मेरा जन्मस्थली ,मेरा फर्रुखाबाद , यहाँ की सुबह बड़ी ही अलमस्त सी होती है , गंगा किनारे जा के ठंडे पानी में छपाके लगाना और फिर बाहर आकर सर्दी की गुनगुनी धूप में हरी धनिया की चटनी में डुबो कर गर्मागर्म भुने आलू खाना । आप सोचोगे की कोई आलू कैसे खाते होंगे , पर ये रेत में भुने आलू मुँह में घुल कर जो आनंद लाते है, वो तो बस खाने वाले ही जानते है , हा यहाँ प्रेजेंटेशन तो नही पर स्वाद भरपूर देसी है,
ये तो हुई सर्दियों की बात, अब एक और खासियत की बात कर लेते है जो हर मौसम की रानी है वो है पपड़ियां , फर्रुखाबाद की बात हो और पपडिया और लस्सी का जिक्र ना हो ऐसा तो हो ही नही सकता ।चना ,प्याज, मूली मिर्ची, टमाटर, आलू,और चटपटा मसाला ऊपर से ताजा दही और खट्टी मीठी चटनी डाल कर जब ये कुरकरी पपड़ी सामने आती है , तो हर सुबह मस्त लगती है और जब ज्यादा मिर्ची लगे तो खस की ताजगी से भरपूर रामु की लस्सी हो जाये एक गिलास फिर क्या बस दिन बन जाता है ।
बनारस , एक शब्द ही काफी है , मेरे मुंह में पानी लाने के लिए , ये नाम मेरे लिए एक शहर नही , कुछ ज्यादा है , यहाँ की गलियों में मैंने अपना बचपन जिया है , वो गली जहा हर मोड़ पर एक अलग स्वाद मिलता है , थोड़ा देसी थोड़ा विदेसी भी आखिर उनका भी ख्याल रखते है हम ,
कितना भी बताऊँ कम लगेगा , बात करते है ,मेरी पसन्द की , यहाँ का टमाटर चाप , आलू चाप और दही गुझिया खाये बिना तो मेरी ट्रिप अधूरी ही रहती है, यहाँ आज भी मीठा और पान के बिना भोजन अधूरा रहता है , मलइयो और राबड़ी जिसने बनारस में खायी हो फिर उसे कही मन ही नही लगेगा,ये तो शाम ए बनारस का अहम् हिस्सा है ।
कोटा , जिसे हम आज कोचिंग सिटी के नाम से पहचानते है , ये सच में आई आई टी और मेडिकल की फैक्ट्री है , यहाँ सुबह से शाम तक गलियो में एक खुशबु रहती है , मसालेदार दाल भरी कुरकरी कचोरी की , जिस पर कही तो शर्ते लगती है , तो कही दिन भर के पेट भरने का 5 रूपये में जुगाड़ । चटनी और कचोरी का ये नाश्ता थोड़ा हैवी जरूर है पर स्वाद जिसने चख लिया वो भूलता नही है।