सावन में रावणेश्वर बाबा बैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग दर्शन के साथ-साथ यहां घूम आइए

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Photo of सावन में रावणेश्वर बाबा बैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग दर्शन के साथ-साथ यहां घूम आइए by Nikhil Vidyarthi

देश में स्थित भगवान महादेव के बारह ज्योतिर्लिंग में से एक बैद्यनाथ मंदिर। यह सिद्धपीठ है और बैद्यनाथ धाम मंदिर में दर्शन से मन की कामनाएं पूर्ण होती है। बैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग मंदिर पूर्वी भारतीय राज्य झारखंड के देवघर शहर में स्थित है। अगर आपको ज्योतिर्लिंगों से जुड़ी पौराणिक कहानी मालूम हो तो यह मंदिर भी उसी से संबद्ध है। ऐसी मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए इसे कामना लिंग भी कहा जाता है। मंदिर परिसर में महादेव और शक्तिपीठ माता पार्वती के मुख्य मंदिर के अलावा 22 अन्य मंदिर हैं।

मुख्यतः बाबाधाम के नाम से प्रसिद्ध इस ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास रामायण के युग से जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म के पौराणिक कथाओं से ज्ञात होता है रावण भोले बाबा के बहुत समर्पित भक्त होते हैं। वह महादेव को प्रसन्न करने हेतु हिमालय में तपस्यारत होते हैं। भोले शंकर को खुश करने के लिए दस सिरों वाला रावण अपना सिर एक-एक कर काट शिवलिंग पर चढ़ाने लगा। जैसे ही वह 10 वां सिर चढ़ाकर अपने प्राण की आहुति देता भगवान शिव उसकी परीक्षा से खुश हो गए। शिवजी ने उसे न सिर्फ दर्शन दिया बल्कि वरदान भी मांगने को कहा। रावण चाहता था कि शिवजी उसके साथ सोने की लंका चलें। रावण के कठिन परीक्षा से शिव खुश तो थे ही। ना-नुकुर कर शिवजी ने रावण को एक शर्त पर एक शिवलिंग अपने साथ ले जाने के लिए कहा। शर्त यह थी कि रास्ते में कहीं भी शिवलिंग जमीन से छूने न पाए। नहीं तो शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो जाएंगे। रावण इस शर्त के लिए भी तैयार हो गया।

इस बात से देव लोक में देवी-देवता परेशान थे। भगवान विष्णु को इसी बीच उपाय सूझी। वह पथिक रूप में रावण के सामने पहुंचे। रावण को जोड़ों की लघुशंका लगी हुई थी। आस-पास तो कोई था नहीं और शिवलिंग को जमीन से न छूने की चेतावनी उसे याद थी। उसने पथिक भेष में पास से जा रहे विष्णु जी को शिवलिंग पकड़ा कर वह खुद लघुशंका करने लगा। यह सब भगवान ने ही रचा था। रावण का पेशाब रुकने के बजाए बढ़ता ही गया। इस बीच सही मौका देख कर भगवान विष्णु ने शिवलिंग को जमीन पर रख कर देवलोक चले आए। जिस जगह पर उन्होने लिंग रखी ठीक उसी जगह पर मंदिर का निर्माण किया गया है।

श्रावणी मेला / कांवर यात्रा

फोटो वर्ष 2022 के श्रावणी मेले के दौरान ली गई है।

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श्रावणी मेला का नाम बाबा को समर्पित सबसे धार्मिक आयोजनों में शीर्ष पर माना जाता है। सिर्फ इस ज्योतिर्लिंग पर अकेले सावन महीने मे देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु जल अर्पित करते हैं।

सावन के महीने में बाबा बैद्यनाथ धाम के लिए आस्था और महत्ता बहुत बढ़ जाती है। कहा जाता है कि स्वयं भगवान राम ने सुलतानगंज से जल ले कर बाबा बैद्यनाथ का अभिषेक किया था।श्रद्धालुगण सबसे पहले धाम से 105 किमी उत्तर में बहने वाली पवित्र उत्तरवाहिनी गंगा, सुलतानगंज का जल दो पात्रों मे भर लेते हैं। फिर कांवर में रख कर खाली पांव बैद्यनाथधाम के लिए पैदल चल पड़ते हैं। कांटेदार, ऊबड़-खाबर पहाड़ों और जंगलों के बीच से होते हुए वे बैद्यनाथ धाम पहुंचते हैं। जिसके बाद मंदिर के समीप स्थित शिवगंगा में स्नान करते हैं। फिर सुल्तानगंज से कांवर में लाए गंगाजल से बाबा बैजनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करते हैं। इसके बाद वे बाबा बासुकीनाथ धाम में दर्शन करने जाते हैं। सबसे लंबे समय तक चलने वाले इस कांवर यात्रा में सिर्फ भक्ति ही नहीं बल्कि शारीरिक मजबूती भी जरूरी है। सावन और भादो महीने में यहां काफी ज्यादा संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस दौरान दर्शन के लिए शहर के अंदर तक लंबी कतार लगाना पड़ता है।

कांवर यात्रा का महत्व

शिवजी के लिए गंगाजल ले कर कांवर चलने का बहुत महत्व है। धार्मिक कथाओं के अनुसार ऐसी मान्यता है कि कांवर यात्रा से मिलने वाला अश्वमेघ यज्ञ करने के समान है। कांवर यात्रा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है, सभी मनोरथ सिद्ध और जीवन सुखमय होता है। इस साल यह 4 जुलाई 2023 से कांवर यात्रा शुरू हो रहा है, जो अगस्त के अंत तक चलेगा। इस बार सावन को ले कए एक बड़ा अच्छा संयोग बना है। 19 साल में एक बार ही ऐसा होता है जब सावन पूरे दो महीनों में बढ़ जाता है।

बैद्यनाथ धाम पैदल यात्रा, समय और पड़ाव

दो अंतः पड़ोसी राज्य बिहार और झारखंड की सरकार हर साल दो महीने चलने वाले श्रावणी मेला का संयुक्त आयोजन करती है। सावन महीने में बैद्यनाथ धाम की पैदल यात्रा श्रावण मेला जुलाई-अगस्त में शुरू होती है। इस दौरान सबसे पहले तीर्थ यात्री भागलपुर जिले के सुल्तानगंज में गंगाजल भरते हैं। इसके बाद वे गंगाजल को अपने कांवर में रखकर बैद्यनाथ धाम और बासुकीनाथ की ओर बढ़ते हैं। लगभग 90 किमी की यह पैदल यात्रा दो राज्यों और 4 जिलों से हो कर गुजरता है। जैसे भागलपुर, मुंगेर, बांका, दुमका आदि वह जिला हैं। यहां हर साल 5 करोड़ श्रद्धालु बाबा का दर्शन करने पहुंचते हैं। देवघर में स्थित बैद्यनाथ बाबा धाम मंदिर में दर्शन करने तक ध्यान रखा जाता है जिन पात्र में पवित्र गंगाजल है, वह जमीन से न सटे।

बैद्यनाथ मंदिर के अलावा आसपास में कई दर्शनीय स्थल हैं

बासुकिनाथ धाम मंदिर

झारखंड के दुमका जिला में स्थित यह प्रसिद्ध धाम देवघर-दुमका राज्य राजमार्ग पर ही है। बासुकिनाथ हिंदुओं के बीच काफी लोकप्रिय तीर्थ स्थल है। हर वर्ष देश के सभी भागों से लाखों श्रद्धालु मंदिर में भगवान शिव को जल चढ़ाने आते हैं। सावन महीने के दौरान मंदिर में बहुत अधिक भीड़ बढ़ जाती है। इस मंदिर में दर्शन के लिए सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दूसरे देशों से भी आते हैं। बासुकिनाथ बाबा भोले नाथ का दरबार माना जाता है। मंदिर में शिव और माँ पार्वती का मंदिर आमने-सामने है। परिसर में अन्य मंदिर भी हैं जो अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं।

नौलखा मंदिर

झारखंड के देवघर में बना है नौलखा मंदिर। यह मंदिर बैद्यनाथ धाम मुख्य मंदिर से करीब दो किमी दूर स्थित है। नौलखा मंदिर राधा-कृष्ण को समर्पित है। यह मंदिर 146 फीट ऊंचा है। ऐसा कहा जाता है कि इसे बनाने में 9 लाख रुपए खर्च हुआ था। इसीलिए यह नौलखा (नौ लाख का) मंदिर के रूप में भी लोकप्रिय है।

संगमरमर से निर्मित यह मंदिर राधा-कृष्ण को समर्पित है

नौलखा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर संगमरमर से बना है। फोटो क्रेडिट: निखिल विद्यार्थी (अप्रैल 2023)

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1900 के दशक के मध्य में पत्थरों और संगमरमर से निर्मित यह भव्य मंदिर परिसर हिंदू देवताओं राधा और कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर की ऊंचाई 146 फीट है। मंदिर को बनाने में खर्च की गई राशि नौ लाख रुपये थी। इसलिए इसे जाना गया। यह पूरी राशि रानी चारुशिला द्वारा दान दिया गया था। रानी चारुलता पथुरिया घाट राजा के परिवार से आती थी। कम उम्र में ही उन्हें अपने पति अक्षय घोष और बेटे को खोना पड़ा। इन दुःखद घटनाओं से दुखी रानी ने अपना घर छोड़ दिया और संत बालानंद ब्रह्मचारी जी से मिलीं। जिन्होंने उन्हें इस मंदिर का निर्माण करने के लिए कहा था। यह मंदिर बाबा की नगरी देवघर (मुख्य शहर) से लगभग 2 किमी दूर है। भगवान भोले शंकर का दर्शन करने के लिए बैद्यनाथ धाम आए श्रद्धालुओं के बीच यह मंदिर बहुत लोकप्रिय है। मंदिर के नजदीक शांति लोगों और यात्रियों को खूब भाता है।

नंदन पर्वत

झारखंड के देवघर में स्थित नंदन पहाड़ एक पहाड़ी की चोटी पर बना मनोरंजन पार्क है। स्थानीय लोगों के बीच यह जगह पसंदीदा पिकनिक स्थल है। यहां आप जॉय राइड का मजा ले सकते हैं, बोटिंग कर सकते हैं। नंदन पर्वत से शाम में सूर्यास्त का नजारा देख कर आप खुश हो जाएंगे। यहां पर मनोरंजन पार्क के अलावा एक बगीचा और तालाब भी है। इस पिकनिक स्थल का मैनेजमेंट झारखंड राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा होता है।

बैद्यनाथ धाम के नगर देवघर से नंदन पर्वत के लिए कैब, ऑटो और छोटे वाहन मिलते हैं। मंदिर के पास वाले शिवगंगा के निकट दिन भर ऑटो टेंपू आदि मिलता रहता है।

तपोवन, तपोनाथ महादेव मंदिर और गुफा

आपके देवघर में एक आधा दिन हैं तो तपोनाथ महादेव मंदिर जरूर घूमें। फोटो क्रेडिट: झारखंड फीड

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तप की भूमि अर्थात तपोवन प्राचीन समय का एक प्रमुख ध्यान केंद्र था। जहां कई ऋषि-मुनियों ने तपस्या किया है। यह देवघर से से मात्र 10 किमी दूर है। यहां शिवजी का मंदिर है, जो तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है। इस शिव मंदिर को तपोनाथ महादेव के नाम से जाना जाता है। तपोवन पहाड़ पर आपको कई गुफाएं भी देखने को मिलेंगी। तपोवन के एक गुफा में एक शिवलिंग स्थापित है। जिसके बारे में मान्यता है कि ऋषि वाल्मीकि ने यहां अपने पापों से मुक्ति हेतु तपस्या के लिए आए थे। एक गुफा में एक खड़ाऊं देखने को मिलता है। कहा जाता है कि यह हनुमान जी का एक खड़ाऊं है। यहां तक पहुंचने के लिए खड़ी पहाड़ी कठिन चढ़ाई से गुजरना पड़ता है। अगर आपके पास देवघर में एक आधा दिन है तो तपोवन और तपोनाथ महादेव मंदिर जरूर घूमें।

त्रिकुटी पर्वत

2,470 फीट ऊंचाई पर पहाड़ी मंदिरों के लिए खूब प्रसिद्ध त्रिकुटी पहाड़ बादलों में छिप कर दृश्य से मन मोह लेते हैं।

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त्रिकुटी पर्वत का नाम इसके स्थलाकृति के कारण पड़ा है। इस पर्वत की तीन मुख्य चोटियां हैं, इसलिए इसका नाम त्रिकुटी रखा गया। यह 2,470 फीट ऊंचा है। देवघर से ड्राइव और बाद में रोपवे की सवारी से आप इस पहाड़ी की चोटी पर पहुंच सकते हैं। देवघर से 24 किमी पश्चिम में स्थित यह जगह अपने पहाड़ी मंदिरों के लिए खूब प्रसिद्ध है। पहाड़ी में कई विशाल शिलाखंड भी स्थित हैं। वही दाईं ओर एक छोटा मंदिर है, जहां देवी पार्वती की पूजा की जाती है।

तीन मुख्य चोटियों के कारण इसका नाम त्रिकुटी रखा गया। फोटो क्रेडिट: निखिल विद्यार्थी

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सत्संग आश्रम, बाबाधाम मंदिर से 5 किमी दूर

फोटो क्रेडिट: द सत्संग सॉन्ग्स

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देवघर के स्थानीय लोगों के बीच सत्संग लघुनाम से लोकप्रिय है। यह सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि भारत के शीर्ष धार्मिक प्रतिष्ठानों में से एक है। जिसकी स्थापना वर्ष 1946 में हुई थी। इस सत्संग आश्रम की विश्व में 2,000 से भी अधिक केंद्र हैं। देवघर में स्थित सत्संग आश्रम ठाकुर अनुकुलचंद्र ने शुरू किया था। यह आश्रम का मुख्य शाखा है। यह मुख्य शाखा पहले बांग्लादेश में स्थित था। लेकिन बाद में देवघर में स्थानांतरित किया गया। आश्रम अच्छी दूरी में फैला हुआ है, जिसमें कमरे और छात्रावास की सुविधा है। यहां पर्यटकों के लिए भी आवास सुविधा उपलब्ध है। जिसे ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। आश्रम के परिसर में ही एक संग्रहालय और चिड़ियाघर भी है, जो घूमने आए लोगों के लिए खुले हुए रहते हैं।

रिखीया आश्रम

फोटो क्रेडिट: रिखियापीठ आश्रम

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यह एक छोटा गांव है। जो हिंदू तीर्थ यात्रियों के लिए बहुत महत्व रखता है। बैद्यनाथ धाम मंदिर से 12 किमी दूर रिखियापीठ भारत के सबसे पुराने आश्रम में गिना जाता है। इसकी स्थापना स्वामी शिवानंद सरस्वती के अनुयायी स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने किया था। इस आश्रम में कई विद्वान संत रह चुके हैं। यहां पर आपको बहुत शांति मिलेगी। जिसका श्रेय हमारे ऋषियों को जाता है, जिनकी साधना से ही यह संभव है। यहां से हर साल देश-विदेश के लोग शांति पाने के लिए दौरा करते हैं।

बैद्यनाथ धाम / देवघर पहुंचने का आसान तरीका

बैद्यनाथ धाम और इसके आसपास के दर्शनीय जगहों तक पहुंचने के लिए समीप का रेलवे स्टेशन जसीडीह है। जो यहां से 6 किमी दूर है। यह रेलवे स्टेशन दिल्ली से हावड़ा मेन रेल लाइन पर है। जिसके कारण यहां आने में कोई समस्या नहीं है। इससे निकट के हवाई अड्डे कोलकाता, पटना और रांची से क्रमशः 350, 250, 280 किमी दूर हैं। बैद्यनाथ धाम सड़क मार्ग से सभी प्रमुख शहरों तथा राज्य और राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ा हुआ है।

रहने के लिए आपको आसानी से आश्रम मिल जाएंगे और छोटे-बड़े होटल भी हैं। आश्रम भीड़ को देखते हुए उपलब्धता पता करना होगा। जो मंदिर के ठीक पास में बने हुए हैं। आस पास के दुकानदारों से इस बारे में पूछ सकते हैं।

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