रंगीला फ्रांस: एक सुहाना सफर

Tripoto
Photo of रंगीला फ्रांस: एक सुहाना सफर by Sneh Lata

लन्दन से हम पेरिस घूमने गए (01.09.2013)- लन्दन से पेरिस आने के लिए हमने यूरो टनल पार की। हमारी पूरी बस वहाँ की टेन मे रख ली गई। टेन माल गाड़ी के कंटेनर की तरह थी जिसमें पूरी बस आ गई। आधे घंटे में हम लोग यूरो टनल पार करके पेरिस पहुँच गए। पेरिस फ्रांस की राजधानी है जो अपने फैशन, आर्ट गैलरी, और खूबसूरत इमारतों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। लन्दन से पेरिस आते समय हमने दूर दूर तक बड़े-बड़े खेत देखे जिनमें मक्का की फसल लगी थी। जिसमें भुट्टे लगे थे। खेत वैसे ही थे जैसे हमारे यहाँ के हैं। मगर गांव दूर दूर बसे छोटे छोटे संदर थे। गांव के मकान चारों तरफ से हरी भरी हैजेस से घिरे फूलों से सजे थे। शहर में भी अधिकतर घर बस दो मंजिले थे। घरों की छतें दोनो तरफ से ढलवां। गांव का पूरा दृश्य अपनी ड्राइंग की कापी में बनाई किसी सीनरी जैसा ही लग रहा था। लन्दन से पेरिस पहुँचे सुबह के 11.30 बजे थे। लंदन और पेरिस के समय में 1 घंटे का अन्तर रहता है। जैसे लंदन में 10.30 तो पेरिस में 11.30 बजे। पेरिस में हम सबसे पहले विश्व प्रसिद्ध आइफिल टावर देखने गए। सीन नदी के किनारे 324 मी० ऊँची लोहे के एंगिल से बनाई शान से गर्व से सिर उठाए। आइफिल टावर की तीसरी मंजिल से पूरा पेरिस अत्यन्त सुन्दर दिखाई दे रहा था। आइफिल टावर के ठीक नीचे नैपोलियन चैक हरी

ार्पेट सा बिछा था।

एफिल टावर को देखने विश्व के अनेक देशों से लोग आए थे। वहाँ ऐसा लग रहा था जैसे देशों का नहीं बल्कि महाद्वीपों की संस्कृतियों का मिलन हो रहा हो। एफिल टावर पर जाने के लिए बड़ी से लिफ्ट लगी है जिसमें एक बार में लगभग 30-40 लोग ऊपर जा सकते हैं। वैसे ऊपर तक जाने के लिए सीढ़ियाँ भी बनी हैं। उसी विशाल लौह काया देखकर हमने उसे बनाने वाले दोनों इंजीनियर गुस्ताव एफिल को सलाम किया।

शाम को सीन नदी में क्रूज शिप मे बैठकर नदी के किनारे पर बने खूबसूरत मान्यूमैंटस को देखा। सीन नदी पर सुंदर 22 पुल बने हैं। पुलों के ऊपर सुंदर मूर्तियाँ जो प्राचीन संस्कृति तथा इतिहास को प्रदर्शित करती हैं सुनहरे रंग से सोने सी चमकती दिखाई देती हैं। दोनों किनारों पर लोगों की भीड़ शाम का आनन्द उठाती बैठी थी। रात को हम लोग होटल नोवोटेल में रूके।

02.09.2013 फ्रांस डिज़्नीलैंड- अगले दिन फ्रांस में हम मौज मस्ती करने पिकनिक मनाने तरह तरह के एडवैंचर करने के लिए अपने लंच पैक साथ लेकर यूरोप के सर्वाधिक प्रसिद्ध आकर्षण डिज़्नीलैंड गए। डिज़्नीलैंड में डिज़्नी पार्क है जिसमें तरह तरह के रोमांचकारी झूले लगे हैं। जिनमे दो तीन साल के बच्चों से लेकर छोटे छोटे घोड़े वाले, जंपिग कार वाले झूले हैं। वहीं चैदह पंद्रह साल के बच्चों के लिए अलादीन वन्डरफुल लैम्प ,एडवेंचर वर्ड , इंडियाना टेम्पल ज़ोन आदि थ्रिल राइड हैं।

डिज़्नीपार्क मे घुसते ही चारों ओर फूलों से सजी क्यारियाँ , अलादीन के जादुई महल , एक परी कथा सा- भूतों के डेरों सा पाइरेट्स आफ कैरेबियन सब कुछ बना है। एक ऐसी दुनिया जिसे सिर्फ फिल्मों में देखा या किताबों में पढ़ा था।

चारों तरफ रंग बिरंगे परिधानों में सजे बच्चे कुछ प्रैम्प में बैठे कुछ मम्मी की अंगुली पकड़े और कुछ बडे़ बच्चेे जो थ्रिल और एडवैंचर से भरे। बच्चे बूढे़ हर आयु वर्ग के लोग। मनीष ने बताया टेम्पल राइड बड़ी खतरनाक है, झूला 3600 तक घूम जाता है। हमने सोचा कुछ एडवैंचर किया जाए। हमारे साथ के अधिकतर लोग डर गए। वह डिज़्नी पार्क के बजाय डिज़्नी स्टूडियो देखने गए। डिज़्नी स्टूडियो में तरह तरह की स्टंट फिल्में, फोटोग्राफ आर्ट गैलरी थी।लोगों ने पिक्चर के मजे लिए। शानदार नज़ारा था। जिस दिन कुछ लोग डिज़़्नीलैंड गए थे उसी दिन कुछ लोग वर्सिलीज़ पैलेस तथा विश्व प्रसिद्ध लुब्रा म्यूजियम गए। वर्सिलीज़ पैलेस में अनेक ऐतिहासिक मौन्यूमेंट बने हैं। यहीं ओपेरा हाल तथा हाल आफ मिरर है जिसमें शीशे की अद्भुत छटा दर्शनीय है। विश्व प्रसिद्ध मोनालिसा पेंटिग भी यहाँ रखी है। निःसंदेह फ्रांस की आर्ट, मूर्तिकला बेजोड़ है।

लगभग चार बजे हम डिज़्नीलैंड से लौटे और पूरे पेरिस का बस में बैठकर सिटी टूर किया। जिसमें हमने एलैक्जैंडर ब्रिज, आर्क डी ट्रिम्फ कानकार्ड स्कवायर, ओपेरा हाउस, इनवैलिड्स, चैम्पस यूजीसिज वहाँ के मंहगे मंहगे शोरूम, होटेल आदि देखे।

शाम को होटेल नोवोटेल में रूके।

डिज़्नीलैंड से शाम को हम वापस होटल आ गए थे। रात के दस बजे हम फिर से एफ़िल टावर देखने गए। ठीक दस बजे एक लेजर लाइट शो के साथ पूरा एफ़िल टावर ऐसे जगमगा उठी जैसे इसमें हीरे जडे़ हों । तब इसे वहाँ के लोग डायमंड एफ़िल टावर कहते हैं।

रात के साढे़ दस बजे हम लोग पेरिस का सर्वाधिक आकर्षक लीडो शो देखने गए। लीडो शो पारम्परिक वेशभूषा में सजे , रंग बिरंगे पंख, फूल, मुखौटे लगाकर तरह तरह के जिम्नास्ट द्वारा लड़के लड़कियों द्वारा दिखाया जाने वाला वैले डांस शो है। डेढ़ घंटे का शो था। डांस की फुर्ती, स्टेज की सजावट वाकई किसी चलचित्र से कम नहीं थी। यकीन नहीं होता था कि यह शो फिल्म के पर्दे पर नहीं हमारे ठीक सामने स्टेज पर हो रहा है।लीडो डांस में विभिन्न वेशभूषा में सजे कलाकारों ने अनेक मुद्राएं दिखाई़ं। हमें यह देखकर सुखद अनुभूति हुई कि डांस कलाकारों ने भारतनाट्यम की परम्परागत वेशभूषा साड़ी भी पहनी थी तथा हमारे टैम्पल डांस को गणेश, माँ दुर्गा के मुखौटे लगाकर भी भारतीय परम्परानुसार प्रस्तुत किया। रात के दो बजे हम होटल नोवोटेल वापस आ गए।