रिशूर में घूमने के लिए बहुत सारी जगहें हैं। लेकिन शक्तन तम्पुरन महल ऐसी जगह है जो हर तरह के घुमक्कड़ को पसंद आएगी। इस महल का निर्माण कोचीन के राजा शक्तन तम्पुरन ने 18वीं शताब्दी में करवाया था। इस महल का आर्किटेक्चर देखकर आपको लगेगा ही नहीं आप भारत में बनी किसी जगह को देख रहे हैं। महल की बनावट केरल की नालुकेट्टु और डच आर्किटेक्चर को ध्यान में रखकर की गई है। सफेद रंग में चमकते इस महल को साल 2005 में संग्रहालय में बदल दिया गया था जिससे आम लोग भी इस जगह की भव्यता को देख सकें। महल के गलियारों में पीतल से बनी कलाकृतियाँ, ग्रेनाइट की मूर्तियाँ, पुराने सिक्के का कलेक्शन, कोच्चि राजवंश के जरूरी कागजों को प्रदर्शित किया गया है। इसके अलावा महल के ठीक बाहर एक हेरिटेज गार्डन भी बनाया गया है जहाँ आप केरल के कुछ विचित्र पौधों और पेड़ों को देख सकते हैं।
5. मैरोथिचल झरना
वॉटरफॉल देखना हमेशा सुखदायी होता है। त्रिशूर में घूमने के लिए सबसे लोकप्रिय स्थानों में से एक है मैरोथिचल झरना जो मुख्य शहर से लगभग 20 किमी. की दूरी पर है। इस झरने की सबसे अच्छी बात ये है कि ये हरे-भरे जंगलों के बीच स्थित है जिससे इसका सौंदर्य और भी निखार जाता है। हरियाली के बीच से निकलता हुआ ये झरना किसी सफेद लकीर जैसा लगता है जिसके नीचे डुबकी लगाने के लिए एक प्राकृतिक पूल भी है। अगर आप त्रिशूर के मंदिरों को देखते-देखते थक गए हैं तो ये झरना आपको तरोताजा कर देगा। एक दिन की छोटी पिकनिक मानने के लिए त्रिशूर में सबसे बढ़िया जगह यही है।
6. त्रिशूर जूलॉजिकल पार्क और राज्य संग्रहालय
त्रिशूर के चिड़ियाघर को भारत के सबसे पुराने जूलॉजिकल उद्यानों में गिना जाता है। 13.5 एकड़ जमीन पर बनी ये जगह आपको बाकी चिड़ियाघरों जैसी ही लगेगी लेकिन सिर्फ तबतक जबतक आप यहाँ के मुख्य आकर्षण तक नहीं पहुँचते हैं। इस चिड़ियाघर में हाथी का एक बड़ा कंकाल है जिसको भारत का सबसे बड़ा कंकाल का ढांचा होने का खिताब मिला हुआ है। चिड़ियाघर में आप शेर, चीते, हिप्पो, स्लोथ, हिरण जैसे जानवरों को देख सकते हैं। इसके अलावा इस चिड़ियाघर में एक प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय भी है जहाँ आप आर्ट और पौधों के बारे में जानकारी ले सकते हैं। अगर आप बच्चों के साथ त्रिशूर आने का प्लान बना रहे हैं तो इस जगह को अपनी लिस्ट में जरूर रखना चाहिए।
7. गुरुवायूर श्री कृष्ण मंदिर
गुरुवायूर मंदिर का नाम भारत के सबसे पुराने और बड़े मंदिरों में शुमार है जिसके 16वीं में भी होने की बातें कहीं जाती हैं। इस मंदिर में भगवान विष्णु श्री कृष्ण के अवतार में हैं इसलिए हिन्दुओं के लिए इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है। चाहे आपको मंदिरों को देखने में कम रुचि हो लेकिन अगर आप त्रिशूर आ रहे हों तो इस मंदिर को देखना बिल्कुल नहीं भूलिएगा। मंदिर में भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार को पूरे राजसी रूप में दिखाया गया है जिसकी वजह से इसको दक्षिण भारत के द्वारका के नाम से भी कहा जाना जाता है। ये मंदिर कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा यहाँ मिलने वाली भीड़ को देखकर लगाया जा सकता है। मंदिर में जाने के लिए आपको इंतज़ार करने के साथ साथ लंबी लाइनों में भी लगना पड़ सकता है। खास बात ये है कि इस मंदिर में ड्रेस कोड का पालन पूरी सख्ती के साथ किया जाता है। इसलिए अगर आप यहाँ आने का प्लान कर रहे हैं तो पहले से पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए।
8. चवक्कड बीच
अगर आप भारत के सबसे साफ समुद्री किनारों की सूची बनाएंगे तो त्रिशूर की चवक्कड बीच का नाम उस लिस्ट में जरूर शामिल होगा। अरब महासागर के तट पर बनी ये बीच वेस्टर्न घाट की सबसे साफ बीचों में से है। ये बीच खासतौर से स्थानीय नदी का मुहाना होने की वजह से प्रसिद्ध है इसलिए यहाँ लोगों की भी अच्छी भीड़ रहती है। गुरुवायूर मंदिर के पास बनी इस बीच पर ज्यादातर स्थानीय मछुआरे ही दिखाई देते हैं। ये बीच मुख्य शहर से बहुत ज्यादा दूर नहीं इसलिए बहुत सारे परिवार भी यहाँ पिकनिक मनाने के लिए आना पसंद करते हैं।
9. तिरुवम्बाड़ी कृष्ण मंदिर
कम शब्दों में कहें तो अगर आप भगवान कृष्ण को मानते हैं तो ये मंदिर आपको स्वर्ग से कम नहीं लगेगा। कहा जाता है इस मंदिर के पीछे बहुत सारी कहानियाँ और लोक गाथाएँ हैं जिनकी वजह से आज भी इस मंदिर की लोकप्रियता बनी हुई है। तिरुवम्बाड़ी कृष्ण मंदिर उन दो मंदिरों में से है जो त्रिशूर के पूरम उत्सव में मुख्य भागीदारी करते हैं। चमकीले रंगों और आतिशबाजियों से सजे इस फेस्टिवल को यूनेस्को द्वारा ग्रह का सबसे शानदार त्यौहार होने का गौरव भी मिला हुए है।
कब जाएँ?
वैसे तो आप साल के किसी भी समय त्रिशूर की यात्रा पर आ सकते हैं लेकिन यहाँ के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी के बीच होता है। इस समय त्रिशूर में ना ज्यादा गर्मी होती है और ना ज्यादा ठंड। इसके अलावा अप्रैल और मई के महीनों में त्रिशूर आने से बचना चाहिए। साल का ये समय उमस और चटक गर्मी से भरा होता है जिसकी वजह से आपका घूमने का सारा मजा किरकिरा हो जाएगा। लेकिन खास बात ये है कि त्रिशूर का सबसे लोकप्रिय फेस्टिवल भी इन्हीं महीनों के आसपास मनाया जाता है। अगर आपको गर्मी से ज्यादा परेशानी नहीं होती है तो आपको बेशक इस फेस्टिवल के समय त्रिशूर आना चाहिए।
कैसे पहुँचें?
त्रिशूर आने के लिए आपके पास कई विकल्प हैं। आप फ्लाइट, ट्रेन या बस तीनों के जरिए आसानी से त्रिशूर आ सकते हैं।
फ्लाइट से: त्रिशूर में कोई एयरपोर्ट नहीं है। इसलिए अगर आप फ्लाइट से आने का मन बना रहे हैं तो उसके लिए आपको पहले कोचीन आना होगा। कोचीन का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा त्रिशूर से सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है जो 52 किमी. की दूरी पर है। कोचीन के लिए आपको देश के सभी शहरों से आसानी से फ्लाइट मिल जाएंगी इसलिए आप बिना किसी परेशानी के यहाँ पहुँच सकते हैं। कोचीन से आप बस, ट्रेन या शेयर टैक्सी लेकर त्रिशूर आ सकते हैं।
ट्रेन से: त्रिशूर रेलवे स्टेशन केरल के सबसे व्यस्त स्टेशनों में से है। त्रिशूर देश की बाकी जगहों से अच्छी तरह जुड़ा हुए है इसलिए आपको ट्रेन मिलने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
बस से: त्रिशूर में सड़कों का बढ़िया नेटवर्क है जो इसे पास की सभी जगहों और बाकी राज्यों से अच्छी तरह जोड़े रखता है। अगर आप सड़क के रास्ते त्रिशूर आना चाहते हैं तो उसमें भी आपको कोई परेशानी नहीं आएगी। आप अपनी गाड़ी, शेयर टैक्सी या केरल राज्य पर्यटन की बस से त्रिशूर आ सकते हैं।
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