सिख धर्म में दीवाली का महत्व - अमृतसर की दीवाली

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Photo of सिख धर्म में दीवाली का महत्व - अमृतसर की दीवाली by Dr. Yadwinder Singh
Day 1

#दीवाली_सपैशल_पोस्ट
#दाल_रोटी_घर_दी
#दीवाली_अमृतसर_दी

ग्रुप के सभी दोस्तों, मैंबर्स को दीवाली की लाख लाख बधाइयाँ। दोस्तों जैसे हम सब को पता हैं इस दिन भगवान राम चंद्र जी रावण का वध करके और चौदहवें साल बाद बणवास काट कर अयोध्या वापिस पहुंचे थे, उनकी खुशी में दीपमाला की थी, तब से दीवाली मनाई जाती हैं।

#सिख_धर्म_और_दीवाली
दोस्तों सिख ईतिहास में भी दीवाली का बहुत महत्व हैं। जहांगीर बादशाह ने पांचवें गुरू अर्जुन देव जी को लाहौर में शहीद करवा दिया, छठे गुरू हरगोबिंद जी ने हरमंदिर साहिब अमृतसर के सामने सिखों के पहले तखत अकाल तखत का निर्माण करवाया। उस ममय में दिल्ली के तखत से जयादा ऊंचा और सच्चा तखत बनाना बहुत बड़ी बहादुरी का काम था, कोई भी इंसान यह काम नहीं कर सकता था, गुरू जी ने मीरी और पीरी की दो तलवारें पहन ली। यह बात दिल्ली तखत को चुभ रही थी। उस हमय हिंदुओं के ऊपर बहुत पाबंदी थी, कोई घोड़ा नहीं रख सकता था, हथियार नहीं रख सकता था,सैना नहीं बना सकता था, लेकिन गुरू हरगोविंद जी महाराज ने घोड़े भी रखे, हथियार भी और सिख सैना भी तैयार कर ली । सिखों में नया जोश भर दिया सिख मुगलों के आगे झुकने के लिए तैयार नहीं थी। सिख एक मारशल कौम बन गई थी। जहांगीर बादशाह ने गुरू जी को दिल्ली मिलने के लिए बुलाया और धोखे से गिरफ्तार करके गवालियर के किले में कैद कर दिया। उस समय में गवालियर का किला शाही कैदियों के लिए रखा हुआ था, जो एक बार गया वापिस नहीं आता था। गुरू हरगोबिंद जी महाराज ने किले के शाही कैदियों जो हिंदू रियासतों के राजा थे , उनके मन में एक नया जोश और विश्वास भर दिया। उधर जहांगीर को बहुत बुरे सपने आने लगे, शेर सपने में आकर डराने लगे। रात को नींद नहीं आती थी जहांगीर को। उसने बहुत सारे वैद, हकीम और मौलवियों से सलाह ली। मौलवियों ने बताया तुमने किसी अल्लाह के नूर , रब के फरिश्ते को कैद करके रखा हुआ हैं यह रूहानी नूर छठे पातशाह गुरू हरगोबिंद जी महाराज थे। फिर जहांगीर ने गुरू जी को रिहा करने का फैसला लिया, लेकिन गुरू जी कह रहे थे मैं सारे शाही कैदियों के  साथ रिहा हूंगा, फिर बादशाह ने कहा जितने कैदी आपके चोले को पकड़ कर साथ आ जाऐंगे उतने शाही कैदियों को रिहा कर दिया जायेगा। शाही कैदी जो हिंदू राजा थे उनकी संख्या 52 थी, फिर गवालियर के एक दरजी ने 52 कलियों वाला चोला बनाया , सभी राजाओं ने एक एक कली को पकड़ा और गुरु महाराज के साथ गवालियर के किले से रिहा हो गए। इसीलिए छठे गुरु जी को बंदी छोड़ दाता भी कहा जाता हैं। आज भी बंदी छोड़ के नाम पर गुरूद्वारा बना हुआ हैं गवालियर के किले में। जब छठे गुरु जी गवालियर के किले से रिहा होकर अमृतसर पहुंचे थे , तब शहर वासियों ने दीपमाला की थी, इसीलिए दीवाली मनाई जाती हैं और सिख धर्म में इसे बंदी छोड़ दिवस भी कहा जाता हैं। पंजाब में अमृतसर की दीवाली बहुत मशहूर हैं, दरबार साहिब को बहुत सुंदर तरीके से सजाया जाता हैं, रात को आतिशबाजी चलाई जाती हैं, बहुत संगत दरबार साहिब माथा टेकने जाती हैं, इसीलिए कहते है
"दाल रोटी घर की,
दीवाली अमृतसर की"
सभी दोस्तों को दीवाली की लाख लाख बधाइयाँ
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कैसे पहुंचे- अमृतसर पंजाब का प्रमुख शहर है| यहाँ पर अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट भी है जहाँ आप देश विदेश से भी फलाईट से पहुँच सकते हो| अमृतसर भारतीय रेलवे का भी जंक्शन है जहाँ भारत के अलग अलग शहरों से भी आप रेल द्वारा पहुँच सकते हो| बस मार्ग से अमृतसर दिल्ली सहित पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश आदि से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है|
कहाँ ठहरे- अमृतसर में रहने के लिए आपको हर बजट के होटल मिल जाऐगे|

दरबार साहिब अमृतसर

Photo of Amritsar by Dr. Yadwinder Singh
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