मुझे बारिश इतनी पसंद है, कि मैं इस बार भरे सावन में मैं मावसिनराम पहुँच गया। मावसिनराम भारत में उत्तर पूर्व के राज्यों में मेघालय का एक गाँव है, जहाँ रिकॉर्ड तोड़ बारिश होती है। भारत में अगर सबसे ज़्यादा औसत बारिश कहीं होती है तो वो पूर्वी खासी हिल्स के इस छोटे से गाँव मावसिनराम में होती है। यहाँ इतना पानी बरसता है, कि इस गाँव का नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है।
यहाँ हर साल औसत 11000 मिलीमीटर यानी सवा मीटर तक बारिश होती है। जिन्हें मीटर का माप नहीं पता उन्हें बता दूँ कि सवा मीटर में लगभग 3 फुट से ज़्यादा होते हैं।
आईये मावसिनराम की ओर चलें
शिलॉन्ग से मावसिनराम जाने के लिए मैनें टैक्सी बुक कर ली थी। मौसम सूखा था मगर आसमान में बहुत बादल थे। आधे रास्ते पहुँचने पर मैंने देखा कि जो बादल मुझे पहले आसमान में दिख रहे थे, अब उन्हें मैं टैक्सी से हाथ बाहर निकाल कर छु सकता हूँ। थोड़ी देर के लिए टैक्सी को रुकवाया और जी भर कर चारों तरफ का नज़ारा देखा। फिर ड्राइवर के बुलाने पर टैक्सी में तो बैठ गया, मगर खिड़की खुली रखी , और जब-तब मुँह बाहर निकाल कर होठों को छूते बादल और पलकों पर जमती ठंडी बूंदों को महसूस करने लगा।
रास्ते में कई गाँव आये जैसे नांगलवाई , तीरसाद , युमलांगमार , और वैलोई; जिन्हें जानना तो दूर, लोग इनका नाम भी मुश्किल से ले पाते हैं। पहले जिन जगहों के नाम एटलस में पढ़े थे, उन्हें अपने सामने देख रहा था। इन जगहों पर रहने वाले लोगों की संख्या काफी काम थी, मगर ऊँचे-नीचे पहाड़ों पर बसे इन गाँवों को मानों कुदरत खुद अपनी छाती लगा कर पालती हो। चारों और हरियाली ही हरियाली थी।
और हम पहुँच गए
जब मावसिनराम पहुँचा तो दोपहर के 12 बज रहे थे। मगर बारिश को दिन के पहरों से कोई मतलब नहीं था। टैक्सी से निकलते ही बादल गरजने लगे और हल्की -हल्की फुहारें बरसने लगी। देखते ही देखते फुहारें मूसलाधार बारिश में बदल गयी और मैं बच्चों की तरह बारिश में नहाने लगा। सामान में कपड़े और जूतों की साफ़-सूखी जोड़ियाँ रखी हुई थी, तो भीगने में कोई संकोच भी नहीं हुआ। थोड़ा बरसने के बाद मौसम साफ़ हो गया। ठन्डे मौसम में गीले बालों के साथ मुझे बस एक कप गरमा-गरम चाय चाहिए थी। मेरी ये मुराद भी जल्दी ही पूरी हो गई, क्योंकि बाज़ार में चाय-नाश्ते की काफी दुकानें खुली थी।
खरेंग खरेंग फॉल्स
चाय-नाश्ते के बाद मैं फिर से टैक्सी में बैठकर अपने अगले पड़ाव खरेंग खरेंग फॉल्स के लिए निकल पड़ा । झरने पर जाकर ऐसा लगा मानों यहाँ बैठा ही रहूँ। इतनी ऊँचाई से जिरते पानी की आवाज़ में टैक्सी वाले की आवाज़ दब गयी थी, जो मुझे चलने के लिए वापिस बुला रहा था। कुछ ही देर में बारिश भी शुरू हो गयी, मगर मेरा जाने का मन नहीं हुआ। मन किया कि बस बारिश में बैठे-बैठे इस झरने को ही देखता रहूँ।
क्रेम पुरी गुफाएँ
एक घंटे तक झरने को निहारने के बाद हम क्रेम पुरी गुफाओं की और निकल गए जहाँ गुफा घुमाने के लिए गाइड मेरा इंतज़ार कर रहा था। क्रेम पुरी की ये गुफाएँ बालू पत्थर से बनी हैं और 24.5 कि.मी. तक फैली हैं। अपने जैसी सबसे बड़ी गुफा तंत्रों में से एक है। गाइड ने बताया कि बारिश की वजह से कई गुफाओं में पानी भर गया है और छतों से भी पानी टपक रहा है, मगर फिर भी उसने मुझे बड़ी आसानी से गुफाओं की सैर करवा दी। इन गुफाओं में कई तरह के अवशेषों के अलावा अलग-अलग तरह की वनस्पति भी देखने को मिलती है।
गुफाओं में सैर करने के बाद मैं फिर शिलॉन्ग के लिए निकल पड़ा। मगर आते वक़्त दिल में कई यादें और कैमरे में तस्वीरें थी। मावसिनराम जैसी बारिश शायद दुनिया के किसी और कोने में देखने को नहीं मिलेगी। न ही शायद दिल्ली में वैसी चाय मिलेगी। लेकिन एक बार भारत के पूर्वोत्तर में घूमने के बाद अनुभव हो गया है, तो हो सकता है कि अगले साल भी सावन में फिर से मावसिनराम घूमने का प्लान बन जाए।
मैं तो कहूँगा कि एक बार आप भी मावसिनराम की बारिश का मज़ा लेकर आओ, वो भी भरे सावन के महीनों में।
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