एक शाम की तलाश में
निकल पड़ा मैं
ढूंढने कुछ ऐसा
रूह को सुकून दे कुछ वैसा
फिर चलते चलते सड़क पर
एक नज़ारा दिखा
जलता हुआ सूरज
रंगो में नहाता दिखा
वो नज़ारा था मन को मदहोश करने वाला
पहुंच चूका था मैं सीधा धर्मशाला
उस जगह की ख़ामोशी में भी एक गुनगुनाहट थी
कानों में चिड़ियों की चह-चहाहट थी
मन खुद-ब-खुद ही गाने लगा
मेरा दिल उन वादियों पर आने लगा
लेकिन दिमाग में चल रहा था एक डर
वापिस लौटने पर जो होगा, उसकी थी फ़िक्र
दोबारा से एक शोर में चला जाऊँगा
चलते चलते फिर मैं खुद को भूल जाऊँगा
पर लौटूँगा ज़रूर वापिस से
रंगो में सूरज को नहाते देखने
अपनी ज़िन्दगी के इन पलों को दोबारा से जीने
मैं आऊंगा, मैं आऊंगा