दोस्तों प्राचीनकाल से ही भारत एक खोज रहा है। भारत के गर्भ में ना जाने कितने रहस्य छुपे हुए हैं। लेकिन कुछ ही रहस्यों से पर्दा उठ पाया है। कुछ रहस्यों मे पर्दा उठना बाकी हैं। और दोस्तों ऐसे कई रहस्यों को पुरातत्व विभाग निरंतर उजागर करने की कोशिश करता आ रहा है। जी हां हम बात कर रहे हैं घुरहूपुर में एक पत्रकार द्बारा उजागर की गईं उन गुफाओं की। यह रहस्यमयी खोज एक हिन्दुस्तान अखबार के भारतीय वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय सुशील त्रिपाठी जी ने 30 सितंबर 2008 में की थी। बेशक आज वो हमारे बीच नहीं हैं। पर उनकी इस खोज के लिए उनको हमेशा याद रखा जाता है। गुफाओं का अवलोकन करने के बाद वापिस लौटते वक़्त पहाड़ी से पैर फिसल जाने के कारण डेढ सौ फीट नीचे गिर कर वह गंभीर रूप से घायल हो गए। ईलाज के दौरान वाराणसी के सर सुन्दरलाल चिकित्सालय में 4 अक्टूबर को उनका निधन हो गया। स्वर्गीय त्रिपाठी जी की इसी खोज के बाद आम जनमानस का ध्यान यहां केंद्रित हुआ। उसी वक़्त से यहां हर वर्ष बौद्ध महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
घुरहूपुर में उजागर हुईं गुफाएँ और शिलालेख
दोस्तों चलिए बताते हैं घुरहूपुर में उजागर हुईं उन उत्कृष्ट अतुलनीय अनमोल गुफाएँ और शिलालेख के बारे में। यह प्राचीन गुफाएँ उत्तर प्रदेश की बिंध पर्वत की मालाओं मे उजागर हुई हैं। दोस्तों ये गुफाएँ बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई है। गुफाओं को देख प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में बौद्ध धर्म के लोग यहां रहते थे। क्योंकि इन गुफाओं के भीतर जाने पर दीवारों पर बनी महात्मा बुद्ध के अनेकों चित्र देखने को मिल जाएंगे। अचम्भिंत कर देने बाली बात यह है कि ये चित्र आपको दीवार के उपर पानी डाल कर ही साफ़ साफ़ दिखेंगे। पानी के बिना इन चित्रों को देख पाना बहुत ही मुश्किल काम है ये गुफाएँ बेहद ही संकरी है इनके अंदर जाना बेहद मुश्किल काम है। आज इन गुफाओं के अंदर बहुत सारी चमगादड़ें विघमान है। स्वर्गीय वरिष्ठ पत्रकार के साथ हुए उस हादसे के बाद ही गुफा तक जाने के लिए लोहे की सीढ़ी बनाई गई है जिससे कोई और हादसा ना हो सके। पहले गुफा तक जाने के लिए खतरनाक चट्टान से होकर गुजरना पड़ता था। हालांकि घुरहूपर प्रशासन ने पर्यटन के विकास को बढ़ावा देने के लिए अभी कुछ ख़ास ठोस कदम नहीं उठाए है। जिससे यह पर्यटन स्थल आज भी अपने विकास के लिए प्रशासन का बेसब्री से इंतजार करता नजर आ रहा है।
खोज के समय उजागर हुई महात्मा बुद्ध की प्रतिमा
महात्मा बुद्ध की यह प्रतिमा उसी खोज के दौरान प्राप्त हुई थी। हालांकि यह प्रतिमा खण्डित रूप में मिली थी खोज के समय यह प्रतिमा बिना सर के ही प्राप्त हुई थी। लेकिन बाद में पुरातत्व विभाग ने इस प्रतिमा को दुरुस्त करवाया। यह प्रतिमा अपने साथ ना जाने कितने अनगिनत रहस्य छुपाए हुए बैठी है। बस इंतजार है इसके और भी अनोखीक रहस्य उजागर होने का। इस प्रतिमा के इलावा और भी कई भीतरी शिलालेख इसी गुफा में पाए गए हैं। जो कि अब खण्डित हो चुकी हैं।
प्रांगण से दिखता खूबसूरत नजारा
ऊंचाई भरे इसी पहाड़ी में मिली गुफाओं के प्रांगण से पूरे क्षेत्र का सोंदर्य देखते ही बनता है। पूरी घुरहूपुर घाटी इसी गुफा से दिख जाती है। इस गांव की ऊंची निचीं हरियाली से भरी पहाडियाँ इसके सोंदर्य को चार चांद लगा देते हैं।
यहां आऐं कैसे
यहां आने के लिए आपको बनारस से 45 किलोमीटर दूर चकियां शहर तक बस या टेक्सी मिल जाएगी। फिर चकियां शहर से मात्र 15 किलोमीटर दूर घुरहूपुर गांव जाना हैं यहां से भी आप टेक्सी, बस या फिर अपनी खुद की गाड़ी से भी आ सकते हैं। अब ये धार्मिक स्थल यहां से ज्यादा दूरी पर नहीं। अब आपको घुरहूपर गांव से बनी पखडण्डियों से होकर मात्र 2 किलोमीटर संकरी रास्ते से उस धार्मिक गुफा तक पहुँचना होगा। पर्यटन की दृष्टि से और बौद्ध धर्म पर आस्था रखने बालों के लिए यह स्थल बहुत ही उत्कृष्ट है।
यहां आकर प्रकृति की खूबसूरती का नज़ारा लिया जा सकता है।
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जय भारत