भारत के कश्मीर राज्य के बारे में कौन नही जानता,धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले इस खूबसूरत जगह को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लाखो पर्यटक आते है और इसकी खूबसूरती में खो जाते है। यहां के चारों तरफ के प्रकृति सौंदर्य को देखकर ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने फुरसत में बैठकर इस जगह को बनाया है।पर क्या आप जानते है?जितनी खूबसूरत यह जगह है, उतना ही खूबसूरत और पुराना इसका इतिहास भी है। यहां आपको बहुत से ऐसे जगह देखने को मिलेंगे जो न जाने कितने सालो से अपना इतिहास संजोए आज भी कश्मीर की धरती में खड़ा है।ऐसे ही एक जगह के बारे आज हम आपको बताएंगे जिसका इतिहास हजारों वर्ष पुराना है।
नारानाग मंदिर
हम बात कर रहे है कश्मीर स्थित श्रीनगर के नारानाग मंदिर की।यह मंदिर श्रीनगर से 50 किलोमीटर की दूरी पर गांदरबल जिले में कंगल क्षेत्र में स्थित नारानाग गांव में स्थित है।जिसे शोडरतीर्थ, नंदीक्षेत्र व भूतेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।वांगथ नदी के किनारे पर स्थित इस गांव पर प्रकृति की अनुपम कृपा है। यहां का प्रकृति सौंदर्य देख आपकी आंखे खुली की खुली रह जायेंगी। चारों तरफ से खूबसूरत पहाड़ों,नदी ,झरने और घास के मैदान ऐसा लगता है मानो आप किसी खूबसूरत सी पेटिंग में पहुंच गए हो। गंगाबल झील के लिए यही से ट्रेकिंग भी शुरू की जाती है।यह स्थान उनका बेस कैंप है इसके अलावा आपको यहां और भी कई ट्रेकिंग बेस कैंप मिल जायेंगे।
नारानाग का अर्थ
सबसे पहले हम जानते है कि इस जगह को नारानाग क्यों कहा जाता है। नारानाग एक कश्मीरी शब्द है जो मूल रूप से 'नारायण नाग' शब्दों से मिलकर बना है। कश्मीरी में नाग का अर्थ होता है चश्मा।अब आप सोचेंगे आंखो पर लगाने वाला लेकिन नहीं आंखो पर लगाने वाला नही बल्कि पानी का चश्मा।जी हां कश्मीर में चश्मा का मतलब उन स्थानों से है जहां जमीन के दरारों से जमीन के नीचे स्थित पानी खुद ब खुद बाहर निकलता हो।इसीलिए इस स्थान को यह नाम दिया गया।
नारानाग मंदिर का इतिहास
आपको बता दें की कश्मीर के नारानाग मंदिर का इतिहास लगभग हजार साल पुराना है। लगभग 7 वी और 8 वी शताब्दी में निर्मित इस मंदिर को राजा ललितादित्य ने बनवाया था।उन्होंने इस मंदिर के निर्माण के लिए बहुत सारे घन का दान कर यहां पर एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया।यह मंदिर उस समय एक बहुत ही महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल हुआ करता था जोकि भगवान शिव को समर्पित था।आज भी उसके अवशेष देख कर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है।इसके बाद 8वी शताब्दी में राजा अवन्तिवर्मन ने भगवान भूतेश्वर की मूर्ति के स्नान के लिए एक पत्थर की चौकी और चांदी की नाली का निर्माण करवाया था।
एक नहीं बल्कि कई मंदिरों का समूह है यह मंदिर
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह मंदिर एक नही बल्कि कई सारे मंदिरों का एक समूह है जो लगभग 200 मीटर की दूरी पर स्थित है।इस मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है।पहला है पश्चिमी भाग जिसमे लगभग 6 मंदिर हैं, जिसे शिव-ज्येष्ठ के नाम से जाना जाता है।दूसरा भाग पूर्वी भाग है जिसमे कई सारे मंदिरों का निर्माण किया गया है।इस मंदिर का सबसे मुख्य भाग इसके मध्य में स्थित है।जो भगवान शिव को समर्पित है है ।वैसे तो यह मंदिर परिसर आज अच्छी अवस्था में नहीं है पर इसके अवशेषों को देखकर इनके इतिहास की झलक अवश्य देखी जा सकती है। यहां मंदिर परिसर आप भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिन है।
कैसे पहुंचे
नारानाग मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले श्रीनगर पहुंचना होगा।इसके लिए आप हवाई,रेल यह सड़क किसी भी मार्ग का चुनाव कर सकते है।श्रीनगर देश के सभी बड़े शहरों से भलीभांति जुड़ा हुआ है।श्रीनगर से मंदिर की दूरी लगभग 50 किलोमीटर की है तो आप बस ,टैक्सी या निजी साधनों द्वारा यहां आसानी से पहुंच सकते है।
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