भारत के 8 सबसे रोचक रेलवे स्टेशन जिनसे जुड़ी हैं कुछ अनोखी कहानियाँ!

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हर घुमक्कड़ की जिंदगी में रेलवे स्टेशनों के लिए एक खास जगह होती है। वैसे देखा जाए तो स्टेशन होते भी कितने अनोखे होते हैं। शायद इसलिए क्योंकि इन्होंने साल दर साल होते बदलावों को देखा है। युद्ध से लेकर शहरीकरण तक शायद ही कोई चीज ऐसी होगी जो इन रेलवे स्टेशनों ने नहीं देखी होगी। बचपन से लेकर अबतक बाए नए रेलवे स्टेशन देखने का खुमार बढ़ता ही रहा है। पहले घरवालों के साथ यात्राएँ होती थीं और अब अकेले ट्रेवल करके नई-नई जगहें देखी जाती हैं। वैसे लोग और सफर चाहे जैसा भी हो, स्टेशनों की तरफ कभी ना खत्म होने वाला लगाव होता है। रेलवे स्टेशनों की इन्हीं ऐतिहासिक इमारतों से प्रेरित होकर कितने लेखकों ने इनके आसपास कहानियाँ बुनी हैं। यकीन मानिए आप स्टेशनों के केवल एक यातायात का जरिया नहीं मान सकते हैं। ये स्टेशन आपको ट्रेन का सफर शुरू होने से भी पहले एक नई दुनिया में ले जाते हैं।

1. छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, महाराष्ट्र

मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस अपने आप में बेहद खास जगह है। ये रेलवे स्टेशन इतना शानदार है कि इसको यूनेस्को विश्व हेरिटेज साइट का गौरव भी दिया जा चुका है। इस ऐतिहासिक धरोहर को पहले विक्टोरिया टर्मिनस के नाम से जाना जाता था। 19वीं शताब्दी में बना ये रेलवे स्टेशन आर्किटेक्चर का भी बेहतरीन नमूना है। इसकी डिजाइन में विक्टोरियाई गोथिक के साथ-साथ पारंपरिक भारतीय आर्किटेक्चर की भी झलक दिखाई देती है। इसके ढांचे में तरह तरह के गुंबद और मीनारें भी हैं। इसमें फूलों की डिजाइन का भी इस्तेमाल किया गया है। रेलवे स्टेशन की शान बढ़ाने के लिए इसपर एक 8 सितारा गुंबद भी है। इस रेलवे स्टेशन को एफ. डब्ल्यू. स्टीवन्स ने डिजाइन किया है। इस स्टेशन की इमारत बनने में कुल 10 सालों का समय लगा था जिसको महारानी की गोल्डन जुबली के दिन खोला गया था। उस समय ये बॉम्बे की सबसे कीमती और महंगी इमारत थी। खैर 1966 में इस स्टेशन का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रख दिया गया था।

2. काचिगुडा स्टेशन, तेलंगाना

शहर की भीड़भाड़ में इस रेलवे स्टेशन की खूबसूरती देखने से आप चूक सकते हैं। लेकिन यदि आपका तेलंगाना आना हो तो दो पल ठहरकर आपको इस स्टेशन का ऐतिहासिक महत्व समझने की कोशिश जरूर करनी चाहिए। देखा जाए तो पूरा तेलंगाना शहर ही इस स्टेशन के आसपास बसा और बढ़ा है। इस स्टेशन का निर्माण 1916 में हुआ था। उस समय निजाम ओस्मान अली खान का दौर था। गोदावरी वैली लाइट रेलवे के तहत इस स्टेशन को बनवाया गया था जिससे व्यापार को और बढ़ावा मिल सके। कुल मिलाकर इस स्टेशन की वजह से देश के इस हिस्से को मुंबई जैसे बड़े शहरों से जोड़ा गया था। इस स्टेशन में बेहतरीन आर्किटेक्चर और 100 सालों पुरानी सीढ़ी के अलावा और भी बहुत कुछ है। काचिगुडा रेलवे स्टेशन में महिलाओं के लिए एक अलग हिस्सा हुआ करता था जिसमें पर्दा प्रथा का चलन होता था। जिससे महिलाएँ आराम और शांति से ट्रेन में चढ़ सकें। स्टेशन का रेलवे म्यूजियम भी यहाँ आने वाले पर्यटकों को खूब पसंद आता है।

3. चारबाग रेलवे स्टेशन, उत्तर प्रदेश

आर्किटेक्चर का बेहतरीन नगीना माने जाने वाले इस रेलवे स्टेशन से प्यार करने के लिए केवल एक नजर ही काफी है। चटख लाल और सफेद रंग में बने इस रेलवे स्टेशन का निर्माण 1914 में हुआ था। नवाबों के शहर लखनऊ की शान बढ़ाने वाले इस स्टेशन का डिजाइन जे एच हॉर्निमेन ने तैयार किया है। इस स्टेशन की खास बात ये भी है कि इसमें मुगल के साथ-साथ राजस्थानी कल्चर से जुड़ी चीजों का भी बहुत बढ़िया तरीके से इस्तेमाल किया गया है। इस भव्य स्टेशन में आपको बड़े-बड़े गुंबद और मीनारों के साथ-साथ एक हरा-भरा बगीचा भी देखने के लिए मिलता है। जो स्टेशन के चमक को और भी बढ़ा देता है। स्टेशन को बाहर से देखने पर आपको ये किसी पुराने राजपूताना महल जैसा लगेगा। लेकिन यदि आप इसको प्लेन से देखेंगे तो ये स्टेशन आपको शतरंज के बोर्ड जैसा दिखेगा। इस स्टेशन की खास बात है कि बाहर के पोर्च में खड़े होकर आपको कोई भी ट्रेन की आवाज नहीं सुनी देगी। केवल यही नहीं चारबाग रेलवे स्टेशन वो जगह है जहाँ महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के बीच पहली निजी बैठक हुई थी। इस ऐतिहासिक मीटिंग को याद करने के लिए स्टेशन पर एक खास पत्थर भी लगाया गया है।

4. रोयापुरम स्टेशन, तमिलनाडु

तमिलनाडु के रोयापुरम स्टेशन को बेहद सरल और सादे तरीके से बनाया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस स्टेशन के ढांचे में अबतक किसी भी तरह की कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। कोलोनियल आर्किटेक्चर का बेहतरीन नमूना होने के साथ-साथ ये रेलवे स्टेशन देश का सब पुराना स्टेशन भी है। ऐसा इसलिए क्योंकि बॉम्बे और ठाणे स्टेशनों के ढांचे में अब बहुत बदलाव किए जा चुके हैं। लेकिन ये स्टेशन आज भी पहले जैसा ही है। 1856 में बने इस स्टेशन से पहली ट्रेनें अंबुर और तिरुवल्लूर के लिए चलाई गईं थीं। मद्रास रेलवे कंपनी द्वारा बनाए गए इस स्टेशन का रोयापुरम में होना भी खास है। स्टेशन को बनाने के लिए रोयापुरम का चुनाव इसलिए भी किया गया था क्योंकि ये जगह ब्रिटिश कारोबारियों की बस्ती के बेहद नजदीक थी। साल 2016 में मद्रास हाई कोर्ट ने इस 160 साल पुरानी हेरिटेज इमारत में किसी भी तरह का बदलाव करने पर पाबंदी लगा दी थी। जिसकी वजह से एक स्टेशन आजतक अपने ओरिजिनल दशा में है।

5. हावड़ा स्टेशन, पश्चिम बंगाल

यदि आप कोलकाता गए हैं तो आपने हावड़ा ब्रिज का दीदार जरूर किया होगा। कोलकाता की पहचान बन चुका ये पुल आपको इस शहर की एक और ऐसी ही ऐतिहासिक जगह पर ले जाता है - हावड़ा स्टेशन। लाल पत्थरों से बना ये विशाल स्टेशन भारत का दूसरा सबसे पुराना रेलवे स्टेशन है। केवल यही नहीं हावड़ा स्टेशन की गिनती देश के सब एबदे स्टेशनों में भी की जाती है। 2016 में इस स्टेशन का 111 वां स्थापना दिवस मनाया गया था। 1 दिसंबर 1905 में इस 6 प्लेटफॉर्म वाले स्टेशन को आम जनता के लिए खोला गया था। इस समय इस स्टेशन को बनाना अंग्रेजों के लिए भी बड़ी उपलब्धि थी। ये ब्रिटिश इंजीनियरों की अव्वल दर्जे की कारीगरी और कौशल का बेहतरीन उदाहरण है। आज ये स्टेशन पूर्वी भारत के लोगों की जिंदगी में बेहद महत्वपूर्ण जगह बना चुका है। 23 प्लेटफॉर्म वाले इस स्टेशन पर हर रज़ लगभग 1 मिलियन से भी ज्यादा लोग आते जाते हैं। रोमन और पारंपरिक बंगाली आर्किटेक्चर का मिश्रण लिए ये स्टेशन हुगली नदी के तट पर स्थित है। इस स्टेशन की पहचान एक बड़ी-सी घड़ी है जिसको बंगाली में बोरो घरी के नाम से जाना जाता है।

6. राशिदपुरा खोरी स्टेशन, राजस्थान

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ट्रेनों से सफर करने के समय हम अक्सर बड़े और नामचीन स्टेशनों पर उतरना पसंद करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं ग्रामीण भारत में कुछ ऐसे नायाब स्टेशन हैं जिनके रख-रखाव और संचालन से लेकर साफ-सफाई तक का सारा काम गाँव के लोग करते हैं? अगर आप ये नहीं जानते तो बता दें राशिदपुरा खोरी भी ग्रामीण भारत का एक छोटा सा स्टेशन है जो सिकर लक्ष्मणगढ़ जिले का हिस्सा है। सिकर लक्ष्मणगढ़ उत्तर पश्चिम रेलवे के अंदर आता है। इस नायाब रेलवे स्टेशन के रख रखाव की जिम्मेदारी यहाँ के गाँव के लोगों पर ही है। क्योंकि स्टेशन से कुछ खास आमदनी नहीं हो रही थी इसलिए 2005 में रेलवे की जयपुर डिवीजन ने इस स्टेशन को बंद करने का आदेश दे दिया था। लेकिन स्टेशन के बंद होने से राशिदपुरा खोरी के लगभग 20,000 लोगों की जिंदगी पर असर पड़ सकता था। इसलिए गाँव के लोगों ने रेलवे को चिट्ठी लिखकर स्टेशन को वापस खोलने की मांग की थी। 2009 में इस स्टेशन को एक बार और खोल दिया गया। लेकिन इसके लिए एक शर्त भी रखी गई थी। रेलवे का कहना था कि स्टेशन पर बिकने वाले टिकटों से कम से कम 3 लाख रुपए की कमाई होनी चाहिए। उसके बाद से गाँव वाले आपस में पैसों का बंदोबस्त करते हैं जिससे स्टेशन को चालू रखा जा सके।

7. बेगुंकोडोर स्टेशन, पश्चिम बंगाल

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श्रेय: रेल यात्री

भूतिया स्टेशन के नाम से मशहूर पुरुलिया का ये रेलवे स्टेशन 42 सालों तक मात्र एक खंडहर था। वजह ये थी कि लोगों को कहना था कि इस रेलवे स्टेशन पर भूतों का कब्जा है। बेगुंकोडोर स्टेशन पुरुलिया के डिस्ट्रिक्ट मुख्यालय से लगभग 43 किलोमीटर की दूरी पर है। भूतिया होने की कहानी ये है कि 1967 में इस स्टेशन के एक रेलवे कर्मचारी की मौत हो गई थी। कहते हैं उसने स्टेशन पर किसी औरत का भूत देख लिया था जिसके बाद उसकी मृत्यु हो गई थी। इस कहानी को सच मानते हुए स्टेशन के सभी कर्मचारियों ने फौरन अपना सामान बांधा और स्टेशन छोड़कर निकल गए। इसके बाद सालों तक ये स्टेशन खाली पड़ा रहा। लेकिन आखिरकार 2009 में ममता बैनर्जी ने गाँव के लोगों के लिए वापस से इस स्टेशन को खोलने की मंजूरी दे दी थी।

8. बड़ोग स्टेशन, हिमाचल प्रदेश

शायद ही कोई पहाड़ प्रेमी होगा जिसने कालका शिमला रूट पर पड़ने वाले इस खूबसूरत स्टेशन के बारे में नहीं सुना होगा। 1903 में बनाया गया ये रेलवे स्टेशन हिमाचल के लोगों के लिए काफी खास है। बड़ोग स्टेशन की बिल्डिंग में स्कॉटिश तरीके से बनाई गई छत है। स्टेशन की खासियत ये भी है कि यहाँ आपको पहाड़ों का बेहतरीन नजारा भी दिखाई देता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कालका शिमला टनल बनाने वाले इंजीनियर का भूत ही इस स्टेशन और गुफा को भूतिया बनाता है। कहते हैं कर्नल बड़ोग ने 1898 में शिमला हिल के दोनों तरफ से खुदाई शुरू की थी। उनका मानना था कि दोनों गुफाएँ पहाड़ के बीच में मिल जाएंगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिसके बाद ब्रिटिश ऑफिशियल्स ने उनके ऊपर सरकारी खजाने की बर्बादी के लिए 1 रुपए का फाइन भी लगाया था। कर्नल को ये बेसत्ती स्वीकार नहीं थी। जिसकी वजह से उन्होंने इसी गुफा के अंदर अपने आप को गोली मार दी। वैसे ये कोई अनोखी कथा नहीं है कि स्टेशन को आज भी भूतिया माना जाता है। खैर इसके बाद अन्य ब्रिटिश इंजीनियर की मदद से एक नई गुफा बना दी गई थी।

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