शहरी कोलाहल से विक्षिप्त होकर जब भागना होता है तो उत्तराखंड ही याद आता है, ये खुद को बचाए रखने का संघर्ष है, कोई अपना घर गाँव छोड़ कर शहर भाग रहा है और कोई शहर से गाँव की ओर । दोनों के अपने अपने संघर्ष हैं, एक ओर रोज़ी रोटी का तो दूसरी ओर मशीन होती जा रही जिंदगी का।
इस बार जब रानीखेत तक जाना हुआ तो मित्र जीवन तिवारी और दिनेश देवतल्ला से इस बाबत चर्चा चल ही रही थी कि आखिर हमें किस ओर रूख करना चाहिए। इसी बीच मित्र रविशंकर गुँसाई का फोन आता है कि चलो नामिक ग्लेशियर की ओर चलो। मेरे पास सिर्फ तीन दिन का समय था, लेकिन साथियों के हौसले ने मेरी हिचकिचाहट को दूर करते हुए पूरी योजना तैयार की और हम निकल लिए नामिक की ओर।
पहले दिन अल्मोड़ा से यात्रा शुरू कर हम लोग बागेश्वर , कपकोट और भराड़ी होते हुए शामा पहुँचे । शामा पहुँचते पहुँचते अँधेरा हो चुका था। हम इस बात को लेकर एकमत नहीं हो पा रहे थे कि क्या आज हमें गोगिना तक जाना चाहिए अथवा यहीं शामा में रूक कर आराम करना चाहिए। फिलहाल देर तक चले विमर्श के पश्चात हमने शामा में ठहरने का निश्चय किया। रवि के एक मित्र के सौजन्य से हमें पी डब्ल्यू डी के निरीक्षण भवन में रात गुज़ारने के लिए जगह मिल गई।
अगले दिन सुबह हम लोग समय को ध्यान में रखते हुए गोगिना के लिए रवाना हुए । ये रास्ता उत्तराखंड के कुछ खूबसूरत रास्तों में से एक कहा जा सकता है , यहाँ खड़ी और सीधी ढलान वाले पहाड़ हैं जिनके साथ साथ चलना एक रोमांचक अनुभव होता है। यहाँ आप घाटी के बेहद खूबसूरत नजारों से दो चार होते हैं। अभी तक का सफर बेहद आसान और खूबसूरती से गुजर रहा था, घने जंगलों के बीच हम सब गीत गाते बढ़ते जा रहे थे। तीन घंटे में हम लोग गोगिना पहुँच गए। यहाँ से अब हमारा ट्रेक शुरू होना था, यहाँ पहुँच कर हमारी मुलाकात होटल संचालक धर्मशक्तू जी से हुई। वो बताते हैं कि इस खूबसूरत जगह को सरकार द्वारा पर्यटन के मानचित्र पर वो जगह नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी। बातों बातों में उन्होंने हमारे सामने पूरे ट्रेक का खाका खींचा और हमें रास्ते की महत्वपूर्ण जानकारी दी। गोगिना में एक खास बात आपको ये लगेगी कि यहाँ के लोग जिस उत्साह और प्रेम के साथ आपका स्वागत करते हैं वो बेहद खूबसूरत है। धर्मशक्तू जी की बातों में पर्यटन विभाग और सरकार की उदासीनता के प्रति एक टीस भी दिखती है और भविष्य में अच्छे समय की उम्मीद भी।
इन्ही सब बातों के बीच हमने चाय और मैग्गी के साथ नाश्ता पूरा किया और बिना किसी विशेष संसाधन के हमारा पैदल सफर शुरू हुआ नामिक के लिए। गोगिना से हमें पहले नीचे उतरना था पूर्वी रामगंगा के तट तक और उसके बाद फिर नामिक गाँव के लिए सीधी चढ़ाई। घने जंगलों की शुरूआत हो चुकी थी, हम पाँच लोग अपने सफर पर चले जा रहे थे। यहाँ रास्ते में हमें छिपकली और गिरगिट की एक प्रजाति बहुतायत में दिखाई दी जो हर जगह रास्तों पर हमारा स्वागत कर रही थीं। एक गिरगिट की छलाँग हमारे साथी जीवन को गिराने का कारण बनी जिन्हे पैर में चोट आ गई तो फिर हम सबको उन्हे सहारा देकर बाकी का सफर पूरा करना पड़ा। गोगिना नदी के पुल तक हमारा सफर कठिनाई के हिसाब से औसत था लेकिन नदी पार करने के पश्चात यह बहुत कठिन होने लगा था। रास्ता काफी सँकरा है और ज्यों ज्यों ऊँचाई प्राप्त करते हैं नीचे उफनाती हुई नदी की आवाज़ डर पैदा करती है, नदी पार करने के पश्चात ही असली रोमाँच का अनुभव शुरू होता है। बेहद सावधानी के साथ धीरे धीरे चलकर हम नामिक गाँव पहुँचे। ये सफर हमने 3-4 घंटे में पूरा किया जो हमारे हिसाब से बहुत अच्छा था।
नामिक गाँव में पहुँचते पहुँचते सभी साथी लगातार चलते रहने से थक चुके थे, धीरे धीरे साँसें जब सामान्य हुई तो हम सबने राहत की साँस ली । वहाँ ठहरकर थोड़ी देर विश्राम किया , भोजन का समय हो रहा था, तो हमें भंडारी दाज्यू ने घर में प्यार से भाँग की चटनी के साथ झोली भात खिलाया। खाने का स्वाद शायद हमारी शारीरिक स्थिति और आस पास के माहौल के समानुपाती होता है, क्यूँकि ऐसा स्वादिष्ट खाना मैंने एक अरसे बाद चखा था। खाने के साथ साथ इस सुदूर गाँव और घर की समस्याओं पर चर्चा भी चलती रही।
गोगिना गाँव बागेश्वर और पिथौरागढ़ की सीमा पर स्थित है । यह ऐसा गाँव है जिसका सम्पूर्ण रास्ता तो बागेश्वर जिले से है किंतु यह गाँव पिथौरागढ़ जिले में पड़ता है। सीमावर्ती गाँव होने के कारण इसकी अपनी समस्याएँ हैं।
यह गाँव प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर है। बुग्यालों की तलहटी में बसा यह गाँव अपने खूबसूरत नजारों से किसी का भी मन मोह ले। पर्यटन की अपार संभावनाओं के बावजूद ग्रामीण बताते हैं कि यहाँ सड़क और संचार के नेटवर्क की समस्या सबसे बड़ा रोड़ा है। एक बार सड़क के सर्वे का कार्य हुआ लेकिन उसके बाद फिर किसी ने सुध नहीं ली।
नामिक गाँव से नामिक,आंद्रे और हीरामणि ग्लेशियर का ट्रेक होता है , इस लिहाज से यह गाँव पर्यटन की अपार संभावनाओं का गाँव है। अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के साथ यह गाँव इन सभी के बेस कैंप की तरह है।
इन्ही सब चर्चाओं के बीच हमने बेहद स्वादिष्ट और प्रेम से सराबोर भोजन समाप्त किया और सुस्ताने के बाद आगे के सफर की योजना बनाने लगे।
हमने यह ट्रेक बिना किसी साधनों के शुरू किया था इस वजह से हमें टेंट, मैट्रेस और स्लीपिंग बैग की आवश्यकता थी । गाँव से हमें मुश्किल से एक टेंट और कुछ कंबलों की व्यवस्था हो पाई जिसे हम एक स्थानीय साथी मोहन दा की मदद लेकर चल दिए। नामिक से ऊपर की ओर सफर शुरू करते ही आप बेहद घने जंगलों में प्रवेश करते हैं जहाँ आपको काले मुँह वाले बंदरों जिन्हे स्थानीय भाषा में "गुणी" कहा जाता है, उछल कूद करते हुए आपके सफर के साथी बने रहते हैं। चलते चलते हम धीरे ऊँचाई की ओर बढ़ रहे थे, अब बुराँश के जंगल शुरू हो चुके थे। बुराँश के फूलों की खूबसूरती हमें सम्मोहित कर रही थी। इन सब नजारों को हम कैमरे में कैद करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। एक ही जगह पर बुराँश के फूलों के कई रंग मैंने पहली बार देखे थे। ये प्रकृति का कैनवास है जिस पर वो हैरतंगेज खूबसूरती से अपना अक्स उकेरती है । ऊपर बढ़ने के साथ साथ जंगल झाडियों में तब्दील होने लगते हैं और धीरे धीरे खत्म हो जाते हैं। जंगलों को पार कर हम पहुँचे एक बहुत सुंदर और खूबसूरत बुग्याल "थाला" । थाला की खूबसूरती अकथ्य है, उसे आप शब्दों बयान नहीं कर सकते।
हमें थाला पहुँचते पहुँचते अँधेरा हो चुका था, शरीर बेहद थक चुका था और अब बस आराम चाहता था लेकिन अभी तो हमारा संघर्ष बाकी था । खाना बनाने के लिए लकड़ियों की व्यवस्था और खराब हो रहे मौसम के बीच हमें खाना भी बनाना था और थक कर चूर हो चुके हम किसी तरह से खुद को हौसला देते हुए काम किए जा रहे थे।
खैर काफी मशक्कत के बाद हमने एक जगह पर चूल्हा जलाया और फटाफट खिचड़ी बनाकर रवि और चिराग भाई ने सबको खिलाई। यही दो लोग थे जिनमें हमसे ज्यादा ऊर्जा बची हुई थी।
जब तक खाना बन रहा था, दो लोग मिलकर हमारा टेंट लगा चुके थे। बाहर की हवाएँ बेहद सर्द और तेज हो रहीं थीं, मौसम और खराब होने लगा था। हम पाँचों साथी और मोहन दा फटाफट सारा सामान लेकर टेंट कें अंदर घुस गए। मौसम खराब होने की वजह से तापमान बहुत गिर चुका था, सब के दाँत और हड्डियाँ मौनकीर्तन कर रहीं थी।
रात को तेज हवाओं के उत्पात से ऐसा लग रहा था कि हम सब टेंट सहित उड़ने की तैयारी में हैं। खैर थकान की वजह से इन हालातों में भी हम एक अच्छी नींद निकाल सके।
सुबह जब नींद खुली तो बारिश बंद थीं लेकिन बादलों ने डेरा डाला हुआ था। सब लोगों ने आपस में विमर्श कर आगे ना बढ़ने का निश्चय कर वापसी का फैसला किया। सामने हमें चोटियाँ दिख रहीं थीं जहाँ हमें और चढ़ना था लेकिन समय और मौसम दोनों ने मिलकर हमें वापस खींचते हुए नामिक गाँव की ओर मोड़ दिया।
जल्दी जल्दी सारा सामान पैक कर हम वापस चल दिए एक नए और छोटे रास्ते से जो कि हमारे लिए बहुत कठिन साबित हुआ। पहाड़ों से खिसकते लुढ़कते हुए किसी तरह हमने मुख्य रास्ते तक अपना सफर तय किया।
नामिक गाँव पहुँच कर हमने भंडारी दाज्यू के यहाँ दाल भात खाया और फिर से मिलने का वादा कर वापस गोगिना की ओर चल दिए। नामिक से नीचे उतरते समय जब नीचे नदी का रौद्र रूप दिखता है तो पाँव काँपना लाज़मी है। हम सावधानी बरतते हुए बेहद सँकरे और टूटे फूटे रास्ते से चलते रहे। लगभग तीन घंटे के सफर में हम वापस गोगिना पहुँचे । हम थक कर चूर हो चुके थे और इस हालात में गाड़ी तक पहुँच कर लगा एक बहुत बड़ी जंग हमने जीत ली है।
ये सफर बेहद यादगार और चुनौतीपूर्ण रहा लेकिन हमारे लिए गाँवों की जिंदगी को नजदीक से देखने जानने के लिहाज से काफी अच्छा और नए अनुभवों वाला रहा।