भोपाल.....राजा भोज का शहर....शुकुन का शहर....मुहब्बत का शहर....दोस्ती का शहर.....जंगल के बीच भागती टेढ़ी मेढ़ी सड़कों का शहर....और खूबसूरत झीलों का शहर....एक ऐसा शहर जो कभी आपको इस बात के लिए परेशान नही करेगा क्योंकि वो शहर है.....सिटी के साथ नेचर का एक अलग ही कमाल का कॉम्बिनेशन देखने को मिलता है इस शहर में। यहाँ पर गलियां तंग नही है...यहाँ एक सड़क बहुत बड़े मैदान के बीचोबीच भागती दिख जाती है जहाँ पर यदा-कदा ही लोग गुजरते हैं....ये शहर वाकई शुकुन का शहर है।
कभी आइये इस शहर तो निकल पढ़िए इस शहर को पढ़ने....इस शहर को समझने के बजाय इसे जीने....जहाँ आप इस शहर में चपटी सपाट सड़क पर भागते हुए इसकी आधुनिकता के बारे में ये सोच ही रहे होंगे कि तभी एक बहुत पुरानी बिल्डिंग आपके सामने आकर आपको इस बात का एहसास दिलाएगी कि जनाब ये शान-ए-भोपाल है। इस शहर के बीचों बीच बिछा पड़ा है एक झील जो अपने अंदर, अपने आसपास रात को अपना एक अलग ही शहर बसा लेता है.....जहाँ आपको बहुत से चहरे हंसीं और मुस्कुराहट ओढ़े मिल जाएंगे जो अमूमन हमें बड़ी मेट्रो सिटी के अंदर किसी भागती मेट्रो के डिब्बे में एक साथ घुटती ढेर सारी जिंदगियों में नही देखने को मिलती है। कभी गुजरिये किसी रात , स्ट्रीट लाइटों से चमकती उस झील किनारे वाली सड़क पर और देखिए कितनी मोहब्बत सजाए हुए संजीदे से जी रहा है ये शहर। कभी देर रात में सुनसान सड़क पर खुली चाय की दुकान पर चुस्की लेते हुए निहारिए इस टिमटिमाते शहर को और एहसास कीजिए वो सबकुछ जो बाकी के शहरों के लिए एक सपना भर होता है।
झील के बाद अगर कोई ऐसी चीज़ है जो आपको एक झटके में इस शहर का दीवाना बना दे तो वो है ''चाय''। चाय! जिसकी दुकानों पर भीड़ होती है किसी शराब के दुकान से कई ज्यादे....''चाय'' जिसकी दुकान आपको मिल जाएगी हर गली के मोड़ पर और उनकी कोई न कोई खाशियत जरूर ही होती है। ''चाय'' का नशा इस शहर के लोगों पर इस कदर सवार है की अगर कह दी जाए कि यहाँ के लोग अफ़ीम वाली चाय पीते हैं तो बुरा नही होगा.....और ये नशा हो भी क्यों नही...आखिर यहाँ की चाय कोई ऐसी वैसी चाय तो होती नही... यकीन मानिए ! चाय के दीवानों के लिए अगर कोई शहर है तो वो है भोपाल। यहाँ चाय की शॉप किसी vip कैफ़े की तरह होते हैं जिनका अपना अपना अलग ही एक डिसेंट लुक और टेस्ट है...यहाँ की चाय जितनी खास है उतनी ही आम आदमी के जेब पर बजट फ़्रेंडली भी है। बढ़िया से बढ़िया कैफे में आपको चाय 10 रुपये के स्टार्टिंग प्राइस से मिल जाएगा और यही 10 रुपये वाली चाय आपकी जीभ से होते हुए आपके सर् चढ़कर बोलने हमेशा इस शहर की याद दिलाती रहेगी...बाकी तो अपनी मर्जी है ही 100 रुपये तक की चाय भी पीजिए यहाँ। तो कभी भोपाल आना हुआ तो ''राजू टी स्टाल'', ''इंडिया टी हाउस'' या फिर '' चाय सुट्टा कैफे'' की चाय जरूर पीजियेगा। '' इंडिया टी हाउस'' के टेरिस पे बैठकर एक हाथ में एक शानदार चाय का प्याला लिए हुए झील को देखते हुए जब एक चुस्की चाय की लगाइएगा तो आपको पता चलेगा की मिठास यहाँ की चाय में ही नही बल्कि पूरे शहर में घुली हुई है। हाँ '' गुलाब फ्लेवर'' वाली चाय जरूर अजमाइयेगा एक बार। और अगर आप विरायनी लवर हैं तो ''जम-जम'' की बिरयानी जरूर खाइये। और आश्चर्य मत कीजियेगा अगर अगली बार आपको ये शहर सिर्फ चाय और बिरयानी के लिए सैकड़ों किलोमीटर दूर से खींच कर ले आये।
न न ये शहर इतना ही नही है....अगर आपको लगता है की झील और चाय के अलावा कुछ नही है इस शहर में तो आपको बस थोड़ी सी मेहनत करने की जरूरत है...शहर से 50-60km के दायरे में ऐसी बहुत सी जगहें हैं की उनतक पहुचने में तय किये गए शानदार पहाड़ी रास्तों और जंगलों के बीच बिछी शानदार सड़कों पर भागते हुए ही आपको इतना कुछ मिल जाएगा की आप कभी बोर नही हो सकते इस शहर से। ''हलाली डैम'', ''सांची स्तूप'', ''रायसेन का किला'', ''महादेव वाटरफॉल'', ''केरवा डैम'', '' 11वीं शताब्दी में बना भोजपुर का शिव मंदिर'', ''भीम- बैठका'' ऐसी बहुत सी जगहें है जो आपको भूरे चट्टानी पहाड़ों के साथ हरे भरे पेड़ का अदभुत संगम दिखाएंगी। हर एक जगह के बारे में एक बड़ा लेख लिखा जा सकता है अपने एक्सपीरियंस का।
''केरवा डैम'' पर तो आपको तितलियों का अपना एक अलग शहर मिलेगा.....एक हरियाली से भरा पहाड़ और उसके बगल से गुजरती एक नदी और उसी के किनारे दूर तक फैली हरी भरी घास पर अठेलियाँ करती पीली, नीली रंगबिरंगी तितलियाँ.....उस भूरे चट्टानी पहाड़ पर लेते लेते ये सब कुछ देखने का सुख किसी मखमली बिस्तर पर लेटने से भी ज्यादा सुख देता है....और हाँ ''केरवा डैम'' का रास्ता तो ऐसे जंगलों से गुजरता है जहां अगर आपकी किस्मत अच्छी रही तो शेर भी देखने को मिल सकते हैं....तो जरा सोचिए की एक शहर कितना कुछ समेटे हुए है खुद में....इस शहर को देखने भर से आपके चहरे पर एक मुस्कान आ जाती है...सुख और शांति की मुस्कान...तो जरा सोचिए....कितना मुस्कुराहटें एक साथ खिलखिला उठती होंगी इस शहर में....बाकी बहुत कुछ है लिखने को पर उससे इस शहर के बारे में बता पाना मुमकिन नही है...तो आइये एक बार यहाँ और जी के जाइये इस शहर को.....आखिर कब तक जिएंगे झूठ मूठ के भौकाल में...अरे कुछ दिन तो गुजारिये भोपाल में