स्वर्ण मंदिर : अमृतसर [ पंजाब ]

Tripoto
16th Sep 2020
Photo of स्वर्ण मंदिर : अमृतसर [ पंजाब ] by नवल किशौर चौला
Day 1

         स्वर्ण मंदिर : अमृतसर  [ पंजाब ]
     
                  [ 27 - 07 - 2019 ]

माता रानी के दरबार में जाने का सौभाग्य बड़ी मुश्किल से मिलता है। माता वैष्णो देवी जाने का मौका मुझे भी मिला। मुझे मेरी पुरानी यात्रा याद आ गई। पहाड़ों का वो सुहाना मौसम पुरे रास्ते जय माता दी के जयकारे से सारा रास्ता कब  कट जाता है। पता ही नहीं चलता। इस बार मेरे साथ मेरा सुसराल पक्ष भी जा रहा था। हमने प्रोग्राम बनाया की हम पहले अमृतसर गुरुद्वारा फिर वैष्णो देवी और अंत में शिव खोड़ी जाना है। मैं ज्यादातर सफर रेल से करना पसंद करता हूं। मैंने गोल्डन टेंपल मेल एक्सप्रेस ट्रेन में टिकट बुक कर ली।  जो शाम 7.00 बजे हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से चल कर अगले दिन  अमृतसर रेलवे स्टेशन सुबह 5.30 बजे पहुंचती है।  हम सब  26 - 07 - 2019  को दोपहर 5.00 बजे तक हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंच गये। तकरीबन 6-00 तक ट्रेन भी आ गई। क्योंकि यह ट्रेन इसी स्टेशन से बन कर चलती है। हम सब चल दिए एक धार्मिक और सुहाने सफर के लिए। सुबह 6-00 तक हम अमृतसर पहुंचे।

Photo of स्वर्ण मंदिर by नवल किशौर चौला
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रेलवे स्टेशन से बाहर आते। हमने ओटो करा और चल दिए अमृतसर गुरूद्वारे। वहां पहुंच कर चाय नाश्ता करा।

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स्वर्ण मंदिर

स्वर्ण मंदिर अमृतसर पंजाब का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र शहर माना जाता है। पवित्र इसलिए माना जाता है। क्योंकि सिक्खों का सबसे बड़ा गुुरुद्वारा स्वर्ण मंदिर अमृतसर में है। स्वर्ण मंदिर अमृतसर का दिल माना जाता है। यह गुरु रामदास जी का डेरा हुआ करता था। अमृतसर का इतिहास प्रभाव शाली है। यह अपनी संस्कृति और लड़ाइयों के लिए बहुत प्रसिद्ध रहा है।  अमृतसर गुरुद्वारे  में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। अमृतसर का नाम वास्तव में उस सरोवर के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरु राम दास ने स्वयं अपने हाथों से किया था। यह गुरुद्वारा इसी सरोवर के बीचोबीच स्थित है। इस गुरुद्वारे का बाहरी हिस्सा सोने का बना हुआ है, इसलिए इसे स्वर्ण मंदिर अथवा गोल्डन टेंपल के नाम से भी जाना जाता है। श्री हरिमंदिर साहिब को दरबार साहिब के नाम से भी ख्याति हासिल है। सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने  1588 में गुरुद्वारे की नींव रखी थी। सबसे पहले हमने सरोवर में स्नान की और चल दिए गुरुद्वारे में अरदास करने। सरोवर और गुरुद्वारा काफी सुंदर और काफी बड़े भाग में फैला हुआ है।  मत्था टेकने वाली लाइन में काफी भीड़ थीं। हम सब मत्था टेका कर बाहर आ गये।

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अटारी बार्डर कि तरफ जाते हुए रास्ते में माता का मंदिर पड़ता है उसके दर्शन करे

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अटारी बार्डर पहुंचते हुए हम तकरीबन 3-30 गये थे। भीड़ बहुत थी। ऊपर से गर्मी भी बहुत थी जिससे काफी  बुरा हाल था  दर्शक दीर्घा में जाने के लिए लम्बी लाइन लगी थी प्रत्येक व्यक्ति कि चेकिंग हो रही थी जिसे काफी समय लग। पुरुषों और महिलाओं की अलग-अलग लाइन थी। पानी की बोतल बेचने वाले झूठ बोलकर पानी बेच रहे थे। कि अंदर पानी नहीं मिलेगा। चूंकि गर्मी बहुत थी, तो लोग काफी सारी बोतलें खरीद रहे थे।परन्तु अंदर जा कर सारी थकान मिट गाई। देशभक्ति गीत चल रहे थे। काफी सारे लोग जोशीले देशभक्ति से परिपूर्ण नारे लगा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि अभी गेट खोल दिया गया तो सारे नारे लगाने वाले पाकिस्तान की सीमा में घुसकर एक युद्ध छेड़ देंगे।
भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे काफी मनमोहक दृश्य था पहले जब मैं आया था। तो दर्शक दीर्घा छोटी थी अब यह दो मंजिला बन दी गई है।  जिसमें काफी दर्शक बैठ सकते हैं। बीएसएफ का PT   वाला बार-बार लोगो को ताली बजाने और चिल्लाने के लिए प्रेरित कर रहा था। यह एक यादगार सेरेमनी थी। बहुत ही उम्दा लाइफटाइम अनुभव था
अंत में, अगर आप पंजाब जाते हैं तो अटारी-वाघा बॉर्डर सेरेमनी देखना ना भुलना एक बात और वहां मोबाइल नेटवर्क नहीं मिलता है तो अगर आपके साथ वाले इधर-उधर बैठे हों तो उनसे बाद में मिलने की जगह पहले ही निश्चित कर लें ताकि बाद में कोई असुविधा न हो। करीब 6-50 पर सेरेमनी खत्म हुई।

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अटारी बॉर्डर

आम तौर पर लोग अटारी बॉर्डर और वाघा बॉर्डर के बीच अंतर नहीं कर पाते। वाघा बॉर्डर पाकिस्तान में तो हमारी तरफ है अटारी बार्डर है।
अटारी बॉर्डर पर बीटिंग रिट्रीट सैरेमनी देखने  हजारों देशवासी आते है. 1959 में हुई रिट्रीट की शुरुआत: भारत-पाक विभाजन के बाद 1958 में यहां एक छोटी-सी पुलिस चौकी स्थापित की गई थी। इससे पहले यहां 1949 में एक छोटा गेट लगाया गया था। अटारी बॉर्डर से लाहौर की दूरी 29 किलोमीटर और अमृतसर की दूरी 27 किलोमीटर है। अटारी बॉर्डर पर बीटिंग रिट्रीट सैरेमनी की शुरुआत 1959 में हुई थी। इसका मकसद दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग और सौहार्द्र का माहौल बनाना है। यहां रोज शाम को सूर्यास्त से पहले औपचारिक रूप से सीमा को बंद किया जाता है और दोनों देशों के झंडे को सम्मानपूर्वक उतारा जाता है। इस दौरान दोनों देशों के दर्शक नारेबाजी भी करते हैं, जिससे देशभक्ति की भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। दोनों देशों के सैनिक परेड निकालते हैं, जिसमें उनका जोश देखने काबिल होता है। देशभक्ति के गीत बजाए जाते हैं। कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। दोनों देशों के झंडों को सम्मानपूर्वक तरीके से उतारने के साथ ही समारोह का अंत होता है।
360 फुट ऊंचा तिरंगा: अटारी सीमा पर 360 फुट ऊंचा तिरंगा भी स्थापित किया गया है। यह देश में सबसे ऊंचा है और लाइन ऑफ कंट्रोल से 200 मीटर की दूरी पर है। 55 टन के पोल पर फहराए गए इस 120 गुना 80 फुट के तिरंगे का वजन 100 किलो है।

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अटारी बार्डर से आते आते रात हो गई थी जब तक जलियांवाला बाग बंद हो गया था

जलियांवाला बाग

13 अप्रैल 1919 को इस बाग में एक सभा का आयोजन किया गया था। यह सभा ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध थी। इस सभा को बीच में ही रोकने के लिए जनरल डायर ने बाग के एकमात्र रास्ते को अपने सैनिकों के साथ घेर लिया और भीड़ पर अंधाधुंध गोली बारी शुरू कर दी। इस गोलीबारी में बच्चों, बुढ़ों और महिलाओं समेत लगभग 300 लोगों की जान गई और 1000 से ज्यादा घायल हुए। यह घटना को इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक माना जाता है।जलियां वाला बाग हत्याकांड इतना भयंकर था कि उस बाग में स्थित कुआं शवों से पूरा भर गया था। अब इसे एक सुन्दर पार्क में बदल दिया गया है।
फिर हम चल दिए थे। अमृतसर रेलवे स्टेशन जहां से हमें जम्बू तवी के लिए ट्रेन पकड़नी थी। जो रात 1.20 पर  चलती है और सुबह 6.20 तक जम्मु तवी पहुंचती हैं।

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