"MIDWAY" छोटे किस्से कहनियाँ

Tripoto
Photo of "MIDWAY" छोटे किस्से कहनियाँ by Nishant Tripathi

सुबह से अब तक 6 घंटे बीत चुके थे, अभी तक कोई पर्वतारोही नहीं आया था. मेरा नाम! घोरा है , मैं धर्मकोट के गांव में रहता हूँ. त्रिउंड की चढ़ाई के बीच मिड वे कैफ़े चलाता हूँ. चाय , ऑमलेट और मैगी अच्छी बना लेता हूँ. वैसे चाय के अलावा मुझे येसब शौक़ीन खाने जैसे लगते हैं. सर्दियों में कमर तक बर्फ जम जाती है. फिर भी मैं ये दूकान खोलता जरूर हूँ.मेरे आम रास्ते लोगो को हफ्ते पहाड़ चढ़ने जैसे मालूम पड़ते हैं.जी तो चाहा कई बार की ये काम छोड़ कर शहर चला जाऊँ मगर बाबा की याद ने इस दूकान को पिछले 30 साल से संभल कर रखा है.

Photo of "MIDWAY"  छोटे किस्से कहनियाँ 1/4 by Nishant Tripathi

हाँ! सीढ़ी सतह पर चलने वाले क्या जानेंगे टेढ़े मेढ़े रास्तो पर पाँव धरना. और तभी दो लोग मेरे दुकान पर आए.

भैया! २ चाय कर दो और दो ऑमलेट, मिर्ची कम रखना. मैं उन्हें देख कर सोच रहा था. चला जाऊँ क्या ? मैं भी शहर ? ढेर सारे पैसे कमा कर भेजने का आनंद कुछ और ही आता होगा नहीं? कितना अच्छा होता सब. गाड़ी, घर और अपना व्यवसाय.

Photo of "MIDWAY"  छोटे किस्से कहनियाँ 2/4 by Nishant Tripathi

तभी उनमे से एक बोल पड़ा

"कितना अच्छा होता ऐसी ही दूकान होती पहाड़ो में ,एक छोटा सा घर होता, न बिल्स भरने पड़ते न पोल्लुशण का शोर होता, सब शांत सुखद और असली होता बिना दिखावे के. ताजूब ये है के हम दोनों एक दूसरे को खुशकिस्मत समझ रहे थे.

Photo of "MIDWAY"  छोटे किस्से कहनियाँ 3/4 by Nishant Tripathi

क्या पहाड़ों को भी ऐसा लगता होगा ? जब वो किसी बर्फ वाले पहाड़ को देखते होंगे ? या झरने वाले पहाड़ो को? क्या इन पहाड़ो पर ठहरे तालाबों को भी नदियों से ईर्ष्या होती होगी ? सच तो यही है की सब अधूरा है और वो ही अधूरापन ही पूरा है. जिस तरह एक चावल का दाना अधूरा है मगर अस पास हज़ार अधूरे दाने मिल कर एक पूरा बनाते हैं ,ठीक वैसे ही. हमे बस इसे समझ ने के लिए आसमान से देखना चाहिए, वहां से सब एक लगता है.

Photo of "MIDWAY"  छोटे किस्से कहनियाँ 4/4 by Nishant Tripathi

कुदरत क्यों हमें इतना अच्छा महसूस कराता है. जानते हैं? क्युकी पहाड़, पहले आपको थकाता है. जब आप थक जाते हैं तब आपकी सोच दिमाग बस एक चीज़ चाहती है. आराम करना! और आपको पता नहीं चलता आपने अपने दिमाग को फोकस कर लिया है. थोड़े देर के लिए ही सही आप अपने सामाजिक परेषानियों को नहीं याद कर रहे होते. यही मैडिटेशन है. दिल भी जोरों से धड़क कर तुरंत शांत हुआ होता है और तभी आप एक दृश्य देखते हैं. ये सब ऐसे काम करता है जैसे आपका ऑपरेशन हो रहा होता है और कुछ पल के लिए ही सही आप ठीक हो जाते हैं.