आखिर सास-बहु मंदिर मे किस की पूजा होती हैं ?

Tripoto

भारतवर्ष मे देवी देवताओं के मंदिरों के अलावा कई ऐसे मंदिर भी मौजूद हैं जो कि अपनी विचित्र परन्तु अटूट मान्यताओं की वजह से विश्वप्रसिद्ध हैं एवं करोडो श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हैं जैसे -बुलेट बाबा मंदिर ,सचिन तेदुंलकर का मंदिर ,मेंढक मंदिर ,चूहों का मंदिर ,कुकुरदेव मंदिर आदि।इनका नाम सुनकर आप हैरान हो जाते हैं कि आखिर यहाँ पूजा किन की होती हैं। इनमे से कई जगह देवी देवताओं की पूजा होती हैं तो कई जगह किसी व्यक्ति या प्राणी विशेष की। ऐसे ही विचित्र नाम का एक मंदिर स्थित हैं राजस्थान के उदयपुर में -

उदयपुर शहर 'आहड़ नदी' के किनारे बसा हुआ हैं जहाँ 5000 साल पूर्व से ही की सभ्यताएं बसी रही हैं ,जिनके कई प्रमाण यहाँ के म्युज़ियम मे देखे जा सकते हैं। कालांतर मे भी कई ऋषि मुनियों ,राजा महाराजाओं की वजह से यह मेवाड़ की भूमि विकसित होती रही हैं ,जिन्होंने यहाँ कई मंदिर ,किलों आदि का निर्माण अपने काल मे करवाया था। मेवाड़ के इतिहास की व्याख्या करता हुआ एक मंदिर यहाँ ऐसा भी हैं जिसका नाम सुनकर आप आश्चर्य से यह पूछेंगे कि ''क्या यहाँ किन्ही सास और बहु की मूर्तियों की पूजा देवी के रूप मे होती हैं ?''

Photo of Saas Bahu Mandir, Udaipur, Rajasthan, India by Rishabh Bharawa
Photo of Saas Bahu Mandir, Udaipur, Rajasthan, India by Rishabh Bharawa

तो जवाब जानने के चलिए चलते हैं 10वीं शताब्दी के लगभग बने इस मंदिर की एक छोटी सी सेर पर -

विश्वप्रसिद्ध एकलिंग जी मंदिर से केवल ढाई किलोमीटर दूर स्थित 'नागदा' नामक गाँव में स्थित यह सास बहु मंदिर अपने नाम ,वस्तुकलां और सूक्ष्म नक्काशी के कारण काफी लोकप्रिय हैं।नागदा तक पहुंचने के लिए आपको उदयपुर से राजसमंद रोड पर NH -8 पर जाना होगा। उदयपुर से करीब 20 किमी पर स्थित इस जगह पर पहुंचने के लिए आपको कुछ छोटे से ग्रामीण इलाकों से भी गुजरना पड़ेगा और तभी अचानक आपको दिखेगा एक विशाल मंदिरों का समूह। अगर आप बारिश के मौसम मे इधर आयेंगे तो इस रास्ते की खूबसूरत हरियाली ,शहर से हटकर सूनापन ,चिड़ियों की चहचहाट और मिट्टी की खुशबु आप कभी भूल नहीं पाएंगे। यह मंदिर एकांत मे बना , विशाल प्रांगण मे फैला कई छोटे बड़े मंदिरों का समूह हैं।

ये सभी मंदिर एक बड़े से चबूतरे पर बने हुए हैं जिसके चारो तरफ बड़े बड़े वृक्ष और एक तरफ खूबसूरत तालाब मौजूद हैं।इस मंदिर समूह मे दो मुख्या मंदिर हैं जिसमे से एक हैं -सास मंदिर एवं एक हैं बहु मंदिर। दोनों मंदिर मे गर्भगृह ,शिखर आदि तो बने हैं परन्तु अब प्रतिमाये गायब हैं। दक्षिण की तरफ बड़ा वाला मंदिर सास मंदिर एवं उत्तर की ओर छोटा मंदिर बहु मंदिर कहलाता हैं। दोनों मंदिर कुछ छोटे छोटे सहायक मंदिरों से घिरे हुए हैं। दोनों मंदिरों के बीच एक ब्रम्हा मंदिर भी बना हुआ हैं। मुख्य मंदिरों मे ब्रम्हा, विष्णु ,महेश ,राम ,बलराम और परशुराम के चित्र उंकेरे गए हैं।कुछ मंदिर टूटे हुए भी हैं।

Photo of आखिर सास-बहु मंदिर मे किस की पूजा होती हैं ? by Rishabh Bharawa
Photo of आखिर सास-बहु मंदिर मे किस की पूजा होती हैं ? by Rishabh Bharawa

ये सभी मंदिर अपनी वस्तुकलां के लिए प्रसिद्द हैं।इन मंदिरों के छज्जे ,स्तम्भ ,शिखर को प्राचीन कथाओं ,श्रृंगार ,नारी सौंदर्य ,मध्यकालीन परम्पराओं ,क्रीड़ाओं ,नृत्यों आदि से उंकेरा गया हैं।मंदिर के तोरण द्वार ,बरामदे ,मंडप आदि शिल्पकला के उत्कृष्ट नमूने हैं।मध्य प्रदेश के ग्वालियर मे भी इसी नाम से ऐसा ही एक और मंदिर मौजूद हैं।

दोनों मुख्य मंदिर अर्थात सास बहु मंदिर मे पूजा किस की होती थी तो ये जानने के लिए इस मंदिर के इतिहास पर एक नजर डालते हैं -

शैली के आधार पर ये मंदिर 10वीं या 11वीं शताब्दी के बताये गए हैं। इन मंदिरों पर मुग़लों के कई हमलें भी हुए थे।मुगलों ने तो इस मंदिर को रेत और चुने से बंद करवा दिया गया था और इसकी कई प्रतिमाये खंडित कर दी थी।समय के साथ साथ इसके कई अभिलेख नष्ट होते गए जिस से इस मंदिर को किसने बनाया यह स्पष्ट ना हो पाया। कहा जाता हैं कि गुहिल वंश के सहस्त्रबाहु नामक राजा ने इन दोनों मंदिरों का निर्माण यहाँ करवाया था। मंदिर का नाम भी सहस्त्रबाहु मंदिर रखा गया जो कि समय के साथ अपभृंश हो कर सासबहू मंदिर हो गया। लेकिन इतिहासकारों के हिसाब से ये बात सही प्रतीत नहीं हो पायी।ये भी माना जाता हैं कि मेवाड़ की राजमाता ने यहाँ विष्णु मंदिर बनवाया जिसे अब सास मंदिर एवं उनकी बहु ने शेषनाग मंदिर बनवाया जिसे बहु मंदिर कहते हैं। तो यहाँ भगवान विष्णु एवं शेषनाग भगवान की उपासना होती थी एवं सास बहु के द्वारा बनाये जाने के कारण ये मंदिर सास बहु मंदिर कहलाये।

Photo of आखिर सास-बहु मंदिर मे किस की पूजा होती हैं ? by Rishabh Bharawa
Photo of आखिर सास-बहु मंदिर मे किस की पूजा होती हैं ? by Rishabh Bharawa

कैसे पहुंचे :उदयपुर शहर से इसकी दूरी 20 किमी हैं तो अपना या किराए का साधन लेकर ही पंहुचा जा सकता हैं।

उचित समय : सितम्बर से फरवरी।

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-ऋषभ भरावा

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