इस पोस्ट को मैं हिंदी में लिखने का प्रयत्न इसलिए कर रहा हूँ , क्योंकि यह पोस्ट भारत देश से जुड़ी हुई है। हालांकि इस ब्लॉग पर लिखी और कहानियाँ भी भारत से जुडी हैं, पर मेरा उद्देशय इस पोस्ट के द्वारा अपनी राष्ट्रभाषा से जुड़ना भी है। वह दोपहर का समय था जब मैंने अपने परिवार के साथ संजय म्यूजियम में प्रवेश किया। एक तरफ जहाँ म्यूजियम के गेट के बाहर रंग-बिरंगे पोशाखों में सजे ऊँट अपनी सवारी की प्रतीक्षा कर रहे थे वहीं दूसरी ओर मान सागर के शिथिल जल के ऊपर जल महल की साफ़ परछाई बिखरती हुई दिख रही थी। मुझे थोड़ा भी ज्ञान नहीं था की आज मेरी भेंट मेरे धरोहरों से होने वाली है।
संजय म्यूजियम का इतिहास
संजय म्यूजियम का इतिहास चाहे एक शतक पुराना ही क्यों ना हो, किन्तु इसके अंदर छिपी हुई कहानियाँ सदियों पुरानी हैं। शायद किसी ने आज तक इतिहास की तहों तक जाकर उसको इतनी सच्चाई से जानने की कोशिश नहीं की है,जितना की इस म्यूजियम के सूत्रधार तथा स्नस्थापक श्री राम कृपालु शर्मा ने की है। इस म्यूजियम का नाम श्री राम कृपालु के छोटे सुपुत्र संजय शर्मा के नाम पर 1982 में उनकी अकाल मृत्यु के बाद रखा गया। 1954 में स्थापित किए गए इस म्यूजियम में 1,00,000 से भी अधिक हस्तशिल्प हैं जो पुरातन भारत की शायद एक मात्र धरोहर है। 40 साल के इस अद्भुत यात्रा में आज के भारत के लिए बहुत से ऐसे सन्देश हैं, जिन्हे सिर्फ जानने की नहीं, अपनाने की भी ज़रूरत है।
क्या रहस्य है इन दीवारों के पीछे?
संजय म्यूजियम के कॉपीराइट्स के कारण मैं म्यूजियम के अंदर के चित्र तो नहीं ले पाया, पर उसकी दीवारों के पीछे की अनोखी कहानियाँ अब भी मेरे साथ हैं। सबसे पहले म्यूजियम की लॉबी में गाइड ने हमारा स्वागत किया। दुबली पतली सी कद काठी वाला ये गाइड अपने आप में चलती फिरती इतिहास की किताब था। एक समतल स्वर में बोलता हुआ वो ऐसा लगता था, मानो उसे इतिहास से वर्तमान में सत्य का विवरण करने के लिए भेजा गया हो।
संजय म्यूजियम की लॉबी में कुछ वक़्त निकालने के बाद गाइड सभी आगंतुकों को म्यूजियम के अंदर के गलियारे की तरफ जाने का निर्देश देता है। उस गलियारे की दोनों दीवारों पर विशालकाय और अद्भुत डिज़ाइन के चित्र लगे हुए थे जिनको एक नज़र में समझना मुश्किल था।
खेल- खेल में मोक्ष
हम सभी ने अपने बचपन में साँप सीढ़ी तो ज़रूर खेला होगा लेकिन इस खेल का हमारे जीवन से बहुत गहरा सम्बन्ध है। साँप सीढ़ी खेल का जन्म 13वी शताब्दी में संत ज्ञानदेव द्वारा किया गया था। साँप सीढ़ी का असली नाम मोक्षपत या मोक्षपतम भी है। 1 से लेकर 100 तक के खाने वाले इन साँप और सीढ़ियों की श्रृंखलाओं में हर साँप और सीढ़ी का अपना महत्त्व है। हर अंक पर रखी साँप या सीढ़ी मनुष्य का कोई ना कोई गुण दर्शाती है;
जैसे की - 12 अंक आस्था, 51 अंक विश्वसनीयता, 57 उदारता, 76 ज्ञान तथा 78 अंक वैराग्य को दर्शाता था। इसी प्रकार साँप वाले अंकों का भी महत्व है। 41- अवज्ञा, 44- अहंकार, 49- असभ्यता, 52- चोरी, 58- मिथ्या, 62- मद्य, 69- उधारी, 73- हत्या, 84- राग, 92- लालच, 95- गौरव, और 99- काम प्रवृत्ति को दर्शाता है। मनुष्य को अपने जीवन में इन गुणों पर विजयी होते हुए मोक्ष की तरफ बढ़ना होता है। यही हर मनुष्य का गंतव्य है। 100 की प्राप्ति का अर्थ है - मोक्ष
मूल शब्दों में साँप मनुष्य के अवगुण तथा सीढ़ियाँ सद्गुणों को दर्शाती हैं और अच्छे कर्म मनुष्यों को मोक्ष की तरफ तथा बुरे कर्म मनुष्य को पृथ्वी पर पुनर्जन्म की ओर ले जाते हैं। एक सहज सा खेल जीवन के कितने गूढ़ रहस्य को छिपाये हुए था, जिसको समझने में मेरे जीवन का आधा समय निकल गया।
चक्रों का रहस्य
संजय म्यूजियम हॉल के गलियारे के दोनों तरफ कई विशाल कमरे बने हुए हैं, जिनके अंदर कई पौराणिक लिपियाँ, चित्रकलाएँ, और ग्रन्थ रखे हुए हैं। इन रहस्य से भरे चित्र और आकृतियों को देखते हुए मेरी नज़र एक ऐसी पेंटिंग पर पड़ी जिसे मैं शायद तुरंत समझ गया, शायद ऐसा मुझे लगा कि मैं समझ गया हूँ. शायद नहीं।
जब पहली बार मैंने उस चित्र को देखा तो वह मानव शरीर की केवल एक रचना नज़र आ रही थी.पर मुझे इस रचना की पूरी अनुभूति अभी नहीं हो पायी थी। हम सभी ने मनुष्यों के केवल 7 चक्रों के बारे में सुना होगा। मुझे झटका तब लगा जब गाइड ने 7 नहीं 114चक्रों का विवरण किया। 114 चक्रों की ये श्रृंखला 72000 नाड़ियों से होकर गुज़रती है। मानव शरीर का इतना अद्भुत ज्ञान भारत देश की धरोहरों के अलावा और किसी भी देश में उपलब्ध नहीं है, क्या यह भारत के लिए एक गौरव का विषय नहीं?
गाइड आगे रहस्यों के पन्नो को उलटता रहा था और मैं अविश्वास से केवल मुँह खुला रखकर इन तथ्यों को सुन सकता था। गाइड के अनुसार हमारे विशुद्धि चक्र यानि गले में वास कर रहे चक्र पर शनिदेव यानि मृत्यु का अधिकार होता है। साधारण मनुष्य का जीवन यहीं से समाप्त होता है। जो मनुष्य योग द्वारा अपनी विशुद्धि चक्र को उजागर कर लेता है, उसका जीवन तथा मृत्यु यमलोक के दायरे से बाहर हो जाता है और मनुष्य खुद अपने देहत्याग पर नियंत्रण कर सकता है। शायद यही कारण है कि कई वर्षों से तप कर रहे योगी स्वयं समाधि का मार्ग ले सकते हैंष यह मेरे लिए एक अविकल्पनीय रहस्य था, शायद आप के लिए भी हो।
हस्तलिपियों का ग्रंथालय
संजय म्यूजियम के उस गलियारों में अभी और भी रहस्य बाकी थे। रहस्यों की इस अद्भुत यात्रा को तय करता हुआ मैं एक ऐसे कमरे में पहुँचा जहाँ केवल अलमारियाँ ही अलमारियाँ थी। इन अलमारियों के अंदर रखी थी कई वर्षों पुरानी भारतीय सभ्यता की धरोहर जिनको एक जीवन में जानना और समझ पाना शायद मेरे लिए नामुमकिन है। मेरे प्रश्न जैसे आज रुक नहीं रहे थे, ऐसा लग रहा था मैं अभी अभी पैदा हुआ हूँ, और मुझे कुछ भी इतने सालों में पता नहीं था।
इस ग्रंथालय के अंदर 16 भारतीय भाषाओँ में तथा 180 विषयों पर लगभग 1लाख 25000 ग्रन्थ संभल कर रखे गए हैं। ऐसे अद्भुत ज्ञान से भारत क्यों आज तक अनभिज्ञ है, इस प्रश्न का उत्तर तो शायद मेरे पास नहीं है, पर ये ज़रूर है की भारत एक ऐसी सभ्यता है, जिसने संसार के सबसे ऊँचे ज्ञान पर सिद्धि प्राप्त की है, और वह है, स्वयं का ज्ञान। संसार के इस ज्ञान से परे ना कुछ था, ना है, और ना कभी होगा।
इस एक पोस्ट से संजय म्यूजियम इस रहस्य्मय यात्रा को पूरा कर पाना तो मुश्किल है, और ऐसा करना शायद इस अद्भुत धरोहर का अपमान होगा। इसकी परतों में छुपे हुए बाकी रहस्यों को मैं एक और सफर के लिए छोड़ता हूँ, क्योंकि शायद एक यात्रा किसी के भी सवाल का पूरा जवाब नहीं देगी। यहाँ के बाकी रहस्यों को ढूंढना मैं आप पर छोड़ता हूँ। शायद आपकी यात्रा कुछ और नए रहस्यों को उजागर करे!
संजय म्यूजियम में किसी भी प्रकार से तस्वीरें खींचने की अनुमति नहीं है. पर किसी भी विषय पर जानकारी प्राप्त करने के लिए उनको ईमेल किया जा सकता है. अगर आप भारत के और भी ऐसी अद्भुत रहस्यों के बारे में जानना चाहते हैं, तो info@sanjaymuseum.com पर ईमेल लिख कर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. पर मेरा सुझाव यही है, की इतनी अद्बभुत अनुभूतियों को जब तक समक्ष देखा न जाये, तब तक यह एक अधूरी कोशिश होगी.
अगर आप भी ऐसी जगहों के बारे में जानते हैं और वहाँ की यात्रा की है तो अपना अनुभव यहाँ लिखें।
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