पन्ना (म.प्र.)की अविस्मरणीय यात्रा!
जब छतरपुर या पन्ना के आसपास से निकलता था सदैव ही पन्ना के जंगलों ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया। कई बार जाने का विचार किया लेकिन किसी न किसी कारण वश नही जा पाया।परंतु पिछले माह ही पन्ना टाइगर रिज़र्व जाने का अवसर मिला। जैसे है मडला पहुंचा और केन नदी को पार किया पन्ना के घने जंगल मुझे अपनी ओर खींचने लगे मन मे बस एक ही ललक थी कि जल्द से जल्द जंगल सफारी की जाए।
पार्क के प्रवेश द्वार के समीप ही केन नदी के किनारे पर कर्णावती द्वार से एंट्री टिकिट और जिप्सी ली जिसमे अधिकतम 6 लोग बैठ सकते है और इसका एंट्री फीस सहित किराया 3800 रुपये था। जिप्सी ले कर सीधे जंगल की ओर निकल पड़े। शाम का वक़्त था ठंडी हवा बहने लगी थी जो जंगल मे और भी ठंडा अहसास दे रही थी। जैसे ही जंगल मे प्रवेश किया , कुछ ही दूरी पर हिरणों का बहुत बड़ा झुंड स्वतंत्र विचरण करता हुआ पास ही नजर आया। कुछ दूरी पर कुछ नीलगाय और सांभर भी घूम रहे थे । एक दम निर्भीक हो कर इन जानवरों को देख कर सुकून मिला कि कही तो ये सुरक्षित है। मन ही मन वन विभाग को धन्यबाद ज्ञापित किया जिनकी दिन रात की मेहनत से हम इन्हें देख पा रहे है।अन्यथा इन जीवों का बच पाना मुश्किल है।
खैर जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गए अनेक जीवो को देखने का अवसर मिलता गया। शेर महाशय भी नजदीक ही झाड़ियों में विराजमान थे। केन नदी के तट पर घड़ियालों को भी स्वतंत्र रूप से ढलती धूप सकते हुए देखने का अवसर मिला। धीरे धीरे पता ही नही चला कब वक्त गुजर गया और अंधेरा होने लगा साथ ही नेशनल पार्क से बाहर निकलने का वक़्त जो चला था। मन तो नही था ,लेकिन जाना तो था ही ,सो पार्क की अविस्मरणीय यादों को जहन में सजोये हुए वापिस चल दिये। एक दिन में पार्क के बहुत छोटे से हिस्से को ही देख पाए पर जितना देखा उस से एक बात तो स्पस्ट समझ ही आयी की मनुष्य को जो सुख और शांति प्रकृति की गोद मे मिलती है वो और कहीं नहीं।
फ़ोटो- 11.11.2019