पंजाब के होशियारपुर जिले में देखने लायक ईतिहासिक जगहें- जानिए ईतिहास

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Photo of पंजाब के होशियारपुर जिले में देखने लायक ईतिहासिक जगहें- जानिए ईतिहास by Dr. Yadwinder Singh

प्राचीन_पांडव_सरोवर
‌दसुआ_जिला_होशियारपुर के होशियारपुर जिले में जालंधर-पठानकोट नैशनल हाइवे पर बसा हुआ दसुआ बहुत प्राचीन शहर है| दिल्ली, चंडीगढ़ से आने वाले टूरिस्ट जो जम्मू कश्मीर की तरफ जाते हैं दसुआ को पार करके ही जाते हैं लेकिन वह दसुआ के ईतिहास को शायद न जानते हुए सीधे ही निकल जाते हैं| जैसे मैंने पहले बताया दसुआ बहुत प्राचीन शहर है इसका ईतिहास महाभारत काल से पांडवों से जुड़ता है| पंजाब के होशियारपुर जिले में कंडी क्षेत्र में ऐसी बहुत सारी जगहें आपको मिल जाऐगी जिनका पांडवों के साथ ईतिहास जुड़ा हुआ है| दसुआ भी पांडवों से जुड़ी हुई ईतिहासिक जगह है| 11 मार्च 2023 को अपने दोस्तों के साथ पठानकोट जाने का मौका मिला तो घर से मोगा, धर्मकोट, शाहकोट , जालंधर, टांडा आदि जगहों में से गुजरते हुए हम पठानकोट की तरफ बढ़ रहे थे | मैंने दसुआ के हाजीपुर चौक के पास गाड़ी रुकवा ली| अपने घुमक्कड़ दोस्तों को दसुआ के प्राचीन ईतिहास के बारे में बताया| दोस्तों आजकल लोग ईतिहास में रुचि कम ले रहे हैं | मेरे दोस्तों के लिए यह नयी बात थी कि पंजाब में भी पांडवों से संबंधित जगहें है |जहाँ पर हम जा सकते हैं| घुमक्कड़ होने के नाते मेरे दोस्तों में उत्सकता बढ़ गई  उस ईतिहासिक जगह को देखने के लिए | इस तरह हमने गाड़ी घुमा कर प्राचीन पांडव सरोवर की तरफ मोड़ ली जो हाजीपुर चौक में ही है |
प्राचीन पांडव सरोवर दसुआ
दसुआ शहर के हाजीपुर चौक में हम प्राचीन पांडव सरोवर में पहुँच गए| मंदिर के प्रवेश द्वार के पास ही भगवान शिव की विशाल मूर्ति बनी हुई है जो बहुत आकर्षिक लग रही थी| इसके साथ ही एक बनावटी गुफा का निर्माण किया हुआ है| इसको देखने के बाद हम कुछ आगे बढ़े | सफेद रंग की दीवार के बीच बने खुले दरवाजे को पार करने के बाद हम पांडव सरोवर में प्रवेश कर गए| हमारी आखों के सामने एक विशाल सरोवर था जिसके बीच में एक खूबसूरत मंदिर बना हुआ है| इस मंदिर में जाने के लिए सरोवर में ही दो साईड से पुल बना हुआ है| मंदिर की ईमारत बहुत खूबसूरत बनी हुई है| एक ऊंची विशाल ईमारत है मंदिर की| पांडव मंदिर सरोवर की ईमारत दिलकश है नीचे से चौड़ी और जैसे जैसे ऊंचाई बढ़ रही है चौड़ाई कम हो रही है| एक टावर जैसी ईमारत है पांडव सरोवर की| सरोवर के ऊपर बने हुए पुल को पार करने के बाद हम मंदिर में पहुंचे| मंदिर के अंदर अलग अलग हिन्दू देवी देवताओं की मूर्ति बनी हुई है| मंदिर के दर्शन करने के बाद पंडित से हमने इस जगह के ईतिहास की जानकारी ली |
ऐसा कहा जाता है महाभारत काल में दसुआ में महाराज विराट का राज्य था| इसलिए दसुआ को विराट नगरी भी कहा जाता है| पांडवों को 13 साल का बनवास मिला था | जिसमें 12 साल के बाद आखिरी 1 साल में उनको अज्ञातवास में रहना था जिसमें उनको कोई पहचान न सके| इसलिए पांडवों ने भेष बदल कर विराट राजा के सेवादार के रूप में नौकरी की | ऐसा भी कहा जाता है भगवान कृष्ण भी दसुआ आए थे | भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध से पहले पांडवों, महाराज विराट और उनके मंत्रिमंडल से युद्ध के बारे में चर्चा की थी| यहीं पर ही भगवान कृष्ण ने पांडवों को महाभारत युद्ध में जीत का आशीर्वाद दिया था| प्राचीन पांडव सरोवर की सथापना भीम ने गायों के लिए पानी की कमी को पूरा करने के लिए अढ़ाई टप्प लगाकर की थी| यह सरोवर ही बाद में पांडव सरोवर के नाम से प्रसिद्ध हो गया| हमने भी इस प्राचीन पांडव सरोवर के दर्शन किए| मंदिर का वातावरण बहुत आलौकिक और शांत था| मंदिर देखने के बाद हमने कुछ समय वहाँ की आलौकिक शांति में बिताया| फिर हम मंदिर से बाहर आकर दसुआ किले को देखने के लिए गाड़ी में बैठ गए|
दसुआ किला
दसुआ को विराट राजा की नगरी कहा जाता है| ऐसा माना जाता है दसुआ प्राचीन शहर है| यहाँ विराट राजा का राज था| दसुआ में एक किला है जिसके बारे में कहा जाता है यह राजा विराट के समय का है| हम भी पांडव सरोवर से पठानकोट रोड़ की तरफ चल पड़े और एक पैटरोल पंप के सामने वाली गली से होते हुए रेलवे फाटक पार करके एक ऊंची सड़क पर चलते हुए दसुआ के सरकारी सैकंडरी सकूल जो लड़कियों का है उसके गेट के सामने पहुँच गए| दसुआ किला को अब एक सरकारी स्कूल में तब्दील कर दिया गया है| दसुआ किला काफी खराब हालत में है| दसुआ किले में सिर्फ एक बुर्ज ही दिखाई देता है| किले को देखने के लिए आपको इस सरकारी स्कूल में से होकर जाना होगा| जब हम पहुंचे तो शाम का समय था तो सकूल का गेट बंद था| हम चाह कर भी दसुआ किले को नहीं देख पाए| दसुआ किले के एक बुर्ज की तसवीर दूर से खींच ली | ऐसा लोकल लोग कहते हैं कि दसुआ में ही पांडवों ने अपने अज्ञातवास के आखिरी साल को बिताया है| इस किले के अंदर एक सुरंग का होना भी माना जाता है जो पांडव सरोवर के पास निकलती है| अब यह सुरंग बंद है| पांडवों से जुड़ी इस ईतिहासिक जानकारी के बारे में जानकर और जगहों को देखने के बाद मुझे बहुत अच्छा लग रहा था|
कैसे पहुंचे- दसुआ जालंधर-पठानकोट नैशनल हाइवे पर बसा हुआ शहर है| दसुआ में रेलवे स्टेशन भी है आप रेल मार्ग से भी दसुआ पहुँच सकते हो| दसुआ जालंधर से 56 किमी और पठानकोट से 55 किमी दूर है| रहने के लिए आपको दसुआ में हर तरह के होटल मिल जाऐगे|

प्राचीन पांडव सरोवर दसूहा जिला होशियारपुर

Photo of दसूहा by Dr. Yadwinder Singh

पांडव सरोवर

Photo of दसूहा by Dr. Yadwinder Singh

प्राचीन हिडिम्बा मंदिर
भारत के मात्र दो हडिम्बा  माता मंदिरों में से एक मंदिर जो पंजाब की पहाड़ियों में है।
तलवाड़ा जिला होशियारपुर
आज हम पंजाब के हुशियारपुर जिले के कस्बे तलवाड़ा से सात  किमी दूर पहाड़ो और गहरे जंगल में बसे प्राचीन हडिम्बा मंदिर के दर्शन करेंगे। पूरे भारत में हडिम्बा माता के दो ही मंदिर हैं , पहला हडिम्बा मंदिर मनाली हिमाचल प्रदेश में और दूसरा तलवाड़ा के पास पंजाब में प्राचीन हडिम्बा मंदिर। मैंने दोनों मंदिरों के दर्शन किए हैं। मनाली वाला हडिम्बा मंदिर बहुत मशहूर हैं लेकिन तलवाड़ा वाला मंदिर जो पंजाब की पहाड़ियों में है उसके बारे बहुत कम लोगों को पता हैं, इस प्राचीन हडिम्बा मंदिर के आज हम दर्शन भी करेंगे और ईतिहास भी जानेंगे।
दोस्तों पंजाब के हुशियारपुर जिला का काफी भाग पहाड़ी क्षेत्र हैं जो कंडी क्षेत्र भी कहलाता हैं। चंडीगढ़ से पठानकोट हाईवे के पूर्व वाले पंजाब के होशियारपुर जिले के भाग को कंडी क्षेत्र कहते है जो निचला पहाड़ी क्षेत्र है जो हिमाचल प्रदेश के साथ लगा हुआ है। होशियारपुर जिला के इस कंडी क्षेत्र की पहाड़ियों में महाभारत काल से पांडवों के साथ बहुत सारे सथल जुड़े हुए हैं कयोंकि ऐसा कहा जाता हैं , पांडवों ने अपने बनवास का आखिरी साल जो अज्ञातवास का था राजा विराट के पास भेष बदल कर गुजारा जो होशियारपुर जिले के कंडी क्षेत्र में ही आता है। राजा विराट की राजधानी होशियारपुर जिला का शहर दसुआ है जो जालंधर-पठानकोट हाईवे पर एक मशहूर कस्बा हैं जहां पांडवों ने भेष बदल कर राजा विराट के पास नौकरी की जहां आजकल दसुआ शहर में पांडवों की याद में पांडव सरोवर बना हुआ है। ऐसी बहुत सारी निम्नलिखित जगहें है होशियारपुर और पठानकोट जिले में जो पांडवों के साथ संबंधित हैं जैसे
1. पांडव सरोवर दसुआ
2. गगन जी का टीला
3. कामाक्षी देवी ( कमाही देवी )
4. प्राचीन हडिम्बा मंदिर तलवाड़ा
5. पंडन कुआं
6. मुकतेशवर महादेव मंदिर पठानकोट आदि
प्राचीन हडिम्बा मंदिर तलवाड़ा
यह हडिम्बा माता का मंदिर बहुत प्राचीन हैं महाभारत काल से इसका संबंध हैं, माता हडिम्बा पांच पांडवों में से एक महाबली भीम की पत्नी और घटोत्कच की माता थी। ऐसा कहा जाता हैं जब पांडव अज्ञातवास में होशियारपुर के कंडी क्षेत्र में आए तो यहां नदियों का बहाव बहुत तीव्र था खासकर बयास नदी का जिसे पार करना पांडवों के लिए मुश्किल हो रहा था, तब पांडवों ने माता हडिम्बा से प्राथना की जिससे माता हडिम्बा ने पांडवों की समस्या का समाधान किया। जिस जगह पर आज प्राचीन हडिम्बा मंदिर बना हुआ है वहां पर माता हडिम्बा और पांडवों ने विश्राम किया था। यह मंदिर आज भी गहरे जंगल और ऊंची पहाड़ियों में बना हुआ है। मंदिर के आंगन में आज भी बहुत प्राचीन वृक्ष हैं जो महाभारत काल का हैं और तकरीबन पांच हजार साल पुराना बताया जाता हैं।इसी वृक्ष के नीचे घने जंगल में पांडवों और माता हडिम्बा ने विश्राम किया था। आज यहां छोटा सा लेकिन बहुत खूबसूरत मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में हर साल जून के महीने में एक बहुत बड़ा मेला भी लगता है। इस मंदिर की लोकेशन बहुत सुंदर है| यहां मोबाइल का सिग्नल नहीं आता  घने जंगलों में, ऊंचे पहाड़ों में तलवाड़ा से 7 किमी और कमाही देवी से 8 किमी दूर है माता हडिम्बा का प्राचीन मंदिर। यहां की पहाड़ियों को हवा धार भी कहा जाता है कयोंकि यहां हर समय ठंडी ठंडी हवा चलती रहती हैं, मंदिर की ओर जाने वाले रास्ते पूरे पहाड़ी हैं और एक दो गांव भी पास में है जो बिल्कुल हिमाचल के गांवों जैसे दिखते है कयोंकि पहाड़ों पर बने हुए गांव हैं। होशियारपुर जिले के  कंडी क्षेत्र के ईतिहासिक सथलों के बारे में और जानकारी और खोज की जरुरत है ताकि पांडवों से जुड़े हुए इस क्षेत्र के बारे में और सथलों की पहचान की जाए और उन्हें टूरिस्ट मैप पर लाया जाए ताकि इस ईतिहासिक क्षेत्र का और विकास हो सके। आप भी कभी होशियारपुर आए तो कोशिश कीजिए माता हडिम्बा मंदिर के दर्शन जरूर किए जाए। मंदिर में हडिम्बा माता पिंडी रूप में बिराजमान हैं। मंदिर का वातावरण और आसपास का क्षेत्र बहुत रमणीक और शांत हैं।

महाभारत काल से संबंधित वृक्ष

Photo of तलवारा by Dr. Yadwinder Singh

माता हिडिम्बा मंदिर तलवाड़ा

Photo of तलवारा by Dr. Yadwinder Singh

गुरुद्वारा शहीदां माहिलपुर
पंजाब के जिला होशियारपुर के कस्बे माहिलपुर के ईतिहासिक गुरुद्वारे शहीदां के दर्शन करेंगे जो गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह की वीरता को समर्पित हैं।
साहिबजादा अजीतसिंह का दुष्ट जाबर खान को मारना
बात होगी 1700 ईसवीं की जब बजवाड़ा गांव के एक ब्राह्मण देवी दास की बेटी की शादी जैजों कस्बे में होती हैं, रास्ते में बस्सी कलां का हाकिम पठान जाबर खान लड़की की डोली को उठा कर ले जाता हैं। गरीब ब्राह्मण सरकार के पास जाता हैं मुगलों की हकूमत हैं कोई भी सरकारी अधिकारी उसकी कोई मदद नहीं करता, तब देवी दास ब्राह्मण आनंदपुर साहिब में कलगीधर पातशाह गुरु गोबिंद सिंह जी के पास फरियाद लेकर पहुंचता हैं अपनी बेटी के बारे में  बताता हैं। साहिबे कमाल दसवें पातशाह तो  गऊ गरीब के रखवाले हैं। गुरु जी देवी दास की बात सुनकर उसे हौसला देते हुए, अपने बड़े पुत्र साहिबजादा अजीत सिंह को आदेश देते हैं कि आप 200 सिखों का जत्थे को लेकर जाओ और जालिम जाबर खान को सजा देना। साहिबजादा अजीत सिंह जी जालिम जाबर खान से युद्ध करते हैं। इस घमसान के युद्ध में जालिम जाबर खान मारा जाता हैं बाबा अजीत सिंह जी देवी दास की बेटी को आजाद करवा कर उसके पिता जी को सौंप देते हैं। युद्ध में कुछ सिख भी जख्मी हो जाते है। कुछ सिख शहीद भी हो जाते हैं इन शहीदों का अंतिम संस्कार बाबा अजीत सिंह इस जगह पर अपने हाथों से करते हैं।  इसी जगह पर इन शहीदों की याद में यह ईतिहासिक गुरुद्वारा बना हुआ है। यह ईतिहासिक सथान होशियारपुर से 24 किमी दूर  चंडीगढ़ वाले रोड़ की ओर हैं मेरे घर से 161 किमी और राजधानी चंडीगढ़ से 116 किमी दूर हैं। आप भी जब कभी होशियारपुर आए तो इन शहीदों की पवित्र जगह पर माथा जरुर टेकना। जिस दिन यह लड़ाई हुई थी उस दिन मंगलवार का दिन था आज भी मंगलवार को बहुत श्रद्धालु माथा टेकने गुरु घर आते हैं।

गुरुद्वारा शहीदां माहिलपुर

Photo of महिलपुर by Dr. Yadwinder Singh

माहिलपुर

Photo of महिलपुर by Dr. Yadwinder Singh

गुरूद्वारा हरिया बेला जिला होशियारपुर
गुरुद्वारा हरिया सिख धर्म के सातवें गुरू हर राय जी से संबंधित हैं यह रमणीक सथान पंजाब के जिला होशियारपुर में, होशियारपुर शहर से 11 किमी दूर बजरौर गांव में होशियारपुर-गढ़शंकर रोड़ के पास सथित हैं।
गुरू द्वारा साहिब का ईतिहास
गुरू हर राय साहिब जी अपने 2200 घोड़सवारों के साथ 
इस खूबसूरत जगह पर आए थे|  आसपास के गांव की संगत ने गुरू जी की बहुत सेवा की, गुरू घर के परम सेवक प्रजापति जी ने गुरू जी के घोड़ो के लिए हरी बेलों का चारा लेकर आए, गुरू जी के घोड़े हरी बेलों के चारे को छक कर बहुत खुश हुए, गुरू जी ने कहा हमारे घोड़ों को आपने कया खिलाया जो यह इतने खुश हैं, तब प्रजापति जी ने कहा मुझ गरीब के पास आपके घोड़ों को हरी बेलां खिलाने के बिना कुछ नहीं था, गुरू जी ने खुश होकर कहा आप की यह खिलाई हुई बेलां हमेशा हरी भरी रहेगी, आज भी 350 साल के बाद भी वह बेलां गुरू जी के बचन के अनुसार हरी भरी हैं और गुरू द्वारा का नाम हरिया बेलां हैं यह बेलें बहुत ऊंची बढ़ चुकी हैं | आप इन ईतिहासिक बेलां के दर्शन भी कर सकते हैं| इस जगह पर गुरू गोबिंद सिंह जी के बड़े साहिबजादा अजीत सिंह जी भी आए हैं| दोस्तों मुझे इस ईतिहासिक गुरू द्वारा साहिब में तीन चार बार जाने का मौका मिला है, हरी बेलां के दर्शन करके मन निहाल हो गया।
यहां गुरू का लंगर चलता रहता हैं, रहने के लिए भी कमरे बने हुए हैं, जब भी आप होशियारपुर जाए तो इस गुरू द्वारा के दर्शन करना मत भूलना|

गुरुद्वारा हरिया बेला

Photo of Gurudwara Harian Welan Sahib by Dr. Yadwinder Singh

हरिया बेला जिला होशियारपुर

Photo of Gurudwara Harian Welan Sahib by Dr. Yadwinder Singh

माता कामाक्षी देवी
कमाही देवी जिला होशियारपुर। दोस्तों आज फिर आपको पंजाब के होशियारपुर जिले के कंडी क्षेत्र के प्राचीन मंदिर कामाक्षी देवी के । इस मंदिर को लोकल भाषा में कमाही देवी भी कहते है । पहले भी एक पोस्ट में लिखा था , होशियारपुर के कंडी क्षेत्र में पांडवों से संबंधित बहुत सारी जगहें हैं । कमाही देवी नाम का गांव भी पांडवों से ही संबंधित हैं । पांडवों ने अज्ञातवास का कुछ समय होशियारपुर और कांगड़ा जिले के पहाड़ी क्षेत्र में बतीत किया ।
ऐसा कहा जाता हैं पांडव जब इस क्षेत्र में रह रहे थे  तब इस क्षेत्र में कोई भी कुदरती जल का सोमा नहीं था । तब पांडवों ने भगवान शिव का तप किया । शिवजी ने उन्होंने माता कामाक्षी की तपस्या करने को कहा । पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर ने यहां माता कामाक्षी की आराधना की । कामाक्षी माता ने उन्हें दर्शन दिए और कुदरती जल के सोमे को प्रकट किया कयोंकि माता कामाक्षी के पैरों में जल हैं। फिर पांडवों ने माता कामाक्षी की पिंडी रुप में सथापना की जहां आज माता कामाक्षी देवी कमाही देवी का भव्य मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर 108 शक्तिपीठों में आता हैं , ऐसा भी कहा जाता हैं यहां पर माता सती की chin ( ठोड़ी) गिरी थी । मंदिर में माता के पैरों के पास एक जलधारा निकलती हैं जो पास में ही बने एक पवित्र सरोवर में गिरती हैं । यह सरोवर पंजाब सरकार के वाटर डिपार्टमेंट के पास है जो आसपास के गावों को पानी सपलाई करता है। इस गांव का नाम कमाही देवी हैं जो कामाक्षी देवी का ही पंजाबी नाम हैं । वैसे माता कामाक्षी देवी आसाम की कामाख्या देवी का ही दूसरा रूप है । कमाही देवी के आसपास पहाड़ी और जंगल हैं । जब आप होशियारपुर से कमाही देवी जाते है तो काफी रास्ता पहाड़ी हैं जिससे आपको हिमाचल प्रदेश के माता चिंतपूर्णी माता के रास्ते का भुलेखा पड़ेगा । कमाही देवी मंदिर में लंगर पानी और रहने का उचित प्रबंध हैं ।
कैसे पहुंचे - कमाही देवी होशियारपुर से 50 किमी दूर और दसुआ से 25 किमी  मुकेरियां से 31 किमी दूर है इन सारी जगहों से आपको बस मिल जाऐगी कमाही देवी के लिए ।
यहां नवरात्रि में बहुत बड़ा मेला लगता है।

माता कमाक्षी देवी

Photo of कमाही देवी by Dr. Yadwinder Singh
Photo of कमाही देवी by Dr. Yadwinder Singh

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