मध्यप्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन की गणना देश की प्राचीन सप्तपुरियों में होती है। यहाँ पर भगवान शिव महाकाल के रूप में विराजित हैं तो भगवती देवी जगदम्बा ने हरसिद्धि माँ के रूप में इस परम पावन भूमि को कृतार्थ किया है।
यहाँ पर देवी गढ़कालिका का भी प्रसिद्ध मंदिर है। इसी देवी मंदिर के निकट भगवान श्रीहरि विष्णु की एक चतुर्भुज मूर्ति मौजूद है। यह मूर्ति अपनी विशिष्टता और दुर्लभ स्थापत्य के लिए जानी जाती है।
मूर्ति का स्थापत्य
यह मूर्ति पुरातत्वीय दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। यह 93 सेमी चौड़ी तथा 96 सेमी ऊँची है। इस मूर्ति के चारों भगवान विष्णु के चतुर्मुख निर्मित किए गए हैं इसलिए इसे विष्णु चतुष्टिका की संज्ञा दी गई है।
पूर्व की ओर वाले मुख में भगवान विष्णु वासुदेव स्वरूप में है जिनके हाथ में दाएँ क्रम से अक्षमाला लिए वरद मुद्रा, गदा, चक्र एवं शंख दर्शाया गया है। दक्षिण की ओर सिंह मुख संकर्षण का अंकन है जो दाएँ क्रम से हाथों में अक्षमाला लिए वरद मुद्रा, मूसल, हल तथा शंख लिए है। पश्चिम की ओर अनिरूद्ध का अंकन है जिनके हाथों में दाएँ क्रम से अक्षमाला लिए वरद मुद्रा, ढाल, खड्ग एवं शंख का अंकन है। उत्तरी ओर प्रद्युमन का अंकन है जो दाएँ क्रम से हाथों में अक्षमाला लिए वरद मुद्रा, धनुष-बाण एवं शंख लिए है। इस चतुर्मुखी मूर्ति का निर्माण विष्णु धर्मोत्तर पुराण में वर्णित प्रतिमा के अनुरूप ही निर्मित किया गया है।
विष्णुजी की ये चारों मूर्तियां किरीट मुकूुट, श्रीवत्स, कुंडल, कयूर, कटकवलय तथा यज्ञोपवीत से अलंकृत एवं पद्मासन में है। यह प्रतिमा उत्कृष्ट व कलात्मक है तथा बलुआ प्रस्तर से निर्मित 9-10वीं शताब्दी ईस्वी की है। यह दुर्लभ प्रतिमा इसलिए भी विशेष है क्योंकि इस प्रतिमा के प्रस्तर को हल्के हाथों सेे बजाने पर मधुर ध्वनियां निकलती हैं।
बहरहाल, सुरक्षा की दृष्टि से इस दुर्लभ प्रतिमा को एक आयताकार कक्ष में सुरक्षित रखा गया है तथा खिड़की के माध्यम से चारों ओर से मूर्ति सामान्यत: देखी जा सकती है।