जब घर मे रह कर अपने सारे काम करते हुए दिन भर जिंदगी की जद्दोजहद मे लगे रहो तो मन शांति चाहता है , सुकून चाहता है यूँ तो मैं उत्तर प्रदेश के शहर फतेहपुर का रहने वाला पेशे से अधिवक्ता हूँ दिन भर कोर्ट अदालत क्लाइंट इसी मे लगा रहता हूँ लेकिन कभी लगता है की घूमा जाए एक दिन दोपहर मे कोर्ट का काम निपटाने के बाद अचानक लगा की कहीं घूमा जाए मन अंगड़ाई लेने लगा समय देखा तो अगले दिन सेकंड सैटरडे और सन्डे दो दिनो का अवकाश था सोचा कहा जाया जाए जो दो दिनी यात्रा के लिए मुफीद हो तभी ध्यान आया की शहर के बाहर खजुराहो का बोर्ड लगा है जिसमे फतेहपुर से खजुराहो की दूरी करीब 180 किमी दिख रही है फटाफट ये सोचा की बस यही सही है कल अपन उधर ही पाए जायेंगे तुरंत पत्नी जी को फोन किया श्रीमती जी भी अधिवक्ता है संयोगवश उनका मयका भी जिला छत्तरपुर मे है उन्होंने कहा की अभी देर हो जायेगी मैंने समझाया माता कल चलना है आज नही दोनो लोग घर आये और कल यानी प्रस्थान दिवस की तैयारी करने लगे घर से तुरंत अनुमति मिल गयी और तारीख 17 सितंबर को सुबह 6 बजे हम लोग अपनी वैगन आर से फतेहपुर से खजुराहो के लिए निकल लिए अब आगे की दास्ताँ इस प्रकार है की सुबह निकलने के बाद लगभग दो घंटे मे बांदा पहुँचे वहाँ से कुछ आगे मतौन्ध मे मूंग की दाल से बने मूंगाउड़े जो की पूरे बुंदेलखंड मे सुबह आसानी से मिल जायेंगे चान्पे लहसुन की चटनी के साथ सरसों के तेल मे निकले गरम गरम मूंगाउडे दिन की शुरुआत इससे अच्छी नही हो सकती देसी स्वाद फिर खा पीकर नाश्ता निपटा कर लगभग 9 बजे तक अपन महोबा वीर भूमि जो अल्हा उदल की नगरी कही जाती है वहा एंट्री ली धूप तेज थी और गर्मी भी बहुत थी एक शिकंजी पी और खजुराहो की तरफ बढ़ लिए महोबा से खजुराहो लगभग 55 किमी है वाया महाराजगंज और लवकुश नगर होते हुए महोबा से कुछ आगे चलने के बाद हमारी गाड़ी उत्तर प्रदेश को पीछे छोड़ते हुए मध्य प्रदेश के अंदर दौड़ने लगी हरे साइन बोर्ड की जगह नीले रंग के बोर्ड ने ले ली यानी मध्य प्रदेश मे हमारा स्वागत हो चुका था यहाँ तक तो सब बढ़िया लेकिन महाराज गंज के बाद खजुराहो तक की सड़क ने हमारे उत्साह को गिरा गिरा के धोया यानी रोड विधिवत चौपट खैर रोते गाते दोपहर 2 बजे खजुराहो पहुँचे मध्य प्रदेश टूरिज्म का होटल झंकार 2500 रुपए प्रति रात्रि के हिसाब से लिया वाकई मे अच्छा था पैसा वसूल वही से शाम 4 बजे खजुराहो के मंदिर गए जो की होटल से पैदल रास्ते मे ही था टिकट लेकर अंदर घूमा एक अलग ही वैभव था लेकिन गर्मी बेहद थी आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की मंदिर सूर्य अस्त के बाद बंद हो जाता है शाम को समोसा और आलू पेटीज़ ने समा बांध दिया आप लोग जब भी छत्तरपुर बाँदा तरफ जाए तो ये जरूर ट्राई कीजियेगा वाकई मजा आ जायेगी रात मे एक मारवाड़ी होटल मे खाना खाया खाना अच्छा नही था लेकिन भीड़ बहुत थी शायद एकलौता भोजनालय होने की वजह से खैर लौटकर होटल आये और सो गए लेकिन अगले दिन ही मुख्य था किसी ने कहा की यहाँ से कुछ आधे घंटे की दूरी पर रनेह फाल है वहाँ जाइये प्रकृति का आनंद वही मिलेगा सीधे रनेह की ओर छू और गेट के सामने 600 रुपए गाड़ी की एंट्री फी और 100 रुपए गाइड के देकर अंदर भाई जी क्या नजारा था केन नदी जिसका असली नाम कर्णावती है 5 रंग की चट्टान के बीच बलखाती हुई झरने से गिर रही थी इतनी ऊँचाई थी की रोंगटे भी हनुमान चालीसा पढ़ रहे थे काफी देर निहारते रहे निःशब्द उस दृश्य को फिर बाहर आये सोचा अब पन्ना 🐯 टाइगर रिजर्व होते हुए वापस लौटा जाए जो की वहां से 40 किमी के आस पास रहा होगा सोच को दिशा देते हुए केन पुल पार करके पन्ना पहुँचे रिज़र्व बंद था सो रुक न सके और पन्ना बाय पास से होते हुए गाड़ी अजय गढ़ की घाटी मे उतार दी ऐसा जंगल घुमाव दार रास्ते होते हुए अतर्रा नाम के कस्बे के रास्ते फिर अपने धाम वापस
ये केवल सफर नामा है पूरा ब्लॉग बहुत जल्द
आपका और सबका
प्रशांत