सिध्दनाथ की दरी वाटरफाल

Tripoto
19th Nov 2016
Photo of सिध्दनाथ की दरी वाटरफाल by Akshat Maneesh Sahu

नवम्बर का आधा महीना बीत चुका था, हमारे ग्रेजुएशन की इंटर्नल परीक्षाएँ खत्म हो चुकी थी। मैं उस गुलाबी ठंड के मौसम में मिली छुट्टी को कुछ खास बनाना चाहता था। काफी सोच-विचार के बाद तय हुआ कि मिर्जापुर के सिध्दनाथ की दरी वाटरफाल और लेखनिया दरी जाएँगे। डेस्टिनेशन तय करने में इतनी माथापच्ची इसलिए करनी पड़ी थी क्योंकि पहली बात तो मेरे पास ज्यादा बजट नहीं था और दूसरी बात ज्यादा समय नहीं था क्योंकि मेरे दोस्त अभिषेक को इस छुट्टी में अपने घर भी जाना था।

प्लानिंग ये थी कि प्रयाग जंक्शन से रात को 8.35 पर आने वाली त्रिवेणी एक्सप्रेस से निकलेंगे जोकि हमें आधी रात के बाद 2 बजे के आसपास सक्तेसगढ़ छोड़ेगी, हम स्टेशन पर ही आगे के तीन घंटे बिताएँगे और फिर उजाला होने के साथ ही वहाँ से सिध्दनाथ दरी के लिए निकलेंगे। सक्तेसगढ़ से सिद्धनाथ की दरी लगभग 6 किमी. ही पड़ता है, पर मामला तब गड़बड़ हो गया जब हम दोनो ही रात को सो गए और जब जगे तो पता चला कि सक्तेसगढ़ तो पीछे छूट गया। रात के तीन बज रहे थे और हम सक्तेसगढ़ से एक स्टेशन आगे लूसा में थे। यह स्टेशन काफी छोटा है और प्लैटफॉर्म पर ठीक से लाइट तक नहीं जल रही थी। यहाँ पर रात को बिल्कुल सन्नाटा था और हम दोनो ही एक बेंच पर जाकर बैठ गए। ऐसी अनजान जगह पर बैठे होने पर डर भी लग रहा था और दूसरी बात की वहाँ बड़ी ठंड लग रही थी।

खैर, सुबह हुई तो हम दोनो फ्रेश होकर, ब्रश वगैरह निपटाकर स्टेशन के कर्मचारियों से सिध्दनाथ की दरी जाने का रास्ता पूछ रहे थे। वैसे स्टेशन से ही डायरेक्ट ऑटो मिल रहा था लेकिन उनका रेट इतना था, जितना कि हमारे पूरे ट्रिप का बजट था। सुबह के छः बजे के आसपास हम दोनो पैदल ही किसी के बताए रास्ते पर निकल लिए। आगे जाकर हमें कोई बस पकड़नी थी। तभी हम एक छोटी सी दुकान पर चाय पीने के लिए रुके, अभी चाय बन ही रही थी। वहाँ पर एक सज्जन मिले, बात-चीत में पता चला कि वो भी इलाहाबाद युनिवर्सिटी के पुराने छात्र हैं। बस फिर क्या था, उन्होंने हमें लिफ्ट दे दी…हालांकि मैं एक अनजान जगह पर किसी अन्जान आदमी से लिफ्ट लेने में संकोच कर रहा था लेकिन वो सज्जन तो वाकई सज्जन निकले।

Photo of सिद्धनाथ की दारी, Jaugarh, Uttar Pradesh, India by Akshat Maneesh Sahu

यह पहला मौका था जब मैं अपनी स्वच्छन्द आँखों से किसी झरने को देख रहा था। खुशी की कोई सीमा नहीं थी, उत्साह इतना था कि पूछो ही मत। चूंकि हम एकदम सुबह ही पहुँच गए थे इसलिए जब हम पहुँचे तो वहाँ कोई नहीं था, सिवाय बन्दरों के। कोई दूसरा शोर-गुल नहीं था और जंगल-पहाड़ों के बीच में स्थित इस झरने से निकलने वाली आवाज़ मुझे बरबस आकर्षित कर रही थी।

हम उत्साहित तो बहुत थे पर अभी हम उस झरने को ऊपर से ही देख सके थे। हमें पता ही नहीं था कि नीचे कैसे जाना है या फिर नीचे जाना भी चाहिए या नहीं, लेकिन अभिषेक ने जल्द ही रास्ता खोज लिया। हम फटा-फट सम्हलते-सम्हलते नीचे आ गए। नीचे से इस झरने को देखने एक अलग ही सुख है, लगभग 100 फीट नीचे गिर रहे झरने से उठने वाली पानी की फुहार वहाँ की हवा में ठंडक घोल रही थी। वो ठंडी हवाएँ जब हमें स्पर्श करतीं तो मानों जन्नत मिल गई हों। ऐसा लग रहा था कि एक नए जहाँ में आ गए हों हम दोनों दोस्त। अब तक सूरज भगवान भी लालिमा लिए प्रकट हो रहे थे।

Photo of सिध्दनाथ की दरी वाटरफाल by Akshat Maneesh Sahu
Photo of सिध्दनाथ की दरी वाटरफाल by Akshat Maneesh Sahu

तभी एक छोटा सा लड़का वहाँ आया, वो वहीं आस-पास ही रहता या कुछ खाने-पीने की चीजें बेचता था। थोड़ी ही देर में वो झरने के बीच चला गया, वहाँ जाने का तो हम सोचते भी नहीं लेकिन उस छोटे से लड़के को देखकर हम में भी थोड़ा सा साहस आया और हम भी आगे बढ़े। वो आधे रास्ते तक वापस आकर हमें सावधानी से वहाँ लेकर चला गया। यहाँ का नजारा तो अद्भुत था। काफी ऊँचाई से पानी गिरने की वजह से चारों तरफ पानी की फुहार ही फुहार थी और हम उन फुहारों के बीच में थे। तब तक हमारे एक दूसरे मित्र कुलदीप जिनका घर वहाँ से 15-20 कि.मी. की दूरी पर ही था, वो भी आ गए। हम तीनों ने मिलकर खूब मजे किए, फोटोज़ खिंचवाई। पहले तो हम डर रहे थे लेकिन जब हम उस झरने के बीच पहुँच गए तो सारा डर खत्म हो गया, मेरे लिए वो ‘डर के आगे जीत है’ वाला मामला हो गया था।

Photo of सिध्दनाथ की दरी वाटरफाल by Akshat Maneesh Sahu

वहा से लगभग 10 बजे के आसपास अपने उन मिर्जापुर वाले मित्र की बाइक से निकलकर हम कुछ कि.मी. की दूरी पर स्थित परमहंस आश्रम गए थोड़ी देर वहाँ रुके, कुलदीप भाई ने बताया कि इस आश्रम का आसपास के कई जिलों में काफी नाम है और यहाँ विदेश से भी लोग आते रहते हैं। हम थोड़ी देर से पहुँचे नहीं तो वहाँ सुबह के 9.30 बजे तक नाश्ते का भी इंतजाम रहता है। अब हमें लेखनिया दरी जाना था तो आश्रम से निकलकर कुलदीप भाई ने हमें मुख्यमार्ग पर लाकर एक दुकान के पास छोड़ दिया जहाँ से हमें बस पकड़नी थी लेकिन काफी देर तक बस नहीं आने पर हम दोनों एक मिनी मालवाहक टाटा मैजिक में सवारी की। उसका अलग ही मजा था। चारों तरफ से बंद गाड़ी के बजाए खुली गाड़ी में सफर करते समय मस्त हवा लग रही थी… हम धान की बोरियों पर बैठकर सफर का मजा ले रहे थे। वो अगल बात है कि थोड़ा बहुत झटका भी खाना पड़ रहा था।

हम चुनार आ गए…फिर चुनार से हाइवे रोड गए (शायद NH 5A, ठीक-ठीक जगह का नाम नहीं याद है)…वैसे तो ये लगभग 15-18 कि.मी. का रास्ता था लेकिन इतना खराब था कि ऐसा लगा जैसे हम 40-50 कि.मी. आ गए हों, हमारा सिर कभी उस तीन पहिए वाले ऑटो रिक्शा के इस तरफ टकराता तो कभी उस तरफ। खैर, रोते गाते-पहँच गए फिर वहाँ से एक मैजिक मिली जो हमें लेखनिया दरी के मोड़ पर छोड़ गई…हमें बिल्कुल अन्दाजा ना था कि आगे का लगभग 8 कि.मी .से ज्यादा का रास्ता हमें पैदल ही नापना है।ये बिल्कुल कंगाली में आटा गीला होने जैसा ही था क्योंकि उस गड्ढे में समाई सड़क पर 18 कि.मी. का सफर करने के बाद हमारा शरीर टूट चुका था। लेकिन फिर आगे जो चार कि.मी. का पैदल वाला रास्ता था वो सड़क एकदम चकाचक थी..सड़क के किनारे खाई थी और लगभग चारों तरफ पहाड़ियों की श्रृंखलाएँ थीं। इन सबको देखते-ताकते अपने उत्साह को ऊर्जा का स्त्रोत मानकर हम आखिरकार लेखनियां पहुँच चुके थे।

Photo of चुनार, Uttar Pradesh, India by Akshat Maneesh Sahu

लेखनिया दरी के बारे में हम दोनो ही रत्तीभर भी नहीं जानते थे, इसलिए जब हम दरी में दाखिल हुए तो हमें पता ही नहीं था कि मुख्य झरना है कहाँ या कैसा दिखता है। दरअसल जंगल के काफी अंदर मौजूद उस झरने तक पहुँचने का कोई बना-बनाया रास्ता नहीं है, और मुख्य दरी तक पहुँचने से पहले ही हमें कुछ छो़टे-झरने मिलते हैं। इन छोटे झरनों की खासियत ये थी कि हम एक झरने बीच में एक पत्थर पर बैठकर बिस्कुट खा रहे थे। पानी की कल-कल की आवाज़ और बन्दरों के बीच से होते हुए हम मुख्य झरने की तरफ आगे बढ़े। ऐसा लग रहा था कि किसी कम पानी वाली नदी पर चल रहे हैं जो मिट्टी पर नहीं बल्कि पत्थर पर बहती है। थोड़ी दूर और आगे जाने पर हमें वो झरना तो नहीं मिला लेकिन एकदम से निर्जन घाटी में हमें लोकल प्रशासन का एक बोर्ड ज़रूर मिल गया। जिसमें लिखा था कि इसके आगे जाना खतरनाक हो सकता है, सुरक्षा की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।

Photo of लेखनिया दरी रोड, Hinauta, Uttar Pradesh, India by Akshat Maneesh Sahu

एक तो शाम हो रही थी, दूसरा पूरी घाटी में हमारे अलावा कोई नहीं दिख रहा था, तीसरा हमें ये भी नहीं पता था कि मुख्य झरना अभी कितना दूर है, चौथा हम दोनों के फोन की बैटरी खत्म हो रही थी और ऊपर से ये बोर्ड। इन सब के चलते हम वापस लौटने का निर्णय लिया। फिर से उसी छोटे झरने के पास बैठकर शांति की अनुभूति की और वापसी की तरफ चल दिए। इसबार तो हम हाइवे पर आ गए तो भी कोई साधन नहीं मिल रहा था..बाद में एक ट्रैक्टर वाले से लिफ्ट ली। फिर चुनार आए, रात में मिर्जापुर रेलवे स्टेशन पहुँचे और रात को ही ट्रेन पकड़ कर अगले दिन तड़के इलाहाबाद आ गए। और इस तरह तमाम चुनौतियों से भरी पर इस मज़ेदार यात्रा की यादें हमेशा के लिए हमारी स्मृतियों में बस गईं।

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