भारत भूमि को देवों की भूमि कहा जाता है इस पवित्र भूमि में ना जाने कितने देवी देवता और ऋषि मुनियों ने जन्म लिया है।यही कारण है कि आज भी ऐसे कई रहस्य और चमत्कार है जिसे समझना मानव जाति के लिए असंभव है।ऐसी ही एक रहस्यमय जगह है कर्णाटक के मैसूर मे स्थित वेणुगोपाल मंदिर।यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है।यह मंदिर मूल रूप से 12वीं शताब्दी में होयसल राजवंश द्वारा बनाया गया था। कहा जाता है कि यह मंदिर 70 सालों तक पानी में रहा और हर बार जलस्तर गिरने पर यह धीरे-धीरे धीरे-धीरे पुन: सतह पर आ जाता था। यह मंदिर, दक्षिण भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक है। कई साल गुजर जाने के बाद भी यह मंदिर बेहद सुंदर है। यहां भारी संख्या में भक्त हर साल दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर की यात्रा में मौसम बिलकुल भी बाधा नहीं बनता है।आइए जानते है इस मंदिर के विषय में कुछ रोचक तथ्य।
मंदिर का वास्तु कला
वेणुगोपाल मंदिर परिसर का विशाल परिसर लगभग 50 एकड़ (20 हेक्टेयर) 100 क्षेत्र 60 गज (91 मीटर 55 मीटर) में फैला हुआ है।परिसर एक ऐसी ही इमारत थी, जो दो 'प्राकार' (स्तंभों वाला कमरों सहित बरामदा) और बाहरी द्वार (महाद्वार) के दोनों ओर बरामदा था, जो यज्ञशाला और रसोई से घिरे हुए था। इनके बाहर दूसरा महाद्वार था।मंदिर में एक गर्भगृह, एक वस्त्राभूषण, एक मध्य कक्ष और एक मुख्य हॉल है। प्रवेश द्वार के सामने वाले कक्ष में केशव (भगवान कृष्ण) का एक चित्र है और दक्षिण कक्ष में गोपालकृष्ण की आकृति है, जो बाद में जोड़ी गई थी।
मंदिर से सदैव आती है बांसुरी की ध्वनि
यह मंदिर कृष्ण सागर बांध के पास बना हुआ है और यहां पर कृष्ण बांसुरी बजाते हुए नजर आते हैं। वेणु का अर्थ तमिल में बासुंरी होता है ।कहते है इसी जगह भगवान कृष्ण गायों के झुंड के साथ बांसुरी बजाते थे।इसी कारण आज भी इस मंदिर में भगवान कृष्ण की बांसुरी की मधुर धुन हमेशा सुनी जाती है।यह ध्वनि कहा से आती आज तक कोई इस का पता नही लगा पाया।
पहले कन्नमबाड़ी में स्थित था मंदिर
साल 1909 में सर एम विश्वेश्वरैया द्वारा कृष्णा राजा सागर बांध परियोजना की कल्पना की गई थी, तब यह मंदिर परिसर कन्नमबाड़ी में स्थित था।तब केआरएस बांध परियोजना के पूरा होने पर कन्नमबाड़ी गांव और इसके आसपास की अन्य बस्तियां जलमग्न होने की पूरी संभावना थी।तब मैसूर के तत्कालीन राजा कृष्ण राजा वाडियार चतुर्थ ने कन्नमबाड़ी के निवासियों के लिए एक नए गांव के निर्माण का आदेश दिया था और इसे होसा कन्नमबाड़ी यानी नया कन्नमबाड़ी नाम दिया गया।
खोडे फाउंडेशन ने फिर से कराया जीर्णोद्धार
70 सालो तक पानी में डूबे रहने के बाद भी यह मंदिर वैसे का वैसा ही रहा।हालाकि इसका कुछ हिस्सा पानी में रहने के कारण ध्वस्त हो गया।इसके बाद खोडे फाउंडेशन ने मंदिर को स्थानांतरित करने और पुनर्स्थापित करने का कार्य अपने हाथ में लिया। दिसंबर 2011 तक मंदिर का जीर्णोद्धार पूरा हो चुका था।
धूम-धाम से मनाया जाता है रथ महोत्सव
वेणुगोपाल स्वामी में मई के महीने में बड़े ही धूमधाम से रथ महोत्सव का आयोजन किया जाता है।अगर आप भी यहां की सभ्यता और संस्कृति को देखना चाहते है तो आपको यहां मई के महीने में जरूर आना चाहिए।
मंदिर और डैम में एंट्री के लिए फीस
मंदिर और डैम में एक साथ एंट्री के लिए लोगों को 30 रुपये चुकाने होते हैं। वहीं सिर्फ मंदिर में एंट्री के लिए 15 रुपये बतौर फी देना पड़ता है।
कैसे पहुंचे
वेणुगोपाल मंदिर कर्नाटक के होसा कन्नमबाड़ी गांव में स्थित है। आप यहां बंगलौर से 3 घंटे की ड्राइव से पहुंच सकते है।इसके अलावा वृदावन गार्डन से यह 9 किमी और मैसूर शहर से 30 किमी दूरी पर स्थित है।आप निजी साधन या टैक्सी और कैब से यहां पहुंच सकते है।
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