
दसवी पास करने के बाद सबसे बड़ी खुशी इस बात का होता है कि अब घर से बाहर निकलने का मौका मिलेगा क्यूकी उससे पहले तो आप चूजे का बच्चा होते हो घरवाले के नजर मै | मुझे भी 2014 में मोका मिला बाहर निकलने का पर सवाल था कहा, कोटा, कोलकाता, भागलपुर ना पटना के सिवा कुछ ऑप्शन ही नहीं था | मै दिल्ली जाना चाहता था लेकिन ऑप्शन ही नहीं था और कोलकाता भईया कि कही बात ने रोक लिया कि वाला भाषा की परेशानी होती है, फिर पटना भागलपुर से तो बेटर था | ऎसी बात नहीं है कि मैं पहले पटना नहीं गया था पर उस वक़्त शहर को जानने का मौका नहीं मिला पर जब पटना रहना हुआ तो शहर से रूह-ब-रूह होने का मौका मिला | पटना आते ही भईया ने शहर के विभिन्न समासा से रूह-ब-रूह करवाया | शहर मै रहने के लिए किन पहलू पे काम करना है वो बताया जैसे कि पानी बाहर का ना पीना है, बाहर का खाना कम खाना है वैगरह | फिर उन बीमारी से भी रूह-ब-रूह वो पटना आने के बाद लगभाग सभी को हो ही जाती |मेरा पहला काम था इन सब से बचना तो मैं ने बंद बॉटल पानी लगवाया और ये भी बाहर का ना के बराबर खाना है |अब बारी थी शहर को जानने का | पाटलिपुत्र से पटना तक का सफर रहहेसे से भरा है, उस दोरान बहुत कुछ बदला राजनीति से शहर के इंफ्रास्ट्रक्चर तक उससे पहले तो हमने किताबों में पटना के बारे में बस कुछ बातें ही पढ़ी थी पर यहां बहुत कुछ था ईको पार्क, साईंस म्यूज़ियम, पटना यूनिवर्सिटी और भी बहुत कुछ| पर जो नहीं बदला वो था शहर के रहनुमा की सोच |राजनेता ने पटना को बद्सेबद्तर बना दिया उसका का सबसे बड़ा उदहारण 2019 का बाढ़ है | आज फिर मैं वही पटना जारहा हू जिससे 2016 में छोरा था पर ये पटना में टीवी के न्यू में जो दिखाई दिया था उससे कही जादा तकलीफ में है|
शरह की backbone होती है शहर की सड़कें वहां की ट्राफिक सिस्टम | पटना में की रास्ते तंग है | लोग बेतरतीब से बसे हुए हैं | लोगों ट्राफिक की समझ नहीं देखा जाए तो पूरे देश का हाल ही यही है लेकिन पटना बिहार की capital होने के बाद ये हाल | एक साल से जादा हो गया है यहा पे ट्राफिक लाइट लगाए हूए लेकिन अबतक वो काम नहीं करते हैं और सरकारों के कान में जुए नहीं रेंगती है | जैसा कि मैं कहता हूं के सिक्के के दो पहलू होते है वेसे ही शहर के भी दो पहलू होते है अच्छा और बुरा | इस सफ़र मैं शहर की समस्या से रूह-ब-रुह करा रहा हू पर अगले सफर में शहर की खूबसूरती से रूह-ब-रुह करवाऊंगा |




