जम्मू कश्मीर अपने आप मे एक ऐसी खूबसूरत मिस्ट्री है, जिसको आप जितना जानने की कोशिश करते है उतना ही और खूबसूरत ये वादी लगने लगती है। तो आइये फिर चलें फिर अनंतनाग की ओर.....🚴
1250 वर्ष पुराना सूर्य देवता को समर्पित और कुछ चुनिंदा सूर्य मंदिरों में से एक परन्तु विदेशी इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा खंडित किया गया ये सूर्यमंदिर, अनंतनाग कश्मीर में स्थित है। या न्यायसंगत रूप से कहा जाए तो हिन्दुओं की कला का एक नायाब नमूना यूं ही पड़ा बिखरा धूल खा रहा है।
लेकिन ऐसा क्यूं ?
15वीं शताब्दी से ठीक पहले सिकंदर बुतशिकन ने कश्मीर में जबरन इस्लाम में धर्मपरिवर्तन कराने के दौरान इसे तोड़ दिया था और उसके बाद से ये उसी स्थिति में पड़ा हुआ है। सिकंदर शाह मिरी उर्फ सिकंदर बुतशिकन कश्मीर में शाहमिरी वंश का छठा सुल्तान था। उसने 1389 से 1413 CE तक राज्य किया और कश्मीरी हिंदुओं को इस्लाम में जबरदस्ती धर्मांतरित करने के लिए उसके तरीकों की आलोचना की जाती है। पर दुख तब होता है जब हम पाते हैं कि जिनकी ये धरोहर है, उन्होंने भी इसके पुनरुद्धार के लिए कुछ पुख्ता प्रयास नहीं किए। हालांकि इसका उपयोग बॉलीवुड के कई गानों में व्यावसायिक रूप से खूब किया गया, पर मंदिर ज्यों का त्यों - तितर बितर ही है आज भी ! है ना विडंबना !!
मार्तण्ड सूर्य मंदिर
अनंतनाग से बमुश्किल 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस ऐतिहासिक मार्तण्ड सूर्य मंदिर के अवशेष और इसकी जर्जर हालत अपने पुनरुद्धार की उम्मीद लगाए आप का स्वागत करते हैं। स्थानीय भाषा में मार्तण्ड को मत्तन कहा जाता है।
यहीं एक जलाशय है जो रंगीन मछलियों से गुलज़ार रहता है, जाएं तो देखें जरूर! जब आप इसे पहली मर्तबा देखेंगे तो दिल में टीस उठेगी की क्या हम बौद्धिक, आध्यात्मिक या क्षमता के इतने निचले स्तर पर हैं कि पूर्वजों की इन स्मृतियों को, जो अपने आप में कला का चरम हैं, संभाल कर सहेज भी नहीं सकते।
मार्तण्ड सूर्य मंदिर का इतिहास -
राजतरंगिणी जो कल्हण की पुस्तक है ( जिसमें राजाओं का इतिहास वर्णित है और इसीलिए इसका टाइटल ये पड़ा 'राजाओं की नदी' अर्थात् 'राजाओं का समय प्रवाह' ) के अनुसार मार्तंड सूर्य मंदिर 8वीं शताब्दी CE में कर्कोतक राजवंश के तीसरे शासक ललितादित्य मुक्तपीड़ द्वारा 725-756 CE के दौरान बनवाया गया था। यहां ध्यान रहे इस पुस्तक को लिखे जाने का समय करीबन 1150 CE था। राजतरंगिणी में आज के कश्मीर को कश्यपमेरू नाम से संबोधित किया गया है। जबकि 'तारीख ए हसन' ( कश्मीर के सबसे पुराने उपलब्ध इतिहासों में से एक) के अनुसार दक्षिण कश्मीर के करेवा में रणादित्य ने बाबुल नाम का शहर बसाया था और यहीं अपने महल के सामने एक मार्तण्डेश्वरी मंदिर की नींव तीसरी - चौथी शताब्दी के बीच रखवाई थी। (स्थानीय भाषा में पठार के लिए करेवास शब्द का इस्तेमाल किया जाता है)। और ऐसा माना जाने लगा कि सातवीं शताब्दी CE के बाद राजा ललितादित्य मुक्तापीड ने इसी मार्तंडेश्वरी मन्दिर की नींव पर मार्तण्ड मदिर बनवाया और उसे सूर्य को समर्पित कर दिया। जैसे कि ऊपर हमने चर्चा की की मार्तंड मंदिर एक ऐसे ऊंचे पठारी हिस्से के ऊपर बनाया गया था जहाँ से पूरी कश्मीर घाटी को साफ - साफ देखा जा सके, यानी सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाए तो एक वैनटेज पॉइंट की तरह काम करता था। इसके खंडहर और संबंधित पुरातात्विक शोध बताते हैं कि मार्तण्ड सूर्य मन्दिर कश्मीरी वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना था, जिसे गांधारन, गुप्त, चीनी, रोमन, सीरियाई-बैजान्टाइन और ग्रीक वास्तुकला को मिश्रित करके बनाया गया था। है ना अचरज की बात!
कला की कुशलता का स्तर तो देखिए - आज जिस अनेकता में एकता का पाठ लगभग गायब सा हो गया है वहीं उस समय भी इसे बनाने वालों ने इतनी सारी कलाओं को इसके अंदर समेट लिया था, वो भी उनका आधारभूत ढांचा बदले बिना। 🛕
पुनरुद्धार के प्रयास
ऐसा नहीं कि इसके पुनरुद्धार के लिए कोई आवाज ही नहीं उठाई गई, पर राजनीति के प्रभाव के चलते सरकार द्वारा जो कुछ कदम उठाए भी गए वो भी आधे अधूरे मन से किए गए हैं। टूरिस्ट्स के लिए कुछ एक बेसिक फैसिलिटीज जैसे टॉयलेट को छोड़कर, इस स्थान को कभी भी धार्मिक या ऐतिहासिक तीर्थ स्थल बनाने के लिए कोई प्रभावशाली कदम नहीं लिया गया हो। इस स्थल की देख रख Archeological survey of India द्वारा की जाती है, जिसके द्वारा एक बोर्ड लटकाकर बस सूचना दे दी गई है। ASI को शायद आदेश और फंड दोनों ही कभी इसे प्रायोरिटी देने हेतु कभी मिले ही नहीं।
मुख्य मंदिर एक केंद्रीकृत परिसर में स्थित है, माना जाता है कि इसके शीर्ष पर एक पिरामिड था। मन्दिर के शीर्ष पर पिरामिड होना कश्मीरी मंदिरों में देखा जाने वाला एक कॉमन फीचर (सामान्य तौर पर पायी ही जाने वाली विशेषता) है। मंदिर के गर्भगृह और सभागार के बीच स्थित कक्ष में मौजूद दीवार पर की गई नक्काशी सूर्य देवता के अतिरिक्त अन्य देवताओं जैसे - विष्णु तथा मां गंगा और यमुना जैसे नदियों को दर्शाती हैं। जो अपने पूर्वजों के समय का एक अद्भुत एहसास आपके मन में जगाता है।
बॉलीवुड में मार्तण्ड सूर्य मन्दिर
कई नामी फिल्मों के मशहूर गानों में बतौर बैकग्राउंड इस्तेमाल किया गया है 👇
1970 : फिल्म - मन की आंखे - धर्मेंद्र और वहीदा रहमान; रफी-लता के गीत 'चला भी आ आजा रसिया' का बैकग्राउंड था यही मार्तण्ड मन्दिर।
1975: फिल्म - आंधी - संजीव कुमार और सुचित्रा सेन; किशोर-लता के फेमस गीत 'तेरे बिन जीना ज़िंदगी से कोई शिकवा नहीं' के बैकग्राउंड में यही मार्तंड मंदिर है।
2014: फिल्म हैदर में 'गीत बिस्मिल' के बैकग्राउंड के रूप में चुना गया था। इस सूर्य मंदिर को फिल्म में एक बुराई के स्थान के रूप में दिखाया गया है। इसे लेकर विवाद पैदा हो गया था। डेविल्स डांस सीक्वेंस वहां मन्दिर में दिखाया जाना सभी हिन्दुओं (संबंधित तौर पर कश्मीरी पंडितों का भी) अपमान है।
फ़िल्म - लव स्टोरी में भी इस मंदिर का बैकग्राउंड इस्तेमाल किया गया है।
तो फिर कीजिए प्लान ताकि जब करोना वायरस ठंडा पड़े तब कहा घूमने जाया जाय, इस सोच में आपका कीमती समय बर्बाद न हो। तो मिलते हैं अगले आर्टिकल में फिर किसी ऐसी ही शानदार जगह के साथ...🙏