मध्यप्रदेश की धार्मिक राजधानी है उज्जैन। उज्जैन की गणना प्राचीन सप्तपुरियों में की जाती है। देश के सबसे पुराने नगरों में से एक उज्जैन में आज भी अतीत के अंश सर्वत्र बिखरे दिखाई देते हैं। किसी समय में अतिप्रतापी सम्राट विक्रमादित्य की राजधानी रहा उज्जैन कविकुलशिरोमणि कालिदास की कर्मभूमि भी रहा।
शिप्रा नदी के निकट स्थित श्रीमहाकालेश्वर मंदिर की ख्याति दिग-दिगन्त तक फैली हुई है। सारे देश से दर्शनार्थी विशेषकर श्रावण माह में यहाँ बाबा महाकाल के दर्शन हेतु पधारते हैं। हाल ही में दर्शनार्थियों के लिए यहाँ महाकाल लोक का निर्माण किया गया है जिसका उद्घाटन गत अक्टूबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कर कमलों से हुआ।
यदि आप भी उज्जैन में महाकाल लोक देखने की इच्छा रखते हैं तो यहां हमने आपके लिए हर वह ज़रूरी जानकारी जुटाने का प्रयास किया है जो आपके लिए ज़रूरी है।
कैसा है महाकाल लोक
श्रीमहाकालेश्वर मंदिर के निकट 946 मीटर लम्बे कॉरिडोर को महाकाल लोक के रूप में बनाया गया है। यहाँ भगवान शिव से सम्बंधित कथाओं की मूर्तियां और चित्र उकेरे गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि मूर्ति के निकट मूर्ति के बारे में संस्कृत, हिंदी और अंग्रेज़ी में दर्ज़ किया गया है। महाकाल लोक में सबसे पहले प्रथमपूज्य गणेशजी की एक बड़ी प्रतिमा स्थापित है।
महाकाल लोक से ही महाकाल मंदिर में जाने का मार्ग तैयार किया गया है जिससे कि श्रद्धालु महाकाल लोक घूमने के साथ वहीं से बाबा महाकाल के दर्शन के लिए जा सकें। पैदल पथ के अलावा ई रिक्शा की सुविधा भी यहां उपलब्ध है जिससे पूरा कॉरिडोर देखा जा सकता है।
विभिन्न प्रतिमाओं के चित्र और उनकी जानकारी यहाँ प्रस्तुत है-
उज्जैन कैसे पहुँचें?
मध्यप्रदेश और देश के प्रमुख शहरों से उज्जैन अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप यहां रेल व बस के माध्यम से पहुंच सकते हैं। हवाई जहाज़ से पहुंचने के लिये नज़दीकी हवाई अड्डा इंदौर में है। इंदौर यहाँ से 45-50 किमी की दूरी पर स्थित है। इंदौर से हर समय उज्जैन के लिये बसें उपलब्ध होती हैं।
उज्जैन रेलवे स्टेशन से महाकाल लोक कुछ ही दूरी पर स्थित है। लोकल वैन, रिक्शा और बैटरी रिक्शा 10-20 रुपये प्रति सवारी की दर से यहाँ तक पहुंचा देते हैं।
बस से पहुंचने पर नानाखेड़ा बस स्टैंड यहाँ का मुख्य बस अड्डा है। यहाँ से लगभग 80-100 रुपये में ऑटो करके महाकाल लोक पहुँचा जा सकता है।
उज्जैन में अन्य दर्शनीय स्थल
मेरा सुझाव है कि आप यहाँ उज्जैन में आप एक रिक्शा कर लें जो कि आपको उज्जैन के प्रमुख स्थानों का भ्रमण करवाते हैं। ये ऑटो 600 से 1000 रुपये तक पूरे दिन सैर करवाने का शुल्क लेते हैं। अन्य दर्शनीय स्थल निम्नलिखित हैं-
1. हरसिद्धि मंदिर
महाकाल मंदिर में दर्शन के उपरांत वहीं से पैदल देवी हरसिद्धि के मंदिर दर्शन हेतु जा सकते हैं। बमुश्किल आधा किमी की दूरी पर स्थित यह प्राचीन मंदिर एक शक्तिपीठ है। यहाँ पर देवी सती की कोहनी गिरी थी।
रास्ते विक्रमटीला भी दर्शनीय स्थल है। विक्रमटीला पर उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य का स्मारक निर्मित है।
2. रामघाट
चाहें तो हरिसिद्धि माता मंदिर से पैदल भी रामघाट की ओर जा सकते हैं जो कि कुछ ही दूरी पर स्थित है। रामघाट शिप्रा नदी पर स्थित एक प्रसिद्ध घाट है। सिंहस्थ के दौरान मुख्य स्नान इसी घाट पर होता है।
3. संदीपनि आश्रम
अगला पड़ाव सदीपनि आश्रम रखें। यहाँ तक पहुंचने के लिये आप रिक्शा कर सकते हैं। यह वही प्राचीन और दिव्य आश्रम है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और श्यामसखा सुदामा ने शिक्षा प्राप्त की थी। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर और शिक्षा का कक्ष मौजूद है।
4. गढ़कालिका मंदिर
गढ़कालिका मंदिर देवी माँ एक अन्य प्रमुख और प्राचीन मंदिर है। देवी माँ सम्राट विक्रमादित्य की कुलदेवी हैं। मंदिर के निकट ही प्राचीन विष्णु चतुष्टिका मूर्ति है। इस मूर्ति में विष्णु चारों दिशाओं में 4 रूपों में उकेरे गए हैं। मूर्ति की प्राचीनता और सौंदर्य इसे दुर्लभ बनाते हैं।
5. भृर्तहरि गुफा
शिप्रा नदी के किनारे स्थित इस गुफा की कथा 2000 साल पुरानी है। महाराज विक्रमादित्य के बड़े भ्राता थे महाराज भृर्तहरि, किन्तु पत्नी पिंगला द्वारा प्रेम में धोखा मिलने पर उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया और छोटे भाई विक्रमादित्य को राजपाट देकर तपस्या में लीन हो गए। उन्होंने भृर्तहरि शतक और नीतिशतक जैसे ग्रंथों को भी रचा।
6. कालभैरव मंदिर
यह मन्दिर देश भर में इसलिये भी अधिक ख्यात है क्योंकि यहाँ बाबा कालभैरव को प्रसाद के रूप में मदिरा चढ़ाई जाती है। मंदिर के बाहर कई प्रकार की मदिरा दुकाने आसानी से देखी जा सकती है। श्री कालभैरव की मूर्ति प्रत्यक्ष मदिरापान करती है।
बहरहाल, मदिरा लेना आवश्यक नहीं है किंतु आप भीतर दर्शन के दौरान श्रीकालभैरव मूर्ति को मदिरापान करते हुए देख सकते हैं।
7. सिद्धवट
कालभैरव मंदिर के रास्ते पर सिद्धवट नामक स्थान आता है। यदि आपने विक्रम वेताल की कहानियाँ सुनी हैं तो यह आपके लिए एक रोमांचक अनुभव होगा। सिद्धवट ही वह स्थान है जहाँ से विक्रमादित्य वेताल को पकड़कर लाते थे और कहानी सुनाने के उपरांत वह पुनः इसी वटवृक्ष आकर लटक जाता था।
8. गोपाल मंदिर
गोपाल मंदिर महाकाल मंदिर से कुछ दूरी पर मुख्य बाज़ार में स्थित है। यह मंदिर मराठा स्थापत्य का सुंदर उदाहरण है। महाराजा दौलतराव शिंदे की पत्नी बायजाबाई ने उन्नीसवीं सदी में इस मंदिर को बनवाया था। गोपालकृष्ण के अलावा मंदिर में पार्वती शिवज़ गरुड़ और बायजाबाई की प्रतिमाएं मौजूद हैं।
मंदिर के गर्भगृह में स्थित चांदी का द्वार मुख्य रूप से दर्शनीय है। यह वही द्वार है जो अहमदशाह अब्दाली गुजरात के सोमनाथ मंदिर से लूटकर लाहौर ले गया था। कालांतर में महादजी सिंधिया ने गजनी पर आक्रमण करके इसे प्राप्त किया और इस मंदिर में द्वार की पुनः प्रतिष्ठा की गई।