भारत के मंदिरों की यात्रा की, ठगी के इतने तरीके और कहीं नहीं देखे!

Tripoto

दुनिया घूमने का शौक़ है मुझे। जहाँ जाता हूँ वहाँ की सभ्यता, लोग, खाना और रहना जानने की तलब हमेशा से रही है मुझे। अब संसकृति को समझना है तो मंदिर और मज़ारों पर जाकर सिर झुकाना भी तो यात्रा का ही एक हिस्सा है। जहाँ भारत के मंदिर घूमते हुए मुझे बहुत कुछ जानने को मिला, वहीं कुछ ऐसे भी अनुभव थे जिनके कारण यात्रा में कुछ खटास आ गई। तो आपके साथ वही अनुभव आज बाँटने जा रहा हुँ, वो धांधलियाँ जो मंदिर यात्रियों के साथ कर, मंदिर और यात्रा दोनों का ही महत्व कम कर देते हैं।

दक्षिणा और उसका सामाजिक दबाव

पिछले चार साल मैं जम्मू में रहा। जम्मू का मतलब मंदिरों का शहर। हर जगह मंदिर ही मंदिर। उसके साथ पूरे भारत में घूमते हुए मंदिर दर्शन भी बहुत किया मैंने। लोग कहते हैं मंदिर जाओ, मन पवित्र होता है, चित्त शान्त। विकसित होता है दिमाग। हम विकसित तो ख़ूब हुए लेकिन दिमाग ऐसे विकसित होते हैं, ये कभी सोचा ही नहीं।

जम्मू के एक मंदिर में मैं दर्शन करने गया। पंडित जी ने हाथ में कलावा बाँधा। माथे पर तिलक लगाया। और सामने रखे थाल में दक्षिणा रखने को कहा। थाल में रखे थे तो सिर्फ ₹500 और ₹2000 के नोट। एक भी नोट ₹10, ₹20 या ₹100 का नहीं।

अब भाई साहब, आप भी समझदार हैं, वहाँ मैं ₹10 का नोट रखूँ तो कैसा लगेगा, आप जानते हैं। यही एक किस्म का दबाव रहा मेरे मन में जो कचोटन बनकर चीर गया मुझे।

अब आपका मन कहेगा कि किसी ने कहा तो नहीं आपसे कि दक्षिणा रखना ज़रूरी है। सही बात है, लेकिन जो मैं देख पा रहा हूँ, वो सब एक सामाजिक दबाव का हिस्सा है। ठीक वैसा ही दबाव जब आप किसी बड़े पारिवारिक समारोह में चप्पल पहने वक़्त महसूस कर पाते हैं। यह कितना सार्थक है और कितना समीचीन, आप तय करें।

ख़ैर, मैं तो ठहरा इंजीनियरिंग का लड़का। दूसरों से उधार माँग कर मैगी खाई है हमने। इसलिए हमको कोई फ़र्क नहीं पड़ा। लेकिन आप एक बार सोच कर देखिए, अगर मंदिर पैसों का साम्राज्य बन जाएगा तो सामान्य आदमी कहाँ जाएगा।

वीवीआईपी दर्शन की माया

इक़बाल का शेर है-

"एक ही सफ़ में खड़े हो गए महमूद और अयाज़।

न कोई बन्दा रहा, न कोई बन्दा नवाज़।।"

मतलब भगवान के सामने उसके सब भक्त एक जैसे हो जाते हैं। कोई भेद भाव नहीं, ना जात, ना लिंग, ना कुछ और। बस एक रिश्ता, भगवान और भक्त का।

मैंने भी यही सुना था, भगवान की शरण में सब एक जैसे। लेकिन महाराष्ट्र के मंदिरों में गया तो वीवीआईपी दर्शन का नियम भी यहीं देखने को मिला। मैं ठिठका, चौंका और फिर सोचने लगा कि भगवान सबके हैं तो किसी को स्पेशल ट्रीटमेंट क्यों?

बाकी मेरे बोलने पर आपको गाली देने का पूरा हक़ है।

प्रसाद से प्रसन्न होंगे भगवान

मंदिर आए हैं आप। प्रसाद भी चढ़ाइएगा, भगवान प्रसन्न होंगे। ये लीजिए, ये ₹50 का है, ये ₹100 का और ये वाला ₹200 का। स्पेशल वाला ₹500 का भी है। प्रसाद का एक निर्धारित मूल्य ना होकर कितना भी दाम बोला जाता है। और हमको देना पड़ता है। क्योंकि प्रसाद से भगवान ख़ुश होते हैं।

आपने कितने का चढ़ाया। भगवान प्रसन्न हुए कि नहीं। क्या, नहीं हुए। अगली बार ₹500 का चढ़ाइएगा। तब प्रसन्न होंगे भगवान। क्या, इतने तो पैसे नहीं हैं आपके पास। तो फिर दूसरी जगह ट्राइ करिए। और मैं घर वापस आ गया।

बाबा जी के बोल बचन

Photo of भारत के मंदिरों की यात्रा की, ठगी के इतने तरीके और कहीं नहीं देखे! 3/3 by Manglam Bhaarat

बनारस है भगवान शिव की नगरी। हर भक्त ट्रेन से उतरते ही हर हर महादेव का जयकारा लगाता है। मैंने भी लगाया, हर हर महादेव...।

फिर वो स्टेशन से सीधा घाट पहुँचता है। मैं भी पहुँचा।

फिर उस भक्त को पकड़ते हैं बाबा जी। सुनाते हैं दुनिया का ज्ञान, कहाँ कर्मकाण्ड कराएँ, कैसे कराएँ। शमशान की अपनी स्कीम है। उसका भी तोड़ है बाबा जी के पास। फिर ये सब बताने के पैसे।

मैं तो घाट में नहाने आया था प्रभु। आवश्यकता है तो मैं स्वयं आ जाऊँगा आपके पास।

मुझे यहाँ भी लगा कि शायद ये जो हो रहा है, धर्म का हिस्सा तो नहीं है, धंधा बन चुका है शायद।

एक खोखला धर्म इंसान को झूठा भरोसा दे सकता है, इससे ज़्यादा और कुछ नहीं।

मैं एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार का लड़का हूँ। एक कपड़ा ख़रीदने के पहले सौ बार सोचते हैं कि लें या नहीं। इस कारण समाज हमें अलग नज़र से देखता है और धीरे-धीरे हम अलहदा होते जाते हैं। भगवान से अलग हो जाएँगे तो हम कहाँ जाएँगे।

इसलिए बस एक चीज़ जो दिल से निकल के आई। कि इन सबका एक उचित दाम होना चाहिए। अगर मंदिर को भी आप इकॉनमी का हिस्सा बना देंगे तो एक बड़ा वर्ग अपने लिए नया धर्म खोजने लगेगा। नहीं तो हम लोगों के लिए मूर्तियाँ वहीं रह जाएँगी, मंदिर वहीं रह जाएँगे। बस उनमें भगवान नहीं रहेगा, वो भगवान, जो अपने बच्चों से मिलने के लिए भी तगड़ी फ़ीस लेता है।

आप भी कई जगह घूमने गए होंगे । मंदिरों के इन कामों पर आपका क्या कहना है। हमें कमेंट बॉक्स में बताइए।

अगर आप भी ऐसे ही किसी सफ़र का ज़िक्र करना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें।

रोज़ाना वॉट्सऐप पर यात्रा की प्रेरणा के लिए 9319591229 पर HI लिखकर भेजें या यहाँ क्लिक करें।

More By This Author

Further Reads