मसूरी को पर्वतों की रानी कहते हैं और चारों तरफ से हिमालय के बीच में घिरा ये हिल स्टेशन अपनी खूबसूरती के लिए काफी ज्यादा मशहूर है। मसूरी जा कर लोग अक्सर इन वादियों में खो जाते हैं और वापिस जाने के लिए तैयार नहीं होते हैं। हिमालय की ऊंचाइयों से टकराते हुए बादल, चारों तरफ हरी-भरी घाटियां, रंग बिरंगे फूल, बड़े-बड़े पेड़ और उन पेड़ों की ठंडी हवा, किसी भी शख्स को अपना दीवाना बना सकती है। ये हिल स्टेशन अपने अंदर कई और छोटे-छोटे स्थान समेट कर बैठा है जिनके बारे में आप सभी को जानना जरूरी है।
वैसे तो आमतौर पर जो भी लोग मसूरी घूमने के लिए जाते हैं तो वो मसूरी लेक, केंपटी फॉल्स, लाल टिब्बा, गन हिल, मॉल रोड, तिब्बती मंदिर, कंपनी गार्डन, कैमल बैक रोड जैसी जगहों को घूमना पसंद करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मसूरी के अंदर ऐसे कई गुप्त रत्न है जो आप नहीं जानते होंगे।
बेनोग वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी मसूरी के उन्ही गुप्त रत्नों में से एक है। अगर आप लोगों को घूमना पसंद है और प्रकृति का आनंद लेते हैं तो बेनोग जगह आपके लिए बिलकुल सही जगह है। बेनोग सैंक्चुरी में अलग अलग तरह के वन्यजीव मिल सकते हैं। पक्षियों, मैमल और कीड़ों की अविश्वसनीय किस्म के लिए ये एक शानदार जगह है। और काफी बेहतरीन भी।
बेनोग वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी घने जंगलों के बीच में है और चारों तरफ से हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों से घिरा है। चौखंभा और बंदरपंच इस सैंक्चुरी से दिखने वाली बहुत ही सुंदर चोटियां हैं। पहले ये सैंक्चुरी विलुप्त पक्षियों जिनके नाम रेड-ब्लिड ब्लू मैगपाई और हिमालय बटेर का घर हुआ करता था। जिसके बाद में इस सेंक्चुरी को बर्ड-वॉचिंग डेस्टीनेशन के रूप में बदल दिया गया था। यहां से सैंकड़ों की तादाद में पक्षियों की प्रजातियां देखी जा सकती है।
एवीफोना यहां पर दिखने वाली एक दुर्लभ प्रजाती है। इसके अलावा लोग यहां पर आकर चित्तीदार हिरन और छिपकली को भी देख सकते हैं लेकिन इसके मौके कम ही होते हैं। वहीं अगर बात करें हिमालय बटेर की तो उसे यहां पर आखिरी बार साल 1876 में देखा गया था। इस सैंक्चुरी में कई दवाइयों के गुणों से भरे पौधें भी हैं और इसके साथ-साथ फर और देवदार के कई पेड़ भी मिल जाते हैं। यहां पर कई जानवर जैसे कि हिमालयन बकरी, हिमालयन भालू और चीता भी यहां पर दिख सकता है। इसके अलावा कई तरह के विलुप्त होते जीव दिख जाएंगे।
पक्षियों और जानवरों के और नजदीक पहुंचाने वाली बेनोग वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी में दर्लभ और विल्पत होती जा रही प्रजातियों के बारे में जानने और समझने को मिलता है। तो वहीं इसके अलावा यहां तक पहुंचने का रास्ता भी काफी अच्छा और दिल छू लेने वाला है चारों तरफ पेड़ और उनकी झड़ती हुई पत्तियों से सजा हुआ रास्ता और उसके ऊपर सूर्योदय या सूर्यास्त का भी अलग ही नजारा यहां पर दिखता है। जो बहुत ही खूबसूरत होता है और दिल में समा जाता है।
कैसे पहुंचें -:
वहीं आपको बता दें कि देहरादून और मसूरी शहर से इस सैंक्चुरी पर आने के लिए आसानी से बसें और टैक्सियां मिल जाती हैं। लाइब्रेरी पॉइंट से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर बनी बेनोग वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी राजाजी नेश्नल पार्क का एक हिस्सा है। आपको बता दें कि ये जगह रोजाना खुलती है और सुबह 7 बजे से शाम के 5 बजे तक रहती है। आपको बता दें कि यहां आने के लिए आप यहां से शाम को जल्दी ही निकल भी जाएं क्योंकि आपको वापिस जाने के लिए हो सकता है कोई साधन ना मिलें। ऐसे में आपको पैदल चलकर आना पड़ सकता है।
गौरतलब है कि ये सैंक्चुरी हर दिन खुली होती है लेकिन फिर भी यहां पर आप अप्रैल से नवंबर के महीने में आएंगे तो इन जीवों के और प्रकृति के ज्यादा नजदीक पहुंच पाएंगे। ऐसे में आपको ज्यादा जानवर और पक्षी देखने को मिल सकते हैं। मैं भी यहां सितंबर में आई थी।
यहां पर आने के लिए सबसे नजदीक का रेलवे स्टेश देहरादून है जो कि मसूरी से 30 किलोमीटर दूर है। वहीं सड़क के माध्यम से कई रोडवेज की बसें यहां पर आती है और दिल्ली से तो लोग अपनी गाड़ियों में भी यहां आ जाते हैं। वहीं 60 किलोमीटर की दूरी पर जोली ग्रांट एयरपोर्ट भी है।
मेरी यात्रा का वर्णन आप सभी को कैसा लगा। अपने विचार अवश्य व्यक्त करे। अभी तक के लिए इतना ही….
तो मिलते है फिर अगले ब्लॉग में।……💁