हमारे भारत देश में मंदिरों से जुड़े कई किस्से और रहस्य ऐसे हैं, जिन्हें सुलझाने वाला खुद उलझ जाता हैं। ऐसे ही रहस्यों से भरा एक मंदिर हैं हिमाचल प्रदेश में जिसकी कहानी महाभारत काल से जुड़ी हुई हैं। कहा जाता हैं कि इसका निर्माण महाभारत काल में पांडवों द्वारा सम्पन्न हुआ था। इस मंदिर का नाम है, बाथू की लड़ी। इस मंदिर की खास बात यह हैं कि, यह मंदिर साल के आठ महीने पानी में डूबा रहता हैं और सिर्फ चार महीने ही नजर आता हैं।
बाथू की लड़ी
बाथू की लड़ी मंदिर हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिला में स्थित हैं। इसे बाथू की लड़ी के नाम से इसलिए जाना जाता हैं क्योंकि इसकी इमारतें बाथू नामक पत्थर से बनी हैं। इस मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं। ऐसा कहा जाता हैं कि जब सूर्यास्त होने लगता है तो सूर्य की किरणें इस मंदिर में स्थित शिवलिंग को स्पर्श करती हैं। यह मंदिर महाराणा प्रताप सागर (पौंग बांध) में स्थित हैं। यह पौंग बांध का निर्माण होने पर यह मंदिर पूरी तरह से जलमग्न हो गया। बांध की वजह से यह मंदिर आठ महीने पानी में डूबा रहता हैं और सिर्फ चार महीने ही नजर आता हैं। जब यह पानी में डूब जाता हैं तो दूर से देखने से ऐसा लगता हैं, जैसे मोतियों की माला हो जिनको लड़ियों में पिरोया गया हैं। इसलिए इसे बाथू की लड़ी कहा जाता हैं।
मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, यह मंदिर पांडवो ने बनवाया था। कहा जाता हैं कि पांडव अपने अज्ञात वास के दौरान यहीं रूक़े थे। यहां पर उन्होंने 11 मंदिरों का निमार्ण किया था। पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान यहीं अपनी स्वर्ग की सीढ़ी बनाने की कोशिश की थी। हालांकि, इसे बनाने में वो सफल नहीं हो सके। क्योंकि इन सीढि़यों का निर्माण उन्हें एक रात में करना था। भगवान श्री कृष्ण की सहायता से उन्होंने छः महीने की एक रात की फिर भी वे इन्हें पूरा करने में अहसमर्थ रहें। ऐसे में पांडवों का काम अढ़ाई सीढ़ियों से अधूरा रह गया और सुबह हो गई। आपको जानकर हैरत होगी कि आज भी इस मंदिर में स्वर्ग में जाने वाली 40 सीढ़ियां मौजूद हैं।
8 महीनों के लिए पानी में समा जाता हैं यह मंदिर
दरअसल जहां बाथू की लड़ी मंदिर स्थित है, वहां पौंग बांध का निर्माण होने के बाद से ये मंदिर 8 महीनों के लिए पानी में समा जाता है और उस दौरान सिर्फ मंदिर के ऊपर का हिस्सा ही दिखाई देता हैं। जो की मोतियों की तरह चमकता हैं। इसके बाद जब बांध में पानी का स्तर कम होता हैं तो यह मंदिर फिर से दिखाई देने लगता है, ये केवल साल के 4 महीने ही पानी से बाहर रहता हैं और इस दौरान मंदिर में लोगों की भीड़ जुट जाती हैं।
मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय
अगर आप इस मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं, तो यहां आने का उचित समय अप्रैल से जून महीना हैं। बाकी के महीने यह मंदिर पानी के अंदर रहता हैं। इस दौरान मंदिर का केवल ऊपरी हिस्सा ही दिखाई देता हैं। वैसे तो आप साल भर इस जगह पे जा सकते हैं क्योंकि मंदिर के आसपास का इलाका बेहद मनोरम हैं। इस मंदिर के आसपास छोटे-छोटे टापू बने हुए हैं। इनमे से एक पर्यटन की दृष्टि से रेनसर नाम से प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा यह जगह बर्ड वॉचर्स के लिए स्वर्ग समान है। क्योंकि पोंग डैम प्रवासी पक्षियों का घर होने के कारण बहुत मशहूर है। यहां 200 से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियां आती हैं।
कैसे पहुंचें?
हवाई मार्ग से - नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल हवाई अड्डा है। गग्गल हवाई अड्डे से इस मंदिर की दूरी की डेढ़ घंटे की है। यहां से आप टैक्सी या कैब ले कर मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग से - अगर आप ट्रेन से जाना चाहते हैं, तो नजदीकी रेलवे स्टेशन कांगड़ा रेलवे स्टेशन हैं। जहां से आप उतरकर किसी टैक्सी की मदद से यहां पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग से- इस मंदिर में जाने के लिए पठानकोट से कांगड़ा की तरफ जसूर से जवाली की तरफ जाना पड़ता है। जहां के लिए आपको बस मिल जायेगी। जवाली से करीब 15 किलोमीटर दूर पौंग डैम की झील के बीचोबीच यह मंदिर मौजूद है।
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