यात्रा के अंत के सिरे पर एक और यात्रा का जुड़ जाना बिल्कुल एक नये दोस्त की भाँति होती है। आपकी यात्रा में एक ओर अध्याय जुड़ जाता है।
और आपका सफर रोमांच की बढ़ने लगता है।
मैं हमेशा सी ही नये शहर ,नये कस्बे को यात्राओ मे तलाशता रहता हूँ।
मुझे नयेपन की खूशबू बहुत रोमांचित कर देती है और ढ़ेर सारी ऊर्जा से भर देती है। इस बार कुछ वैसा ही हुआ ...सुबह के करीब 9 बज आये थे ,और मैं कमरे मे खिड़की के किनारे पर टिका हुआ। यात्रा के आखरी पड़ाव यानि की शहर से विदाई का ख्याल जहन के भीतर लिया बैठा था। मन थोड़ा उदासी से भरने लगा था। ये अकसर मेरे साथ यात्राओ में होता है। ये मेरा शहर से जुड़ाव दिखाता है। जब आप कुछ दिन मे ही किसी अंजाने शहर को कुछ ऐसा जान लेते है जैसे आपसे कोई आपके घर के बारे मे पूछता है। आप झट से उन्हें बिन कहे घर के हर कोने तक पहुँच देते है। इवन आप ये भी बता देते है कि आपकी
सबसे खूबसूरत किताब कहा रखी है।
ऐसा ही कुछ नये शहर को घूम लेने के बाद होता है। आप एक इंसान ,वो सारी खूबसूरत जगह बता देते है। जहाँ आपने अपने जीवन के सबसे बेहतरीन पलो को जिया होता है।
उन पलो को बयाँ करते वक्त आपकी उत्सुकता को भली भाँति भापा जा सकता है। पर किस गहराई तक आप उस शहर को अपने भीतर बसा पाये हो...इसका पता बरस बाद पता चलता है।
-मौरिश नागर