उदयपुर के पास स्थित मेवाड़ का यह विश्वप्रसिद्ध कृष्णधाम ,जहाँ प्रतिमाह चढ़ता हैं करोड़ो का चढ़ावा

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उदयपुर से करीब 85 किमी दूर ,चित्तौड़गढ़ के पास स्थित हैं -सांवलिया सेठ जी मंदिर। जितने श्रद्धालु यहाँ राजस्थान से आते हैं शायद उनसे कई गुना ज्यादा गुजरात एवं मध्य प्रदेश से आते हैं। हर महीने यहाँ पर चढ़ावे में चढ़े हुए गहनों ,सोने चांदी की चीजों ,नकद ,चेक ,मनी आर्डर को जब गिना जाता हैं तो इन सबकी राशि करोडो में हो आती हैं। चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित यह मंदिर ,राजस्थान का वह मंदिर हैं जिसकी बनावट तो अपने आप में आपकी आँखों को लुभा ही लेगी, साथ ही साथ ,आप यहाँ पाएंगे कि श्रद्धालु अपने वेतन या बिज़नेस प्रॉफिट में इन्हे अपना हिस्सेदार बनाते हैं। तो चलो आज यह देखते हैं क्यों यह कृष्णधाम एक विश्वप्रसिद्ध मंदिर बन चूका हैं -

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सावलियाँ जी के यहाँ दो मंदिर हैं,दोनों की हैं अपनी अपनी खासियत :

कहा जाता हैं कि यह वही गिरधर गोपाल हैं जिनकी पूजा मीराबाई किया करती थी। एक बार जब मुग़ल सेना मेवाड़ के मंदिरों को क्षतिग्रस्त करने में लगी थी ,तब उन्होंने इन मूर्तियों को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की तब एक संत श्री दयाराम जी ने इन्हे 'भादसोड़ा ' नामक गाँव में जमीन के निचे छिपा दिया था। कई वर्षों बाद एक ग्वाले के सपने में इस गाँव में मुर्तिया दबी होने की बात आयी। खुदाई करने पर यहाँ कुछ मूर्तियां निकली।इन्ही मूर्तियों में से एक मूर्ति को इसी जगह स्थापित किया गया एवं इसे प्राकट्य स्थल कहा गया।

यह प्राकट्य स्थल जहाँ बना हैं वही साथ में सावंलिया जी का एक मंदिर बनाया गया ,जो कि एकदम उदयपुर- चित्तौड़गढ़ नेशनल हाईवे पर ही बना हैं। यही से 7 किमी अंदर गाँव की और मुख्य मंदिर बनाया गया। इस मुख्य मंदिर की बनावट आपको अक्षरधाम मंदिर की याद दिला देगी। मंदिर के गर्भगृह तक जाने एवं वापस बाहर आने के लिए आपको मंदिर के दोनों ओर बने स्तम्भयुक्त मार्ग से होकर गुजरना होता हैं। इन दोनों मार्ग के हर कोने से मुख्य मंदिर एवं उसके बाहर बना बगीचा दिखता रहता हैं। इन्ही मार्गो पर कदम कदम पर भगवान कृष्ण से जुडी खूबसूरत पेंटिंग्स देखने को मिलती हैं। इन्ही मार्गो में पीने के पानी की व्यवस्था एवं शौचालयों की व्यवस्था भी की गयी हैं।

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विदेशो में बसे श्रद्धालु तक भी इन्हे बनाते हैं अपने वेतन या व्यापार के प्रॉफिट में हिस्सेदार :

हर महीने अमावस्या के एक दिन पहले यहाँ का दानपात्र खोला जाता हैं। दान किये गए नोटों को गिनने के लिए कई लोगो की ड्यूटी लगाई जाती हैं। गिनती दो तीन दिन तक चलती हैं। मंदिर प्रांगण में ही इन नोटों को कैमरे की निगरानी में गिना जाता हैं।नकदी के अलावा इसमें चेक ,कई किलो सोने चांदी के गहने भी मिलते हैं।विदेशी मुद्रा भी हर महीने इनमे मिलती हैं।अभी दो तीन पहले ही यहाँ के दानपात्र खोले गए जिनमे करीब 6 करोड़ रूपये निकले।ऑनलाइन चढ़ावे को जोड़ने पर यह राशि करीब 10 करोड गिनी गयी। कोरोना काल में तो यहाँ चढ़ावा कई गुना बढ़ गया। माना जाता हैं कि लोग अपने व्यापार में प्राप्त प्रॉफिट का कुछ निश्चित हिस्सा हर माह यहाँ चढ़ाते हैं। जो यहाँ जितना हिस्सा यहाँ चढ़ाता हैं उस से कई गुना ज्यादा उनका व्यापार बढ़ता जाता हैं। गुजरात तो जाना ही व्यापार के लिए जाता हैं तो यहाँ आप सालभर अनेको गुजराती श्रद्धालुओं को देख सकते हैं। गुजराती श्रद्धालु ,मेवाड़ में मुख्य रूप से दो धाम को सबसे ज्यादा मानते हैं एक तो नाथद्वारा में श्रीनाथ जी एवं दूसरे चित्तौड़गढ़ के सावंलिया जी।

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अन्य जानकारियां :

सांवलिया सेठ मंदिर प्रतिदिन सुबह 5:00 बजे से लेकर दोपहर 12:00 बजे तक और 2:30 बजे से रात्रि 11:00 बजे तक खुला रहता है।यहाँ रहने के लिए काफी सारी धर्मशालाए एवं होटल्स मौजूद हैं जो कि काफी वाजिब दरों पर ही आसानी से ही मिल जाती हैं। राजस्थान की प्रसिद्द डिश दालबाटी यहाँ कई जगह मिल जाएगी। मंदिर के पास से ही आप यहाँ के प्रसिद्द लड्डू एवं मठरी को जरूर ख़रीदियेगा।

कैसे पहुंचे :

चित्तौड़गढ़ से करीब 40 किमी और उदयपुर से यह स्थान करीब 75 किमी दूर हैं।दोनों जगहों से यहाँ के लिए पर्याप्त पब्लिक ट्रांसपोर्ट मिलता हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन चित्तौड़गढ़ एवं नजदीकी हवाई अड्डा ,उदयपुर एयरपोर्ट हैं ,जो कि उसी हाईवे पर बना हैं ,जिसपर सांवलिया जी का प्राकट्य स्थल मंदिर बना हैं। मुख्य मंदिर इसी प्राकट्य स्थल से 7 किमी दूर स्थित हैं। दोनों मंदिर के बीच आवागमन के काफी साधन यहाँ मिल जाते हैं।

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अन्य नजदीकी स्थल :

चित्तौड़गढ़ किला ,ईडाणा माता मंदिर ,उदयपुर शहर।

धन्यवाद

-ऋषभ भरावा (लेखक -पुस्तक 'चलो चले कैलाश ')

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