हनुमान धारा के बारे में कहा जाता है की जब श्री हनुमान जी ने लंका में आग लगाई उसके बाद उनकी पूंछ में लगी आग को बुझाने के लिए वो इस जगह आये जिन्हे भक्त हनुमान धारा कहते है | यह विन्ध्यास के शुरुआत में राम घाट से 4 किलोमीटर दुर है | एक चमत्कारिक पवित्र और ठंडी जल धारा पर्वत से निकल कर हनुमान जी की मूरत की पूँछ को स्नान कराकर निचे कुंड में चली जाती है | कहा जाता है की जब हनुमानजी ने लंका में अपनी पूँछ से आग लगाई थी तब उनकी पूँछ पर भी बहूत जलन हो रही थी | रामराज्य में भगवन श्री राम से हनुमानजी विनती की जिससे अपनी जली हुई पूँछ का इलाज हो सके | तब श्री राम ने अपने बाण के प्रहार से इसी जगह पर एक पवित्र धारा बनाई जो हनुमान जी की पूँछ पर लगातार गिरकर पूँछ के दर्द को कम करती रही | यह जगह पर्वत माला पर है |
हनुमान धारा वर्तमान में यह चित्रकूट स्थान उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की करवी (कर्वी) तहसील तथा मध्यप्रदेश के सतना जिले की सीमा पर स्थित है। चित्रकूट का मुख्य स्थल सीतापुर है जो कर्वी से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर नामक स्थान के समीप यह हनुमान मंदिर स्थापित है।
रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता है। पहाड़ी के शिखर पर स्थित हनुमान धारा में हनुमान की एक विशाल मूर्ति है। मूर्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता है।
इस धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है। इसीलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं। वहां एक ओर पौराणिकता का भव्य नजारा देखने को मिलता है तो वहीं श्रीराम की कृपा भक्तशिरोमणि हनुमान जी पर कितनी थी, इसका भी संकेत मिलता है।
कथा है श्रीराम के अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन हनुमानजी ने भगवान श्रीरामचंद्र से कहा ‘हे प्रभु, लंका को जलाने के बाद तीव्र अग्नि से उत्पन्न गरमी मुझे बहुत कष्ट दे रही है। मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मैं इससे मुक्ति पा सकूं। इस कारण मैं कोई अन्य कार्य करने में बाधा महसूस कर रहा हूं। कृपया मेरा संकट दूर करें।’ तब प्रभु श्रीराम ने मुस्कराते हुए कहा, ‘चिंता मत करो। भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को यह स्थान बताया। आप चित्रकूट पर्वत पर जाइये। वहां आपके शरीर पर अमृत तुल्य शीतल जलधारा के लगातार गिरने से आपको इस कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी