यदि आप रोमांचक जगह जाने के शौक़ीन हैं तो अब आप आगे पढ़ेंगे राजस्थान के भीलवाड़ा जिले मे स्थित एक ऐसी खतरनाक गुफा में जो कि किसी पहाड़ के अंदर ना होकर के जमीन के निचे स्थित हैं और जिसमे जाने से पहले आप सौ बार सोचेंगे क्योकि इसका द्वार आपको पाताल के द्वार की तरह लगेगा।
Tripoto हिंदी के इंस्टाग्राम से जुड़ें
यह जगह है भीलवाड़ा के काछोला गांव से कुछ किलोमीटर दूर स्थित छोटे से एक गांव 'केसरपुरा' में जमीन के निचे एक गुफा। इस गुफा मे कुछ प्राकृतिक शिवलिंग बताया जा रहा था। जब कही से इस बारे मे मेने सुना तो मेने इसकी जानकारी जुटाने की कोशिश की। मैंने इस गांव का नाम कभी सुना नहीं था। यह गांव केसरपुरा जिस क्षेत्र के आसपास बताया जा रहा था वहा पर भी मेने कुछ कनेक्शन निकाल कर यहा की जानकारी चाही तो वहा के लोगो ने भी इस नाम के किसी भी गांव का वहा आस पास होना नहीं बताया।
तब कही से मुझे कही से वहा गए हुए एक यात्री के फ़ोन नंबर मिले। मेने उस नंबर पर फ़ोन किया तो उन्होंने हमे कहा कि वो जगह काफी अकेले और सुनसान इलाके मैं है और उस गुफा मे भी अकेले जाना सम्भव नहीं हैं। हमारे अनुरोध पर वो भाईसाहब हमे वहा ले जाने के लिए तैयार हो गए।उन्होंने कहा कि वहा गुफा मे कपडे सारे ख़राब हो जायेंगे और कपड़े फट भी सकते हैं तो कपड़े इसी अनुसार ही पहन के आने को बोला। साथ ही साथ उन्होंने जीन्स की जगह पाजामे मे आने को बोला और हमे कुछ टोर्च व गुफा से बाहर आने पर पहनने के लिए अतिरिक्त कपड़े लाने को बोला।
तय किये हुए दिन हम इस रोमांच के लिए शहर भीलवाड़ा से इस गुफा के लिए सुबह जल्दी निकल लिए। गावो की सड़के टूटी फूटी थी। बारिश की वजह से ये गड्ढे भी पानी मे भरे हुए थे। कई जगह तो सड़क ही पूरी खराब हो चुकी थी और वहा सड़क की जगह केवल पानी ही पानी दिख रहा था। खैर ,आवागमन भी इन गावों मे बहुत ही कम था। फिर भी रात के समय अगर कोई व्यक्ति बाइक पर इन रास्तो से निकले ,तो इन गड्ढो की वजह से दुर्घटना की संभावना 100% हो सकती हैं।
लेकिन जैसे तैसे हम वहा तक पहुंच ही गए ,जहा 'केसरपुरा' नाम का छोटा सा बोर्ड एक सड़क पर लगा हुआ था। दूर दूर तक सुनसान इसके रास्ते की और हम गए और गांव से करीब एक किमी दूरी पर ही गांव के रास्ते से थोड़े अलग अस्थायी रास्ते पर हमने गाडी रोकी। कुछ कदम पेदल चल तीन तरफ खेत से घिरे एक छोटे से मैदान मे हम पहुंचे। जहा एक बड़े पुराने वृक्ष की जड़ो मे से गुफा दिखाई दे रही थी। उसी के बाहर एक बाबा जी एक छोटे से मंदिर के पास बैठे हुए थे। हमने उनको प्रणाम कर इस गुफा मे जाने की इच्छा जताई और यहा के बारे मे जानकारी देने को कहा। उन्होंने बताया कि इस गुफा के अंदर पांच गुफाओं के रास्ते हैं जो कि अलग अलग तीर्थ तक जाते हैं। उसमे से तीन रास्ते तो काफी खतरनाक हैं लेकिन दो रास्तो मे कुछ अंदर हम जा सकते हैं। इन गुफाओं मे कुछ प्राकतिक शिवलिंग के आकार की चट्टानें भी मौजूद है जिसकी पूजा वो बाबाजी करते हैं। उन्होंने बताया कि इस जगह का नाम गुप्तेश्वर गुफा है। उन्होंने कुछ यहा से जुडी पौराणिक कथाये भी बतायी।
गुफा को नजदीक से देखने पर अंदर केवल अँधेरा दिख रहा था। एक रस्सी उस पेड़ के सहारे अंदर तक जा रही थी। एक बार तो उस गुफा को देखकर हम डर गए , गुफा का बाहरी दृश्य ऐसा था कि लग रहा था कि कोई रास्ता पाताल लोक जा रहा हैं। सबसे पहले बाहर मंदिर मे दर्शन कर हमे उस रस्सी के सहारे करीब 70 से 80 फ़ीट निचे उतरना था। रस्सी के सहारे इतना गहराई मे लटक के उतरने का हमे कोई अनुभव नहीं था। दूसरा डर यह भी था कि कही लटकते समय हाथ फिसल गया तो क्या होगा ,तीसरा अंदर कहा उतरना था यह फ़िलहाल दिखाई नहीं दे रहा था। सभी को एक एक करके अंदर उतरना था। भाईसाहब सबसे पहले उतर गए और टोर्च से हमे बताया कि हमे कितना निचे रस्सी से उतरना हैं। जैसे तैसे उन बाबाजी समेत हम सब अंदर उतर गए। रस्सी की मदद से उतरते समय डर तो लग रहा था लेकिन वो रस्सी दो चट्टानों के बिच मे सकड़ी जगह से होकर गुजर रही थी ,इस कारण लटकते हुए हम पेरो से चट्टानो मे पैर फसा फसा कर निचे उतर गए।
निचे चारो तरफ अँधेरा था। ऊपर देखने पर केवल प्रवेश वाला भाग दिख रहा था वो भी पेड़ की जड़ो मे छिपा होने से अंदर उजाला नहीं कर पा रहा था।अंदर कोई आवाज़ नहीं थी सिवाय के , चमगादड़ो की। हम पांच लोगोँ के पास एक बड़ी टोर्च थी और चार मोबाइल थी जिसकी टोर्च हम इस्तेमाल कर रहे थे। हमने टोर्च से देखा तो हर तरफ चमगादड़ लटके हुए थे ,कई चमगादड़ इधर उधर उड रहे थे। हम एक दूसरे को भी नहीं देख पा रहे थे और चमगादड़ो कि गंदगी लगातार हमपर गिर रही थी । टोर्च से पता लगा कि अंदर यह जगह करीब 1000 वर्गफीट चौड़ी होगी जिसमे कई चट्टानें जमीन से निकली हुई हैं ,उनमे से होते हुए पांच प्राकर्तिक रास्ते अलग अलग हमे टोर्च से दिखाए गए। यहा निचे पैरों मे भी चमगादड़ों की गंदगी हर जगह थी ,जिन्ही पर से ही हमे बिना चप्पलों के इन गुफाओं मे जाना था।जूते चप्प्पल तो हम ऊपर ही छोड़ आये थे ,हालाँकि नंगे पैरों से अंदर जाना मुझे अजीब लग रहा था पर उन बाबा ने कहा कि अंदर भगवान कि जगह पर आप जुते चप्पल मे नही जा सकते हैं।
अंधेरे मे इन चट्टानों पर चढ़ कर हमने एक गुफा के रास्ते की और प्रवेश किया। बारिश और चमगादड़ो की गंदगी की वजह से अंदर फिसलन भी बहुत थी। प्रवेश करते ही रास्ता केवल करीब चार फ़ीट का हो गया जिसमे से लेट लेट कर हमे आगे जाना था। जैसे ही हमने उस रास्ते मे प्रकाश डाला कई चमगादड़ जो कि इस चार फ़ीट के रास्ते मे लटके हुए थे ,उड़ कर बाहर निकल आये। एकाएक उनके हमारे पास से गुजरने से हम डर गए। कुछ दस मिनट तक हम इसी तरह लेट कर अंदर जाते गए। हमारे कपड़े पुरे गंदे हो चुके थे। वहा से आगे फिर एक जगह ऐसी आयी जहा करीब 6 -7 लोग खड़े हो सकते थे। हम गर्मी कि वजह से पसीनो मे भी हो चुके थे। यहा से आगे हमे कुछ फिसलन भरी चटट्टानो पर से चढ़ कर करीब 25 फ़ीट ऊपर जाकर एक छोटे से रास्ते मे फिर प्रवेश करना था। पुरे अँधेरे और चमगादड़ो की आवाज़ों मे हम जैसे तैसे उन फिसलन भरी चट्टानों पर चढ़ फिर एक छोटे से रास्ते मे लेट कर प्रवेश हुए। आगे जाते ही फिर तीन चार अलग अलग ऐसे ही रास्ते दिखाई दे रहे थे। बाबाजी के नेतृत्व मे हम एक रास्ते मे गए। और फिर और भी ज्यादा सकड़ी गुफाओं से लेट कर करीब ऐसे ही तीन या चार अलग अलग गुफाओं से होते हुए और अंदर ही कई चट्टानोपर उतरते चढ़ते हुए हम पहुंचें उस जगह जहा जमीन से निकले एक शिवलिंग पर वो बाबा पूजा करते हैं। यहा तक पहुंचने तक कई जगह रास्तें इतने सकरे मिले थे कि केवल शारीरिक रूप से पतले लोग ही अंदर प्रवेश कर सकते थे। अन्यथा अंदर प्रवेश ही नहीं हुआ जा सकता था। फिर यहा दर्शन कर हम फिर बाबा बताये रास्तो से बाहर निकलने लगे। हम गुफा के इतना अंदर और आगे आ चुके थे और इतने रास्तों से होकर निकल गुजर चुके थे कि अब अगर हम में से कोई अकेला पीछे रह जाए तो किसी भी हालत मे वापस नहीं आ सकता था। करीब एक घंटे मे फिर यहा से बाहर निकल कर हम उस जगह फिर आगये जहा रस्सी के सहारे हम उतरे थे।
वहा से फिर हम दूसरी गुफा के रास्ते की और चल दिए। वहा भी पूरा अनुभव पहले जैसा ही रहा ,बस केवल एक जगह के आगे सांस लेने मे सबको समस्या होने लगी।इस गुफा मे भी आगे एक शिवलिंग की आकृति थी ,जिस पर वो बाबाजी पूजा करते हैं। वहा से आगे भी रास्ता दिख रहा था ,लेकिन वो काफी संकडा रास्ता था जिसमे आसानी से प्रवेश नहीं हो सकता था। इस तरफ की गुफा मे भी हमे करीब एक घंटा लग चूका था। फिर हम यहा से पुरे थके हारे ,पसीने से लथपथ और चमगादड़ो की गंदगी से भरे बाहर जाने के लिए रस्सी के पास आ गए। यहां से अब रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ना काफी कठीन था।एक दो बार हम फिसल भी गए थे। हममे से एक को तो रस्सियों से ही बाँध कर बाहर खींचना पड़ा।
बाहर आकर हमने हाथ पैर धोकर पानी पिया क्योकि अंदर हमारा गला भी सुख चूका था।हममें से दुर्गन्ध आ रही थी।वही पास मे एक खेत पर नहाने की व्यवस्था भी थी। जहा नहा कर हमने कपडे बदल लिए वरना उस दुर्गन्ध और उन कपड़ो मे गाडी मे बैठना ही एक सजा हो सकती थी।इसी तरह करीब चार से पांच घंटे मे हम यह से फ्री होकर वापस भीलवाड़ा निकल लिए।
कैसे जाए : राजस्थान के भीलवाड़ा शहर से कैब करके ही।
कैसा लगा आपको यह आर्टिकल, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।
बांग्ला और गुजराती में सफ़रनामे पढ़ने और साझा करने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें
Tripoto हिंदी के इंस्टाग्राम से जुड़ें और फ़ीचर होने का मौक़ा पाएँ।