Hey welcome back to another Blog. आज हम आपको विश्व की दूसरी भगवान भोलेनाथ की अष्ट मुख (8 Face) की मूर्ति का दर्शन करेंगे। विश्व मे भवगान भोलेनाथ की दो मूर्ति है पहली नेपाल में और दूसरी मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले मे तो आइये आपको ले चलते हैं इस विख्यात मन्दिर की ओर ।
ऐसी है प्रतिमा -
पशुपतिनाथ की तुलना काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ से की जाती है। मंदसौर स्थित पशुपतिनाथ प्रतिमा अष्टमुखी है। जबकि नेपाल स्थित पशुपतिनाथ चारमुखी हैं। प्रतिमा में बाल्यावस्था, युवावस्था, अधेड़ावस्था व वृद्धावस्था के दर्शन होते हैं। इसमें चारों दिशाओं में एक के ऊपर एक दो शीर्ष हैं। प्रतिमा में गंगावतरण जैसी दिखाई देने वाली सफेद धारियां हैं।
प्रतिमा की विशेषता: मुख-08, ऊंचाई-7.3 फीट, गोलाई-11.3 फीट, वजन-64065 किलो 525 ग्राम।
अष्टमुख की विशेषता
प्रतिमा के आठों मुखों का नामांकरण भगवान शिव के अष्ट तत्व के अनुसार है। हर मुख के भाव व जीवन काल भी अलग-अलग हैं। 1-शर्व, 2-भव, 3-रुद्र, 4-उग्र, 5-भीम, 6-पशुपति, 7-ईशान और 8 महादेव।
यह मंदिर भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित है। भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित इस मंदिर में दर्शन के लिए प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु आते हैं, शुपतिनाथ लिंग विग्रह में चार दिशाओं में चार मुख और ऊपरी भाग में पांचवां मुख है।
इतिहास - मंदसौर के ही एक उदा नाम के धोबी द्वारा जिस पत्थर पर कपड़े धोये जाते थे वही पत्थर भगवान पशुपतिनाथ की मूर्ति थी ! बताया जाता है कि एक दिन वह गहरी नींद में सो रहा था तो उसे स्वयं भगवान शंकर सपने में आये और उसे बोले कि तू जिस पत्थर पर अपने व लोगो के मेले कपड़े धोता है वही मेरा एक अष्ट रूप है ! यह सुनकर उस धोबी ने सुबह अपने दोस्तों को यह बात बताई और सब ने मिलकर उस मूर्ति को नदी के गर्भ से बाहर निकाला ! मूर्ति इतनी विशालकाय ओर भारी थी कि 16 बेलों की जोड़ी भी उसे खीचने में असमर्थ हो रही थी, पर लोगो की मदद से मूर्ति को निकाल गया ! मूर्ति को नदी के उस कोने से इस कोने पर जब लाया जा रहा था तब एक चमत्कार हुआ मूर्ति उस कोने से इस कोने आ तो गई परन्तु मूर्ति को नदी से दूर एक उचित स्थान पर स्थापित करने बेलो की सहायता से ले जाया जा रहा था तो वह जैसे नदी से दूर जाना नही चाह रही थी जिस जगह आज मूर्ति स्थापित है वही जगह जहां से मूर्ति हिली ही नही! आज उस जगह पर भगवान पशुपतिनाथ का विशालकाय मंदिर स्थापित है ! मूर्ति को निकालने के वक्त से लगभग 18 सालो तक मूर्ति की स्थापना नही हो पाई थी क्योंकि उस वक्त संसाधनों का बहुत अभाव हुआ करता था ! कहा जाता है वहां के एक सज्जन पुरुष श्री शिवदर्शन अग्रवाल द्वारा मूर्ति को अपने बागीचे में संभालकर रखा गया था ! भागवताचार्य श्री श्री 1008 स्वामी प्रत्यक्षानंद जी द्वारा मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी व बाद में ग्वालियर स्टेड की राज माता श्री विजयाराजे सिंधिया द्वारा एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया गया एवं मंदिर शिखर पर स्वर्ण कलश को स्थापित किया गया !
पहुंच मार्ग - निकटम वायुमार्ग - Devi Ahilya Bai Holkar Airport, Indore
निकटम रेलमार्ग - Railway station nearby..
निकटम भूमार्ग - Connect to all NH1 Road easily transportation
So Thank you so much for Reading & for any queries contact me - 9644804140