
प्रिय मुसाफिर
आपका संदेश मिला की आप हमारे पहाड़ आने वाले हो।मैं आपका स्वागत करता हूँ, हमारे इस प्यारे से स्वर्ग में। मैं आपका इंतजार कर रहा हूँ। गर्मियों की छुट्टी में जब भी आप हमारे पास आते हो, हमारा आंगन खुशियों से भर जाता है। नैनीताल की ठंडी सड़क हमेशा आपकी राह देखती है। सात ताल में आज कल बहुत सारा पंछियों का समुह आ कर चह-चाह रहा है। कल अल्मोड़ा वाले खीम सिंह की दुकान से बाल मिठाई लाने गया था, वो तुमको बहुत याद कर रहे थे। पूछ रहे थे इस बार तुम कब आ रहे हो। इस बार भी तुम्हारी मनपसंद बाल मिठाई और सिंगोडी तुमको खिलाने को बोल रहे थे।


तुम्हारे साथ इस बार भीमताल में जा कर पैराग्लाइडिंग करने का बहुत मन है। जाते समय कैंची धाम और वापसी में जागेश्वर धाम के दर्शन करते हुये आयेंगे।



नेगी जी ने कौसानी में एक होमस्टे बना लिया है। तुम इस बार वहाँ ही रुकना । वहाँ तुमको गहत की दाल, भट्ट के डुबके, भट्ट की चूटकानी, काफा के साथ साथ बहुत सारे पहाड़ी व्यंजन खाने को मिलेंगे। सुना है वहाँ से हिमालया का व्यू भी बहुत ही सुंदर दिखाई देता है।


तुमको भी तो हमारी नदियों में नहाना याद ही होगा। मुझे पता है पिछले साल की मुन्सयारी की ट्रिप और फुलो की घाटी का ट्रेक तुमको अभी तक याद होगा और वो जनवरी की ऑली की बर्फबारी तुमसे भूले नहीं भूलती होगी।



इस बार तुम अपने माता पिता को ले कर चार धाम और केदारनाथ यात्रा में जरूर जाना। अब वहाँ के रास्ते भी अच्छे हो गये हैं। अगर तुम चार धाम यात्रा पर नहीं जाओगे तो उत्तराखंड के आधे से ज्यादा घरों में चूल्हा नहीं जलेगा। तुमको तो पता ही है यहाँ के लोग जब 6 महीने चार धाम यात्रा के दौरान मेहनत करते हैं तब ही पूरे साल भर चैन की नींद सो पाते हैं।


मुझे तुमसे बहुत सारी शिकायतें भी हैं। पिछली बार तुमने चंद्रशीला में जा कर बियर पी कर अपने चिप्स के रेपर वहाँ ही छोड़ दिये थे। तुमको इतना तो समझदार होना ही पड़ेगा की किसी दूसरे के घर जा कर वहाँ गंदगी नहीं फैलाते और न ही उनकी मान्यताओं का मज़ाक उड़ाते हैं। किसी भी पवित्र जगह में जा कर दारू नहीं पी जाती वहाँ से लोगों की आस्था जुड़ी होती है।

अगर लोकल लोग कोई समान बेचे तो उस से मोल भाव बिल्कुल नहीं करना। वो लोग बहुत ही मेहनत से समान बनाते हैं और कम दाम में ही बेचते हैं जिससे उनका घर चलता है। तुमसे एक बात और कहना चाहता हूँ पहाड़ के लोग बहुत ईमानदार,मेहनती और सीधे होते हैं उनको कभी भी उल्लू बनाने की कोशिश मत करना। और हाँ पहाड़ी संस्कृति का हमेशा सम्मान करना कभी मज़ाक मत बनाना। अब अपनी चिठ्ठी यहाँ पर ही समाप्त करता हूँ और उम्मीद करता हूँ इस बार तुम एक जिम्मेदार नागरिक बन कर आओगे।
तुम्हारे आने के इंतजार में
तुम्हारा दोस्त
पंकज मेहता
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