हिमाचल में भी है एक प्राग, एक बार देख लिया तो खुश हो जाओगे

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भारत को कृषि प्रधान देश के रूप में देखा जाता है। जहाँ ज्यादातर लोग गाँवों में रहते हैं और खेती करते हैं। हमें लगता है गांवों में देखने के लिए कुछ नहीं होता। उसकी पहचान केवल कच्चे रास्ते, मिट्टी से बने घर और खेत तक है। लेकिन क्या आप जानते हैं भारत में दो गाँव ऐसे भी हैं जहाँ यूरोपीय कल्चर का ख़ास प्रभाव है, गर्ली और प्रागपुर। कांगड़ा घाटी के धौलाधार पहाड़ों के बीच बसे इन दोनों गाँवों में हेरिटेज का खज़ाना भरा पड़ा है।

श्रेय: आउटलुक।

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इन गाँवाे की स्थापना सूद समुदाय के लोगों ने 16 वीं शताब्दी में की थी। इन व्यापारियों ने पूरी दुनिया घूमी जिसके बाद वो भारत में बस गए। यहाँ उन्होंने स्कूल, अस्पताल और बंगले बनवाए। जिनका निर्माण यूरोपीय आर्किटेक्चर को ध्यान में रखकर किया गया है। इन बिल्डिंगों को देखकर आपको लगेगा आप प्राग जैसे किसी यूरोपीय देश में हैं लेकिन असल में आप हिमाचल की गोद में बसे दो बहुमूल्य नगीनों की सड़कों पर टहल रहे होंगे।

क्या है खासियत?

कांगड़ा घाटी विरासत और इतिहास के लिए कोई अजनबी नहीं है। यहाँ लगभग हर जगह कोई ऐसी ची़ज मिल जाती है जिसका पुराने समय में कुछ महत्व रहा होगा। गर्ली और प्रागपुर भी ऐसी ही दो जगहें हैं। 1800 के दशक में गर्ली गाँव बहुत ज़रूरी जगह थी। यहाँ ज़रूरत की हर एक चीज मौजूद थी। गर्ली में घूमना समय में वापस कदम रखने जैसा है। यहाँ की इमारतों को देखकर साफ़ पता चलता है कि ये गाँव अपने समय में कितना गौरवशाली रहा होगा। शांत गलियों और बड़ी हवेलियों वाला ये गाँव कल्चर की खिड़की में झांकने का अच्छा तरीका है। प्रागपुर की बात करें तो जैसा इस जगह का नाम है, वैसा यहाँ का काम। घुमावदार गलियों, कोठरियाँ, मिट्टी की दीवारें और स्लेट वाले घरों वाला ये गाँव सुंदर सपने जैसा है। प्रागपुर में घूमना आधुनिकता के पास रहकर सरल और सुलझी ज़िन्दगी का स्वाद चखने जैसा है।

क्या करें?

गर्ली और प्रागपुर को अच्छी तरह से देखना चाहते हैं तो पैदल घूमना चाहिए। यहाँ लगभग हर इमारत की बनावट में कुछ ख़ास बात है। स्लेट की छत, जो यहाँ के लगभग हर घर में देखने को मिलती है, के आलावा हर बिल्डिंग की कुछ अनूठी विशेषताएं हैं। एक कोठरी के दोनों तरफ़ दो संतरी खड़े मिलेंगे ( संतरी वाली कोठी) और किसी में झरोखा खिड़कियाँ मिलेंगी।

1. द शट्यू

सीधे शब्दों में कहें तो ये एक हरिटेज होटल है। लेकिन ये हेरिटेज होटल कैसे बना? इसके लिए पीछे की कहानी जान लेना ज़रूरी है। द शट्यू का निर्माण लाला मेला राम सूद ने 1921 में करवाया था। कई सालों तक बाकी इमारतों की तरह ये भी खाली पड़ा था। सितंबर 2012 में वापस से इसका नवीनीकरण किया गया। जिसके बाद इसे हेरिटेज होटल बना दिया गया। इस होटल के पुराने ढांचे को एकदम पहले जैसा ही रखा गया है। केवल आधुनिक सुविधाओं को जोड़कर इस जगह को यात्रियों के रहने के हिसाब से ढाल दिया गया है। यहाँ एक नया हिस्सा बनाया गया है जिसमें स्विमिंग पूल की व्यवस्था की गई है। इस बिल्डिंग में चमकीले लाल, नीले, हरे और पीले रंग की खिड़कियाँ हैं जो सूरज ढलने के बाद बेहद खूबसूरत लगती हैं। इस होटल का निर्माण पोर्तुगीज, मुगल, राजस्थानी और कांगड़ी आर्किटेक्चर को ध्यान में रखकर किया गया है और देखने में ये एक बड़े चर्च जैसा लगता है। अगर आप गर्ली आएं तो इस जगह को देखना बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए।

2. नौरंग यात्री निवास

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1922 में बनी इस ईंटों की नायाब इमारत की जितनी तारीफ़ की जाए कम होगी। द शट्यू से कुछ दूर ये जगह पहले के समय में यात्रियों के लिए सराय का काम करती थी। उसके बाद गर्ली की बाकी बिल्डिंगों की तरह ये जगह भी खंडहर जैसी हो गई थी। कुछ सालों पहले इसका सुधार किया गया। जिसके बाद इस जगह को वापस से लोगों के ठहरने के लिए खोल दिया गया। यहाँ घुसते ही आपको लंबा गलियारा मिलेगा जिसके बाद एक बड़ा आंगन आपका इंतज़ार कर रहा होगा। आंगन के चारों तरफ कमरे हैं। इस जगह की ख़ास बात ये है कि यहाँ आप पैचवर्क सीख सकते हैं। पैचवर्क एक तरह की कारीगरी होती है जिसमें अलग अलग कपड़ों के टुकड़ों को जोड़कर चादर, दुपट्टा जैसी चीज़ें बनाई जाती हैं।

3. लोकल बेकरी और धाम का स्वाद

श्रेय: बीईंग पहाड़िया।

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किसी भी जगह को अच्छे से जानने चाहते हैं तो वहाँ का लोकल खाना चखना चाहिए और अगर आप हिमाचल जैसी खूबसूरत जगह पर हैं फिर लोकल खाने का ज़ायका लेना तो बनता है। गर्ली की लोकल बेकरी में आप ताज़ा बने हुए ब्रेड और बन का स्वाद ले सकते हैं और छोटे खाने के स्टॉल से लोकल हिमाचली खाना खा सकते हैं। इसके अलावा आपको धाम ज़रूर खाना चाहिए। धाम हिमाचल का पारंपरिक खाना है जिसमें राजमा, कढ़ी और सेपु बड़ी होता है। धाम एक तरह से हिमाचली खाने की विरासत है और यहाँ के लोगों के खाने का बहुत ज़रूरी हिस्सा भी है।

4. द जजेज़ हाउस

300 साल पुराना ये बंगला प्रागपुर का मुख्य आकर्षण है। आम और लीची के बागों और कई एकड़ के बीच बसी इस बिल्डिंग में 2 मंजिले हैं। हवेली लाल रंग की है और इसमें 6 बड़े कमरे हैं जहाँ कोलोनियल दशक का फर्नीचर और पेंटिंग भी हैं। यहाँ कई ऐसी कहानियाँ हैं जिन्हें आपको जान लेना चाहिए। इन सब जगहों पर आकर लगता है कि अपनी परंपरा और संस्कृति को बचाकर रखना कितना ज़रूरी होता है। प्रागपुर की सड़कों पर घूमने से मालूम चलता है। यहाँ ज़िन्दगी की रफ़्तार कितनी धीमी है। ना किसी को कहीं जाने की जल्दी है और ना कुछ काम करने की।

5. कांगड़ा किला

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गर्ली की यात्रा कांगड़ा किले को बिना देखे अधूरी होगी। पहाड़ी के ऊपर बने इस किले से नीचे घाटी का खूबसूरत नजारा दिखता है और इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि इस किले को जीतने के लिए लड़ाई हुई होगी। इस किले का निर्माण 15वीं शताब्दी में कटोच राजाओं ने करवाया था और ये भारत के सबसे पुराने किलों में से एक है। किले में ऑडियो गाइड लेने की सुविधा है जिससे किले और उसमें रहने वाले लोगों के इतिहास के बारे में जानकारी ले सकते हैं। किले में मंदिर भी है जिसकी दीवार पर बेहद खूबसूरत नक्काशी है। गर्मियों में अपने साथ टोपी ज़रूर रखें क्योंकि सुबह के समय सूरज बहुत तेज़ हो जाता है।

6. मसरूर रॉक कट मंदिर

इस मंदिर की भव्यता को शब्दों में बयान करना मुश्किल है। छठवीं और आठवीं शताब्दी के बीच बने ये मंदिर बड़े बड़े पत्थरों को काटकर बनाए गए हैं। इनकी बनावट पारंपरिक भारतीय आर्किटेक्चर तरीक़े से की गई है जिसमें शिखर यानी टॉवर जैसी चीज़ें शामिल हैं। इन टावरों पर नक्काशी है जिसमें भगवानों के चित्र हैं। परिसर के सामने एक बड़ा पूल है जो कंबोडिया के अंगकोर वट की याद दिलाता है। ये मंदिर इतने ख़ास है इन्हे एक बार ज़रूर देख लेना चाहिए।

7. नाइट सफ़ारी

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गर्ली में मंदिरों और बिल्डिंगों के आलावा एक और चीज़ है जिसको करके आपको बहुत मज़ा आएगा। गर्ली से कुछ दूर जंगल में सफ़ारी लेना वो अनुभव है जिसको बिल्कुल मिस नहीं करना चाहिए। ये जंगल संरक्षित इलाकों में है इसलिए यहाँ सफ़ारी से जुड़ी सभी सुविधाएँ हैं। ये जंगल तेंदुआ और जंगली सुअर जैसे कई जानवरों का घर है। अगर आपको कुछ भी दिखाई नहीं देता है तो रात में जंगल की पहाड़ियों में घूमना भी शानदार एहसास होता है। अगर किस्मत अच्छी रही तो आप छोटे जानवरों को देख सकते हैं।

कैसे पहुँचे?

प्रागपुर से गर्ली 4 किमी. दूर है। यहाँ आने का सबसे अच्छा तरीका है दिल्ली से कांगड़ा के लिए बस लीजिए फिर वहाँ से आप टैक्सी या कैब लेकर प्रागपुर पहुँच सकते हैं। प्रागपुर से गर्ली के लिए लोकल बसें चलती हैं इसलिए आपको कोई दिक्कत नहीं होगी। कांगड़ा से प्रागपुर 44 किमी. दूर है जिसमें आपको 1 घंटे का समय लगेगा।

अगर आप फ्लाइट से आना चाहते हैं तो गाग्गल एयरपोर्ट सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट है जो प्रागपुर से 55 किमी. की दूरी पर है। इसके अलावा पठानकोट एयरपोर्ट भी है जो प्रागपुर से 100 किमी. दूर है।

ट्रेन से आने के लिए आपको पहले पठानकोट आना होगा। पठानकोट से आप गुलेर होकर कांगड़ा पहुँच सकते हैं। खूबसूरत वादियों के बीच लगभग 2000 फीट की ऊँचाई पर स्थित दोनों गाँव इतिहास के पन्नों से घिरे हुए हैं।

क्या आपने इनमें से किसी हेरिटेज विलेज की यात्रा की है? अपना सफरनामा यहाँ लिखें।

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