यकीनन....कुछ रिश्ते बस यूँ ही जुड़कर खत्म हो जाते हैं, उनका न तो कोई ठिकाना होता और न ही कोई कमिटमेंट! लेकिन गैर और अनजान होने के बावजूद वो शख्स एक समयावधि तक आपसे अनकहे विशेष प्रेम में होता है... मानों आपकी उस अकेली यात्रा का वही साथी और हमदर्द हो। न नाम का पता, न ही घर का, लेकिन फिर भी रिश्ता न जाने किसी आधार पर इतना प्रगाढ़ हो जाता है कि उसकी हर बात अपनी सी लगने लगती है.....ऐसा लगता है मानों कोई अपना बरसों का बिछड़ा अचनाक से आपको गले लगाने आ गया हो और आप बिना कुछ कहें बस उससे लिपटकर उसकी दिल की धड़कनों को महसूस करना चाहतें हों।

वैसे तो सोलो ट्रैवलिंग में सैकड़ो लोगों से मुलाकात होती है लेकिन विरले ही किसी यात्रा में ऐसा शख्स मिलता है जो इस कदर अपना लगने लगता है कि, वापसी के बाद भी उसकी हर आहट महसूस होती है..... शायद! यूँ ही ईश्वर किसी ऐसे से मिलवाता है या किसी विशेष उद्देश्य के लिए,
जो भी हो! बस सच्चा प्रेम रामत्व के साथ हृदय में बसा रहना चाहिए.... तभी हर ऐसी मुलाकत बिना किसी उद्देश्य के, पवित्रता के साथ एक सुखद याद बनकर हृदय के किसी कोने में हमेशा दबी रहती है और आप जब भी नई यात्रा पर निकलतें है तो सारी पुरानी यादें तरोताजा हो जाती हैं।
क्या पता भविष्य में कभी उनसे मुलाकात न हो, शायद कुछ अरसे बाद ये यादें भी मिट जाएं.... लेकिन वास्तव में ऐसे रिश्तें हर उस रिश्तें से लाख दर्जें बेहतर और सकारात्मक होतें जो इंटेंशनली बनाये जातें है।
बाकी घुमतें रहिये, खूब खुश रहिये और जी भर के जीवन जी लीजिये।
हरि ॐ।❤️

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