हमारे देश में ऐसे ऐसे मंदिर मौजूद हैं जिनके बारे में सुनकर एक मर्तबा तो यकीन ही नहीं होता ,जैसे - छिपकली देवी मंदिर ,चूहे वाला मंदिर ,मेंढक मंदिर ,बुलेट बाबा मंदिर आदि। ऐसे मंदिरो से जुडी कभी ऐसी ऐसी बाते हम सुनते हैं जिनको सुनकर कभी कभी हम अचरज में पड़ जाते हैं और सोचते हैं कि 'इस तरह की कोई जगह वाकई में मौजूद हैं ?'
कुछ जगहों जैसे तनौद माता ,बुलेट बाबा मंदिर ,कांगथांग आदि के बारे में तो आपने मेरे आर्टिकल्स पढ़े ही होंगे तो अब आज हम चलते हैं मेवाड़ के एक छोटे से गाँव में स्थित एक ऐसे मंदिर की यात्रा पर ,जहाँ देवी माँ की मूर्ति खुद अग्निस्नान करती हैं।अग्निस्नान का मतलब क्या हैं यह तो आप आगे पढ़ेंगे। लेकिन तब तक यह भी जान लीजिये कि जितना यह मंदिर अग्निस्नान की वजह से जाना जाता हैं उतना ही यह मंदिर कई बिमारियों से ठीक करवाने के लिए भी प्रसिद्द हैं।
अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा हैं यह मंदिर :
ईडाणा शक्तिपीठ ,उदयपुर से करीब 60 किमी दूर ,बम्बोरा नामक जगह पर स्थित हैं। यहाँ पहुंचने के लिए करीब 40 किमी का सफर तो हाईवे (चित्तोड़ रोड )का हैं,उसके बाद का सफर थोड़ा कुछ पहाड़ी तरह का हैं जिसमे एक सिंगल रोड बना हैं वो भी रोलर कोस्टर की तरह ऊपर निचे होता हुआ। मुख्य मंदिर से कुछ दूरी पहले ही एक विशाल दरवाजा जिसपर लिखा हैं -'ईडाणा शक्तिपीठ ' ,आपका स्वागत करता हैं। काफी दूर दराज से यहाँ ग्रामीण एवं शहरी श्रद्धालु दर्शन को आते हैं। मंदिर प्रांगण पहुंचते ही वहा की भीड़ एवं दुकानों से मेले की सी फीलिंग आती हैं। इनके अलावा मंदिर प्रांगण में अनगिनत मुर्गे भी दिखाई देते हैं।
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यहाँ साल में कई बार होता हैं स्वतः ही अग्निस्नान :
हर साल करीब 10 से 12 बार या कहो उस से भी ज्यादा बार यहाँ देवी माँ की मूर्ति अग्निस्नान करती हैं। अग्निस्नान का मतलब ,यहाँ मूर्ति और इसके आसपास स्वत्: ही आग लग जाती हैं और यह इतनी तेज होती हैं कि इसकी लपटे करीब 15 से 20 फ़ीट ऊँची होती हैं। इस से वहा चढ़े चुनरी ,नारियल ,माता का शृंगार सबकुछ जल जाता हैं एवं ऐसा होने के बाद आग स्वत् : बुझ जाती हैं। इसे ही माता का अग्निस्नान कहते हैं। इसी कारण मंदिर में मूर्ति बिना छत के खुले चौक में स्थापित हैं। मूर्ति के ऊपर ,थोड़ा सा पीछे की ओर कई सारे विशाल त्रिशूल भी स्थापित हैं। यहाँ जो शृंगार चढ़ावा,लच्छे ,चुनरी माता को चढ़ती हैं ,वह सब मूर्ति के आस पास एवं इन्ही त्रिशूलों के साथ जमा किया जाता हैं। कहते हैं जब इनका भार बढ़ जाता हैं तब माता अग्निस्नान करते हैं जिससे सब जल जाता हैं।इस चमत्कार को देखने आसपास के गाँवों के लोग काफी तादाद में पहुंचते हैं। अग्निस्नान कई घंटों तक चलता हैं तब तक उदयपुर ,चित्तोड़ ,भीलवाड़ा शहर के कई श्रद्धालुओं को पता चलते ही वो भी यहाँ पहुंच जाते हैं।
यहाँ होता हैं लकवाग्रस्त मरीजों का इलाज :
मंदिर प्रांगण काफी विशाल हैं। देवी की मूर्ति भी दूसरी या शायद तीसरी मंजिल पर विराजमान हैं। नीचे की इन मंजिलों एवं मूर्ति के सामने ही बने बड़े बड़े हॉल में यहाँ बीमार लोग अपने परिवार के साथ रहते हैं। कहा जाता हैं कि यहाँ कई बीमारियों का इलाज होता हैं। मुख्य रूप से लकवाग्रस्त लोग यहाँ आकर अपने आपको ठीक करलेते हैं। लेकिन ठीक होने तक वो अपने स्वजनों के साथ इसी मंदिर में रहते हैं ,खाते हैं एवं सोते हैं। इनके लिए मंदिर ट्रस्ट की तरफ से डाइट शेड्यूल भी बना हैं ,एवं उसी हिसाब से उन्हें खाना दिया जाता हैं। इन रोगियों को ठीक करने के लिए यहाँ यज्ञ कराया जाता हैं।
मंदिर के आसपास रहने ,रुकने एवं खाने पीने के लिए भी पर्याप्त सुविधाये हैं। मेरे शहर भीलवाड़ा से यह मंदिर कोई ज्यादा दूर नहीं हैं।हालाँकि पास होने के बावजूद भी मैंने कभी अग्निस्नान दर्शन नहीं किये ,लेकिन मेरे परिवार के सदस्यों ने तीन चार बार किये हैं। पिछले ही महीने इस मंदिर में मैंने भी यहाँ एक भोज एवं जागरण रखवाया था तब एक रात यहाँ रुकने का मौका मिला इसी दौरान मंदिर के बारे में इतना सब जानने को मिला। मंदिर ट्रस्ट काफी हेल्पफुल एवं मंदिर सर्वसुविधायुक्त हैं।उदयपुर एवं चित्तोड़ यात्रा के दौरान इस मंदिर के दर्शन किये जा सकते हैं।
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अन्य नजदीकी पर्यटक स्थल : चित्तौड़गढ़ किला ,जयसमंद झील ,सांवलिया जी मंदिर।तीनो पर मेरे आर्टिकल आप पिछली पोस्ट्स में पढ़ सकते हैं।
कैसे पहुंचे : उदयपुर या चित्तौड़गढ़ से यहाँ आसानी से पंहुचा जा सकता हैं। खुद की गाडी से आप ना भी हो तो भी लोकल पब्लिक गाड़ियों से आप इस शक्तिपीठ तक पहुंच सकते हैं।
-ऋषभ भरावा
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