दिल्ली से मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल जाते वक्त मुझे यह नही मालूम था कि मैं महाकाल के दर्शन कर पाऊँगी या नहीं, हाँ लेकिन मन में पूरी आश थी। देर से हीं सही लेकिन भोलेनाथ नें मेरी सुन ली और दर्शन को अपने द्वार बुला लिये।
उज्जैन महाकाल का दर्शन मेरे लिए बेहद अलौकिक रहा।
सोमवार के दिन महाकाल के दर्शन को हजारों श्रद्धालु मेरी तरह कतार में धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे। लेकिन जैसे हीं मैंने मंदिर की ओर अपने कदम बढ़ाने शुरू किए एक अलग सी स्फुर्ति महसूस की। अब मन में केवल एक ही आश थी की महाकाल के दर्शन हो जाएं। मंदिर प्रांगण में जाने से पहले भगवान गणेश के दर्शन और उसके बाद महाकाल के मंदिर में प्रवेश। मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करने के लिए मैं अब अपनी बारी का इंतजार कर रही थी ताकि एक बार महाकाल के दर्शन हों जाए।
लबें इंतजार के बाद पंडितों द्वारा आनन फनान में एक साथ लगभग 10 लोगों को गर्भ गृह में ज्योतिलिंग के पास ले जाया गया। पूजा समाग्री वहाँ मौजूद पंडितों को देते हुए मैंने महाकाल के ज्योतिलिंग को चंदन लगाने को जैसे हीं छुआ मानों मुझे परम शांति प्राप्त हो गई। अझपके पलकों से उन्हें निहारती हुए मैं एक एक क्षण को अलग दुनिया में जा पहुचीं थी। बेहद शोरगुल के बावजूद भी अंदर से बिल्कुल शांत और नि:शब्द, मानों जैसे वर्षों का सपना पूरा हो गया हो। इस बीच मेरा ध्यान तब टूटा जब जब पंडितों की आवाज आई," चलिए अब पूजा हो गया आपका, बाहर जाईये"।
बेहद कम समय में भी महाकाल के दर्शन मेरे लिए अद्भुत पल थें।
मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें:
उज्जैन के श्री महाकालेश्वर भारत में बारह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर स्थित महाकालेश्वर मंदिर ज्योतिर्लिंग तीसरा और बेहद खास ज्योतिर्लिंग है। उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर में भगवान भोलेनाथ का दर्शन करने देश हीं नहीं बल्कि विदेश से भी भक्त पूरे वर्ष आते हैं। महाकालेश्वर मंदिर की महिमा का विभिन्न पुराणों में विशद वर्णन किया गया है।
इस मंदिर में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग तीन भागों में विभाजित है, जिसके निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर और ऊपरी खंड में श्री नागचंद्रेश्वर शिवलिंग स्थापित है। इसके अलावा मंदिर से कुछ ही दूरी पर देवी सती के 51 शक्तिपीठों में से एक हरसिद्धि माता का मंदिर है। ऐसे में ज्योतिर्लिंग और शक्ति पीठ के इतने करीब होने की वजह से इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है।
मंदिर के गर्भ गृह में माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित है। महाकाल मंदिर में ब्रह्म मुहूर्त में भगवान शिव को जगाने के लिए भस्म आरती की जाती है। प्रत्येक वर्ष यहां सावन के महीने में महाकाल की सवारी निकाली जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान महाकाल उज्जैन का भ्रमण करने के लिए पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण को निकलते है।
कब हुई थी स्थापना?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उज्जैन में स्थापित महाकालेश्वर मंदिर की स्थापना द्वापर युग में नंद जी की आठ पीढ़ी पहले हुई थी। इसके अलावा पौराणिक कथाओं की मानें यह मंदिर 800 से 1000 वर्ष से भी पुराना है। इस मंदिर का विस्तार राजा विक्रमादित्य ने करवाया था जबकि आज का जो महाकाल मंदिर है उसका निर्माण 150 वर्ष पूर्व राणोजी सिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने करवाया था।
इसके अलावा कहा जाता है कि महाकाल उज्जैन के राजा हैं। ऐसे में उनके अलावा इस नगरी में कोई दूसरा शासक या राजा नहीं रुक सकता। पौराणिक कथाओं के अनुसार विक्रमादित्य के शासन के बाद यहां कोई भी राजा रात भर नहीं टिक सका, इस मंदिर का इतिहास है कि जिस व्यक्ति ने भी यह दुस्साहस किया है वह मारा गया है।
महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन के नियम:
महाकालेश्वर मंदिर सुबह 6 बजे से ही भक्तों के लिए खुल जाता है। इसके लिए मंदिर परिसर में ही टिकट ले सकते हैं। भक्तों की काफी ज्यादा तादाद रहने की वजह से टिकटों की ऑनलाइन बुकिंग काफी पहले से जारी रहती है। इसके अलावा अगर गर्भगृह में प्रवेश करना है तो श्रद्धालुओं को 1500 रुपये की रसीद कटवानी होगी। इस रसीद पर दो लोगों के प्रवेश की अनुमति होती है।
इसके अलावा मंदिर के गर्भ गृह में महाकाल की पूजा करने जाने वाले लोगों के लिए परिधान निर्धारित है। यहां औरतों को केवल साड़ी और पुरुषों को केवल धोती वस्त्र धारण करने के बाद हीं पूजा की अनुमति होती है।
कैसे पहुचें:
वायु मार्ग
यहाँ पहुंचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा इंदौर है।जो कि यहाँ से 53 किमी दूर है। यहाँ से दिल्ली, मुंबई, पुणे, जयपुर, हैदराबाद और भोपाल की नियमित उड़ानें हैं।
ट्रेन द्वारा
उज्जैन पहुंचने के लिए उज्जैन पश्चिम रेलवे जोन का एक रेलवे स्टेशन है। यहाँ से लगभग सभी बड़े शहरों के लिए ट्रेन उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग
यहाँ के लिए नियमित बस सेवाएं उज्जैन को इंदौर, भोपाल, रतलाम, ग्वालियर, मांडू, धार, कोटा और ओंकारेश्वर आदि से जोड़ती हैं।
Written By
Akanksha Sharma
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