#गुरुद्वारा_तपसथान_गुरु_नानक_देव_जी
#मंचूखा_अरुणाचल_प्रदेश
नमस्कार दोस्तों
यह खूबसूरत तसवीरें मुझे Pankaj Mehta Traveller ने भेजी हैं जो पिछले दिनों अरूणाचल प्रदेश जाकर आए हैं। पंकज भाई ने ही मुझे इस पोस्ट को लिखने के लिए कहा । भाई का मैं बहुत शुक्रिया करता हूँ जिनकी वजह से मुझे अरूणाचल प्रदेश में गुरु नानक देव जी के ईतिहासिक गुरु घर के दर्शन करने का सौभाग्य मिला ।
दोस्तों गुरु नानक देव जी ने पैदल चल कर बहुत यात्रा की हैं जिसमें वह तिब्बत, सिककम , अरूणाचल प्रदेश, आसाम, मणीपुर आदि जगहों पर भी गए है जिसके काफी ईतिहासिक प्रमाण भी हैं। ऐसी ही एक खूबसूरत और ईतिहासिक जगह हैं गुरुद्वारा तपसथान गुरु नानक देव जी मंचूखा जो अरूणाचल प्रदेश में है। यह जगह भारत चीन सीमा के भी पास हैं। इस ईलाके में मेंबा नाम का कबीला रहता है जो गुरु नानक देव जी के साथ ही तिब्बत से इस क्षेत्र में आया था जब गुरु जी तिब्बत यात्रा पर थे। यह लोग गुरु जी को नानक लामा के रूप में पूजते हैं। मेंबा कबीले के लोग लकड़ी काटने और शिकार करने का काम करते हैं। जब गुरु जी मंचूखा आए थे और 15 दिन तक इस क्षेत्र में रुके थे और यहां ही गुरु जी ने तपस्या की थी। यह गुरु घर मंचूखा से 15-16 किमी दूर जंगलों में बना हुआ है। यह गुरुद्वारा बहुत रमणीक जगह पर बना हुआ है। इस ईतिहासिक गुरुद्वारा साहिब को बनाने का श्रेय करनल दलविंदर सिंह ग्रेवाल को जाता हैं जिनकी 1986 में इस क्षेत्र में डियूटी थी । तब करनल साहिब को लोकल लोगों से गुरु नानक देव जी के बारे में पता चला। जिस जगह को लोकल लोग गुरु जी की याद में पूजते थे उसी जगह पर यह ईतिहासिक गुरुद्वारा बना हुआ है। जिस समय यह गुरुद्वारा बना था उस समय यहां पहुंचने के लिए आपको जंगल में पैदल चल कर ही पहुंच सकते थे लेकिन आजकल गुरुद्वारे तक सड़क बन चुकी हैं। इस गुरुदारे का निर्माण करनल साहब की युनिट के फौजियों की मदद से हुआ हैं। सारा सामान आसाम के मोहनबाड़ी हवाई अड्डे से मंचूखा के हवाई अड्डे तक हवाई जहाज से आया जिसमें 542 फील्ड बैटरी युनिट के फौजियों ने सेवा की। जब गुरुघर के तीन कमरे तैयार हो गए तो हैलीकॉप्टर से ही गुरु ग्रंथ साहिब जी की बीड़ भी यहां पहुंच गई। फिर धीरे धीरे मंचूखा से गुरुदारे तक 16 किमी सड़क भी बन गई। 22 मार्च से 24 मार्च तक लोकल लोग इस क्षेत्र में एक मेले का आयोजन करते हैं कयोंकि यह वह ही समय था जब गुरु जी इस जगह पर आए थे। अब तो बैशाखी का तयोहार भी यहां मनाया जाता है। गुरु जी कृपा से आज यहां खूबसूरत गुरुदारे का निर्माण हो गया। जहां अब दूर दूर से संगत जाती हैं। गुरुदारे के ईतिहास के बारे में मुझे करनल दलविंदर सिंह ग्रेवाल की पंजाबी में लिखी हुई किताब "सो थान सुहावा" में से पता चला। मेरी भी इच्छा है कि मैं भी किसी दिन अरुणाचल प्रदेश में बने इस गुरुदारे की यात्रा पर जाऊं। इस पोस्ट को लिखकर मैं अपने आप को बहुत धन्य मानता हूं और पंकज भाई का भी बहुत शुक्रिया करता हूँ। जब पंकज भाई ने एक सवाल पूछा था कि मंचूखा जाऊ या यह एक और जगह थी तो भाई को कहा था मंचूखा जाईये और वहां के गुरुदारे भी जरूर जाना। पंकज भाई मंचूखा भी गए और मुझे गुरुदारे की शानदार तसवीरें भी भेजी, जिसकी वजह से यह पोस्ट लिख पाया।
दोस्तों जब भी अरूणाचल प्रदेश जाने का मौका मिले तो यहाँ दर्शन करने के लिए जरूर जाना|
धन्यवाद