आपको घूमने का शौक हैं और आप ट्रेक के नाम से डरते हैं। कोई पूछे तो कहते हैं बहाना बना लेते हैं कि 'हम केवल लक्जरी ट्रेवल करते हैं'।तो आप घुम्मकड़ी के एक बहुत बड़े और महत्वपूर्ण अनुभव से वंचित रह जाएंगे। ट्रैकिंग से आप शारीरिक रूप से फिट तो हो ही जाते हैं ,साथ ही साथ कई अचानक आ पड़े चेलेंज को आसानी से फेस करने के लिए तैयार भी हो जाते हैं।अब अगर आप अपने पहले ट्रेक के लिए तैयार हो तो ,ये कुछ दी हुई टिप्स ,आपके पहले ट्रेक को काफी लेवल तक आसान बना देगी।
1. हमेशा अपने साथ एक एक्स्ट्रा मोबाइल रखे। ये वो फ़ोन हो सकते हैं जो पुराने हो गए हैं और आपने इन्हे बेचने के लिए रखा हैं। यह स्मार्टफोन हो तो और भी बढ़िया। इसके कई फायदे हैं। ट्रेक के दौरान आपका मोबाइल अगर कही खो गया तो कम से कम इस एक्स्ट्रा मोबाइल से फोटोग्राफी कर पाओगे। आपका फ़ोन अगर गिर गया और स्क्रीन पूरी फुट गयी,तो इस एक्स्ट्रा फ़ोन में सिम डालकर काम चला सकते हो।इसमें आप ऑफलाइन मेप और गाने डाल कर भी रख सकते हैं,मुख्य फोन की बैटरी बिना कम किये ,इस फ़ोन से गाने वगैरह सुन सकते हैं। मुख्य फ़ोन का स्टोरेज फुल होने पर डाटा इसमें ट्रांसफर कर सकते हैं। मेरे साथ ऐसा हुआ हैं और एक्स्ट्रा फ़ोन साथ रहने से सुदूर पहाड़ों पर मुझे काफी मदद मिली हैं।
2. ट्रेक पर जाने के एक महीने पहले से ही करीब 5 -6 किमी रोज पैदल चले।इसके पीछे एक कारण यह हैं कि जब हम काफी दिनों बाद घंटो घंटो भर पैदल चलते हैं तो कुछ दिन तक हमारे पैरों में दर्द होता हैं,अंगूठों के पास छाले वगैरह हो जाते हैं फिर कुछ दिन बाद सब नार्मल हो जाता हैं ,आपके पैर ,आपका शरीर पैदल चलने का आदि हो जाता हैं। अब अगर आप कसरत नहीं करते और सीधा पहाड़ों पर ट्रेक करने पहुंच गए ,तो आपके पैर पक्के से दुखेंगे ,छाले आपको चलने नहीं देंगे। ज्यादा खतरनाक ट्रेक पर जा रहे हैं हैं तो बेक और लेग की कसरत पर भी ज्यादा ध्यान दे। ट्रेडमिल पर दौड़ने वाले उसको इंक्लाइनड मोड में ऑपरेट करे।
3. ट्रैकिंग के लिए जूते अच्छे वाले ख़रीदे। इन्हे भी कम से कम एक महीने पहले ही पहन कर चलना प्रारम्भ कर दे। नए जूते खरीद कर सीधा ट्रेक पर अगर चले जाओगे तो हो सकता हैं आप चल ही नहीं पाओगे। आपके अंगूठे फसने लग जाएंगे और आगे से दर्द करेंगे। आपका ट्रेक और नए जूतों पर से विश्वास उठ जाएगा।एक्स्ट्रा स्लीपर भी साथ रखे ,अंगूठे दुखने पर कुछ देर आसान वाले रूट पर इन्हे पहन ले।
4. एक सिटी हमेशा साथ रखे ,अपने पुरे ग्रुप को एक एक सिटी लेने के लिए बोल देवे। अगर कभी अनजान पहाड़ो पर अकेले फंस गए और मदद की पुकार चिल्लाते चिल्लाते गला ख़राब हो जाए तो सिटी बजाओं। पहाड़ों पर वैसे भी सिटी की आवाज़ आते ही लोकल लोग अलर्ट हो जाते हैं।एक बार हम ऐसे ही एक अकेले ट्रेक पर फंस गए थे अँधेरे में ,ना आगे बढ़ने का रास्ता था और पीछे जाने का मतलब काफी समय खराब करना था ,दूर दूर तक जंगल ही था ,कोई गाँव नहीं था।हालाँकि हम फंसे तो नहीं पर उस समय मुझे सिटी की अहमियत मालूम हुई।इसके अलावा मुँह की सिटी की आवाज़ से ही हमारी कुछ ही महीनों पहले हिमाचल में जान बची थी , मैंने इस पर भी एक आर्टिकल यहाँ लिखा हुआ हैं।
5. ट्रेक के दौरान पानी ज्यादा पीये ,कोई पेय पदार्थ रास्ते में मिले तो पहले उन्हें प्राथमिकता दे। ट्रेक से पहले पूरा पेट भर कर खाना ना खाये।इस से एक तो चलने में आलस आएगा ,दूसरा अगर कही पेट खराब हो गया और कोई सुविधा ना मिली ,तो तड़पते रह जाओगे ,जिंदगी भर ट्रेक भी याद रहेगा और हां,ट्रेक पर से फिर से विश्वास उठ जाएगा। सही तरीका यह हैं कि रास्ते में साथ लाये हुए नमकीन ,बिस्किट ,चॉकलेट ,डॉयफ्रुइट्स से थोड़ा थोड़ा कर पेट भरे।
6. हमेशा ग्रुप में चले। कम से कम दो लोग तो हमेशा साथ रहे। भूस्खलन हो ,या कही फिसलन हो जाए तो किसी का साथ होने से मानसिक ताकत मिलती हैं।अपने से तेज चलने वालों को देख आत्मविश्वास ना खोये ,सबकी अपनी अपनी स्पीड और केपेसिटी होती हैं।
7. अपना ब्लड ग्रुप याद रखे,कोशिश करे एक डायरी में एमर्जेन्सी नंबर,अपना पता और ब्लड ग्रुप लिख कर हमेशा अपने साथ रखे। महत्वपूर्ण मेडिकल डाक्यूमेंट्स भी हमेशा साथ रखे।
8. ट्रेक का अनुभव बिलकुल भी नहीं हैं तो पहले आसान ट्रेक से शुरूवात करे ,जैसे केदारनाथ ,मनाली का जोगिनी फाल्स ट्रेक ,तुंगनाथ ,केदारकांठा ,बिजली महादेव ट्रेक।आप एक एक दिन वाले छोटे छोटे ट्रेक से पहले अपने शरीर को परखे फिर ज्यादा दिनों के ट्रेक पर जाने का डिसीजन लेवे।
9. पानी हमेशा पीते रहे। हाई एल्टीट्यूड पर काफी लोग चिड़चिड़े हो जाते हैं तो उनकी मानसिक दशा समझे और उनसे बहस ना करे।
10. कोई भी ट्रेक सुबह जल्दी शुरू करे। इस से एक तो शानदार सूर्योदय के दर्शन होंगे। दूसरा , धुप आने पर बर्फ पिघलने से फिसलन भी बढ़ती हैं तो इस से बच जाओगे। तीसरा , रात को अँधेरा होने से पहले अपने गंतव्य पॉइंट पर पहुंच जाओगे।
11. नाख़ून हमेशा काट कर रखे ,स्पेशली पैरों के। वरना ,ट्रेक के दौरान यह आपको चुभेंगे ,हो सकता हैं चमड़ी में फंस भी जाए। मेरे साथ ऐसा हुआ हैं और इस से मैंने असहनीय दर्द झेला हैं।
12. ट्रेक के दौरान आपको टेंटों में रहना होता हैं ,कही कही तो शौच वगैरह के लिए भी टेम्पोरेरी जुगाड़ बनाये जाते हैं।रात को टेंट तेज हवाओं के कारण जोरदार हिलता डुलता भी रहता हैं। कही कही आपको टेंट में पलंग की जगह स्लीपिंग बेग में सोना पड़ता हैं। स्लीपिंग बेग एक केप्सूल की तरह होता हैं,जिसमे अंदर लेट जाओ और चैन लगा कर खुद को पैक करलो। फिर बिना करवट बदले ,रात भर ऐसे ही पड़े रहो। ऐसी सभी चीजों के लिए मानसिक रूप से खुद को तैयार कर लेना चाहिए।
13. ट्रेक खत्म होने पर बचे हुए स्नेक्स ,बिस्किट्स ,दवाइयां ,नमकीन के पैकेट्स आदि सब कुछ वही के जरूरतमंद यात्रियों या गाँव के बच्चो ,लोगों को दे देवे ,तो खुद को भीतर से अच्छा लगेगा।
14. कोशिश करे कि ये सामान हमेशा पैक करे - छोटी कैंची ,फेवीक्विक ,टोर्च ,माचिस ,सुई धागा ,एक्स्ट्रा शू लेस ,ग्लूकोज के पैकेट ,पासपोर्ट साइज फोटो ,आधार कार्ड की एक्स्ट्रा फोटोकॉपी ,मार्कर ,चाक़ू ,एक्स्ट्रा छोटा बेग ,रस्सी ,मेमोरी कार्ड ,कार्ड रीडर ,मेडिकल किट। ये सब चीजे कही भी ,कभी भी काम आ सकती हैं।
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