नैनीताल से आगे, ताल और भी हैं...

Tripoto
18th Dec 2018

30 दिसम्बर 2017, साल की पूर्व संध्या से एक दिन पहले का दिन... पुरानी दिल्ली से ट्रेन में बैठते हुए हमने नहीं सोचा था कि 2017 की अंतिम सुबह हमें आश्चर्यबोध से भर देगी। दिल्ली से ट्रेन के गन्तव्य तक की दूरी तो नींद की आगोश में ही गुजर गई। लेकिन जब ट्रेन रुकी और चहल-पहल की आवाज़ से नींद खुली, तो हम भी बाहर निकले। बाहर आते ही सामने जो नजारा दिखा उस अप्रतिम प्राकृतिक छटा के अहसास को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। यूं तो उस स्टेशन का नाम काठगोदाम था, लेकिन वहां की छटा देखते हुए उसे प्रकृति के नौसर्गिक सौंदर्य का गोदाम कहना गलत नहीं होगा।

Photo of नैनीताल से आगे, ताल और भी हैं... 1/3 by Niranjan Kumar Mishra

काठगोदाम स्टेशन पर फ्रेश होने के बाद स्टेशन से बाहर आने पर हमें मंजूर आलम अपनी गाड़ी के साथ मिले, जो हमें तालों की नगरी से रूबरू कराने वाले थे। मंजूर आलम की टोयोटा सफारी, उसमें बजता मधुर पहाड़ी गीत और सामने गगनचुंबी पहाड़ो पर आच्छादित बादल के टुकड़े, क्या समां थीं। कहते हैं कि मंजिल करीब आता देखने का अहसास सफर के सुख को और बढ़ा देता है, लेकिन यहां सिर्फ सफर का ही नहीं, बल्कि पहाड़ों की गोद का भी सुख था। उस यात्रा ने यह भी बताया कि मनमोहक सफर में समय का पता नहीं चलता। गए तो थे हम, नैनी माता के पांव पखारने वाले नैनीताल और उसके किनारे पर बसे इसी ताल के नाम वाले शहर का दीदार करने लेकिन सफर के दौरान ही, मंजूर आलम से अन्य तालों और खासकर सातताल के बारे में जो जानकारी मिली, उसने इनके बारे में और जानने और सामने से देखने की लालसा और बढ़ा दी। जीवन में आदमी कम ही ऐसी यात्राएं करता है, जिनमें गन्तव्य तक पहुंचने के बाद भी शरीर थकान से कोसों दूर होता है, ये यात्रा भी कुछ वैसी ही थी। होटल से फ्रेश होने और ब्रेकफास्ट करने के बाद हम सातताल के सफर पर निकल पड़े।

Photo of नैनीताल से आगे, ताल और भी हैं... 2/3 by Niranjan Kumar Mishra

करीब 45 मिनट में हम 20-22 किमी की दूरी तय कर सातताल पहुंचे। यूं तो पूरे रास्ते नज़र आने वाले मनोरम दृश्य से ही दिल बाग़ बाग़ हो गया था, लेकिन जब सातताल में गाड़ी से बाहर निकलकर सीढियों के सहारे झील के किनारे पहुंचे तो, मुंह से अनायास ही निकल पड़ा- अद्भुत...! एक दूसरे से जुड़ीं दो झीलों के मध्य बने एक पतले पुल पर खड़े होकर चारो तरफ देखने का जो आनंद था, वो सच में अद्भुत था। हमारे साथ चल रहे मंजूर आलम ने बताया कि ऐसे तो इसे सातताल कहा जाता है, लेकिन इसमें चार झीलें ही हैं, बाकी नैनीताल केे नैनी झील के अलावा भीमताल और नकुचिया ताल अलग हैं। कहा जाता है कि जब कोई दृश्य आदमी के दिल से जुड़ जाता है, तो बाकी कोई भी बात या चिंता मन में आती ही नहीं। वो समय भी कुछ ऐसा ही था। यूं तो वहां बहुत से वाटर स्पोर्ट्स की सुविधा थी, लेकिन जो मजा झील के किनारे देवदार के जंगलों में बेहद सावधानी के साथ पेड़ों के सहारे घूमने में आया, वो शायद झील की पानी में वाटर बोट के सहारे घूमने में भी नहीं आता। हम तो उस ताल के अप्रतिम पाकृतिक सौंदर्य को अपलक निहारते ही रह जाते, अगर मंजूर आलम ने आवाज़ न दी होती कि हमें भीमताल और नकुचियाताल भी जाना है।

Photo of नैनीताल से आगे, ताल और भी हैं... 3/3 by Niranjan Kumar Mishra

करीब 10 किमी का पहाड़ी रास्ता पार कर हम भीमताल पहुंचे। मंजूर आलम ने बताया कि भीम के नामपर इसका नामकरण हुआ है। यह भी नैनीताल की तरह ही व्यवस्थित रूप से बसा एक शहर जैसा था, लेकिन इमारतें बता रही थीं कि यह नैनीताल से पुराना है। यहां भी कुछ देर झील के किनारे टहलने के बाद हम नकुचियाताल के लिए निकल पड़े, जो वहां से लगभग सात किमी दूर था। नकुचियाताल के पास ही स्थित एक जगह से पैराग्लाइडिंग के लिए हमने पहले से टिकट बुक कर रखी थी। इसलिए जल्दी से ताल घूमने के बाद उस जगह पहुंचे जहां से हमें पहली उड़ान भरनी थी, वो भी समुद्रतल से करीब चार हजार फीट की ऊंचाई से, खुले आसमान में। यह रोमांचकारी तो था ही, लेकिन जैसे ही उसके लिए शरीर में बेल्ट बांधे जाने लगे तो मन अनजाने डर से कांप उठा, पर दौड़कर हवा में उड़ान भरते ही मुंह से खुद-ब-खुद निकल पड़ा- 'आज मैं ऊपर, आसमां नीचे...' अगले दो दिनों में हमने नैनीताल में वाटर बोट का आनन्द लिया, नैनी माता के दर्शन किए, उस मंदिर में भी गए जहां विवाह फ़िल्म की शूटिंग हुई थी, घोड़ों पर चढ़कर दुर्गम पहाड़ियों की चोटी पर भी पहुंचे और 31 दिसम्बर की रात माल रोड पर टहलते हुए नए साल के स्वागत के जश्न में भी सरीक हुए, लेकिन मन में सातताल का जो अविस्मरणीय सौंदर्य बैठ गया था, वो कभी नहीं भुला जा सकता...