
साहित्य सम्राट शरतचंद्र के हावड़ा वाले घर घूमकर ये ब्लॉग लिख रहा हु दोस्तों । काफी मजा आया और बहुत कुछ जानने का मौका भी मिला। शरतचंद्र का घर को शरद कोठी कहा जाता है जो हावड़ा जिले के समताबेर नामक गांव में है। यह कोलाघाट के बहुत करीब, देउलती नामक स्थान पर है। साहित्य सम्राट के घर के ठीक बगल में रूपनारायण नदी है। इस नदी के आसपास का दृश्य देखने में बनता है। सूरज ढलने का नजारा काफी सुहावना है दोस्तों।

शरद कोठी बगीचों से घिरा हुआ है। सामने फुलवारी और पीछे बांस के बगीचे और घास का मैदान हैं। घर के बरामदे में चिड़िया का पिंजरा भी है। इस घर में शरतचंद्र बाबू का इस्तेमाल किया हुआ बिस्तर, कुर्सी, चरखा आदि जैसी कई चीजें हैं जो अभी भी बरकरार हैं। इसके अलावा, उनके द्वारा इस्तेमाल किया गया दर्पण जो बेल्जियम से लाए गए कांच से बना है, उसमें एक दर्पण में राधाकृष्ण की एक मूर्ति भी है। इसके अलावा सरत चंद्र चट्टोपाध्याय के जमाने की यानी कि अंग्रेजों के जमाने की टेबल कुर्सी घड़ी और अन्य सामग्री उनके जमाने की याद दिलाती है। कुछ पल के लिए ऐसा लगता है कि हम उस दौर में चले गए हो।

कहा जाता है कि राधाकृष्ण की यह मूर्ति देशबंधु चित्तरंजन दास को जेल जाने से ठीक पहले उन्हें दी गई थी। शरद कोठी में स्वतंत्रता आंदोलन के समय कई क्रांतिकारी उनके साथ मिलने आते थे।

रूपनारायण नदी शरत कुठी से किसी जमाने में महज दो कदम की दूरी पर थी। रूपनारायण नदी उनके बरामदे से दिखाई देती थी और साहित्यसम्राट ज्यादातर समय रूपनारायण नदी को देखकर ही लिखते थे। उन्होंने 12 साल 1926 से 1938 तक इसी घर में बिताए और यहीं से उन्होंने कई उपन्यास और लघु कथाएँ लिखीं। कुछ उल्लेखनीय हैं कलजयी बिप्रदास, अभगीर स्वर्ग, पल्लीसमाज आदि।

शरत कुठी से एक दिन आस पास के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण किया जा सकता है। यह स्थान बहुत ही सुंदर, छायादार और स्वच्छ है। और इसके बगल में रूपनारायण नदी है इसलिए शरत कुठी देखते ही आप रूपनारायण नदी के तट पर बैठकर कुछ समय बिता सकते हैं।