भविष्य में अगर भारत में कहीं किसी स्ट्रक्चर के अद्भुत निर्माण की बात की जाएगी तो बह मुंबई में बने 8 लेन ब्रिज की बात होगी। जी हां हम बात मुंबई के बांद्रा-वर्ली सी लिंक ब्रिज की कर रहे हैं। जिसके निर्माण के पीछे की कई रोचक बातें हैं जो आपको भी मालूम होनी चाहिए।
भारत का पहला 8 लेन ब्रिज
समुद्र पर बने इस ब्रिज की खूबसूरती देखने लायक है। यह भारत का पहला 8 लेन वाला और सबसे लंबा समुद्र के ऊपर बनाया गया ब्रिज है। ब्रिज की लंबाई 5.6 किलोमीटर है। इस ब्रिज के चालू होने के बाद बांद्रा से वर्ली का सफर एक घंटे से घटकर 10 मिनट रह गया। यह भारत का सबसे सुंदर और ऊँचे ब्रिजों में से एक है। जिसे देख भारत के किसी भी नागरिक का सर फक्र से ऊँचा होना लाजमी ही है।
अब हो रही है समय की बचत
इस ब्रिज के बनने से पहले यहाँ के लोगों द्वारा माहिम कॉजवे का उपयोग किया जाता था। जो कि काफी लंबा होने के साथ-साथ भीड़ भाड़ बाला हुआ करता था। जिससे आए दिन लोगों को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता था। लेकिन अब बांद्रा-वर्ली सी लिंक तैयार होने के बाद से दूरी की समस्या के साथ साथ समय की भी बचत होती है।
सुन्दर और मजबूत ब्रिज
बांद्रा-वर्ली सी लिंक के बारे में कई रोचक बातें भी हैं जिससे कि इस ब्रिज को भारत में पर्यटन की दृष्टि से देखा जाता है। आपको जरूर आश्चर्य होगा कि इस ब्रिज का वजन 56,000 अफ्रीकन हाथियों के बराबर है। इस सुंदर ब्रिज के निर्माण में लगभग 90,000 टन सीमेंट का इस्तेमाल किया गया था। जो कि अपने आप में एक बहुत आश्चर्य की बात है।
ब्रिज को जगमगाने के लिए किया गया इतना खर्च
इस ब्रिज को रोशनियों से जगमगाने के लिए 9 करोड़ रुपए के लगभग खर्च किया गया था। जो कि अपने आप में ही रोचक बात है। बांद्रा-वर्ली सी लिंक के बारे में एक रोचक बात यह भी है कि इस ब्रिज में लगे हुए सभी स्टील केबल को एक साथ जोड़ लिया जाए तो इस स्टील की इतनी लंबाई हो जाएगी जिससे हम पूरी पृथ्वी को एक राउन्ड में लपेट सकते हैं और तो और अगर हम इस सी लिंक की मजबूती की बात करें तो इस ब्रिज में इतनी मजबूत केबल का इस्तेमाल किया गया है जो कि लगभग 900 टन तक का बजन झेल सकता है।
निर्माण में लगी थी 11 देशों की कंपनीयां
आपको जान कर एक आश्चर्य और होगा कि बांद्रा वर्ली सी लिंक को बनाने के पीछे सिर्फ भारतीय कपंनी का हाथ नहीं है बल्कि इसको बनाने के लिए 11 देशों चीन, मिस्र, कनाडा, स्विटजरलैंड, हॉन्गकॉन्ग, ब्रिटेन, थाइलैंड, सिंगापुर, फिलीपींस, इंडोनेशिया और सर्बिया सहित के इंजीनियरस एक झूट हुए थे।
शुरू में आई थी निर्माण में दिक्कत
इस ब्रिज के बनने के शुरुआती समय में ब्रिज निर्माण में बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। क्योंकि यहाँ के आसपास इलाकों के मछुआरों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं नें जनहित के लिए कोर्ट से रोक लगवा दी थी। पर बाद में इस ब्रिज से पब्लिक को मिलने बाले फायदे को देख कोर्ट द्वारा यह रोक हटा दी गयी थी। इस ब्रिज की एक रोचक बात यह भी है कि इस ब्रिज पर सिर्फ बड़े वाहनों को गुजरने की अनुमती दी गई है। दो पहिया और पैदल चलने वाले लोगों को इस ब्रिज से गुजरने की अनुमती हरगिज नहीं है।
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जय भारत