ब्रह्मकमल का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है। यह एसटेरेसी वंश का पौधा है। इसका नाम स्वीडन के वैज्ञानिक डी सोसेरिया के नाम पर रखा गया था। ब्रह्मकमल एस्टेरेसी कुल का पौधा है। सूर्यमुखी, गेंदा, गोभी, डहलिया, कुसुम एवं भृंगराज जो इसी कुल के प्रमुख पौधे हैं। ब्रह्मकमल को अलग-अलग जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तराखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस इसके नाम हैं।
यह दुर्लभ, रहस्यमय, श्वेतवर्णी पुष्प सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण-पश्चिम चीन में पाया जाता है। हिमालयी क्षेत्र में यह 11 हजार से 17 हजार फुट की ऊंचाइयों पर मिलता है। इस पुष्प की अब तक प्रजातियां खोजी जा चुकी है, जिनमें 58 हिमालयी क्षेत्र में पायी जाती है।
इसका उल्लेख हम कई पौराणिक कथाओं में देखते हैं, भोटिया जनजाति के लोग किसी विपत्ति और संकट से बचने के लिए इसे अपने दरवाजे पर लटका देते हैं। भगवान बद्रीनाथ का ऋंगार भी ब्रह्मकमल से किया जाता है।
कब देखा जा सकता है: यह पुष्प ऐसे स्थानों पर मिलता है जो शीतकाल में बर्फ से ढके रहते है, जब वहां बर्फ पिघल जाती है, तो कई वनस्पतियां जन्म लेतीं है, ब्रह्मकमल उनमें से एक है। इस पुष्प का समयकाल अगस्त माह से अक्टूबर के बीच होता है।
कहां देखा जा सकता है: उत्तराखंड में यह पिण्डारी से चिफला, सप्तशृंग, रूपकुंड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ, हेमकुंड साहिब, वासुकी ताल, वेदनी बुग्याल, मद्ममहेश्वर, तुंगनाथ में प्राकृतिक रूप से उपजता है। इसके अलावा भीलांगना घाटी, हर की दून, नीलकंठ और गंगोत्री ग्लेशियर में भी ब्रह्मकमल देखा जा सकता है
PC - Prince Verma
#Brahmakamal #Himalaya #tripoto