दुनिया का सबसे ऊँचा कब्रिस्तान: माउंट एवरेस्ट

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Photo of दुनिया का सबसे ऊँचा कब्रिस्तान: माउंट एवरेस्ट by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

सन 1923 में अंग्रेजी पर्वतारोही जॉर्ज मलोरी ने माउंट एवरेस्ट फ़तेह करने की ठानी। इसके एक साल बाद सन 1924 में एवरेस्ट चढ़ते हुए मलोरी की मौत हो गयी। मलोरी की मौत के 75 साल तक ढूँढने वालों को उनकी लाश नहीं मिली। फिर आखिरकार 01 मई 1999 को बर्फ से 300 मीटर नीचे दबी उनकी लाश मिली, तो वो जमी हुई थी।

सन 1953 में सर एडमंड हिलेरी और तेंजिन शेरपा ने माउंट एवरेस्ट फ़तेह किया, जिसके बाद से आज तक करीब 4,000 लोग एवरेस्ट चढ़ चुके हैं।

समुद्रतल से लगभग 30,000 फ़ीट यानी 1,955 मीटर यानी 10 कि.मी. ऊँचे माउंट एवरेस्ट पर हर साल लगभग 800 पर्वतारोही चढ़ाई करते हैं। मगर जितने लोग चढ़ते हैं, उनमें से सब ज़िंदा वापिस नहीं लौट पाते।

मलोरी की मौत किस कारण से हुई, ये कह पाना काफी मुश्किल है। ठीक उसी तरह जैसे आज तक माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की कोशिश करने वाले 300 पर्वतारोहियों की मौत का कारण बता पाना मुश्किल है। वैज्ञानिक और चिकित्सा जगत के दिग्गज सिर्फ मौत के कारणों का अनुमान लगा सकते हैं। इतनी मौतें होने के बावजूद क्यों हर साल सैंकड़ों लोग माउंट एवरेस्ट चढ़ने की कोशिश करते हैं।

रास्ते में इतने लोगों की मौत क्यों हो जाती हैं ?

क्या इन मौतों के लिए सिर्फ माउंट एवरेस्ट ज़िम्मेदार है ?

अभी हाल ही में जिस तरह एवरेस्ट की चोटी पर जाम लगने की तस्वीरें सामने आयी थी, और इसके साथ जो 11 मौतों की बात सामने आई है उनसे एक बात तो साफ़ है, माउंट एवेरेस्ट दुनिया का सबसे ऊँचा कब्रिस्तान है, जहाँ मुर्दों की लाशें तक वापिस नहीं लायी जाती। वहीं बर्फ में दबकर एवरेस्ट में मिल जाती है।

क्या है माउंट एवरेस्ट

माउंट एवरेस्ट धरती का सबसे ऊँचा हिस्सा है। हिमालय पर्वत श्रंखला की और दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत चोटी है।

कहाँ है माउंट एवरेस्ट

हिमालय पर्वत श्रंखला भारत के अलावा नेपाल में भी फैली हुई है। माउंट एवरेस्ट नेपाल में है।

क्यों लोग माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना चाहते हैं

1. माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना लोगों की बकेट लिस्ट का हिस्सा होता है

दुनिया की सबसे ऊँची चोटी चढ़कर अगर ज़िंदा वापिस आ गए तो सुनाने के लिए दिलचस्प कहानी मिल जाती है और अपनी शेखी बघारने का मौका मिलता है। ये ईगो-टूरिज्म का ही एक हिस्सा है।

2. दुनिया की सबसे ऊँची चोटी होने के बाद भी यहाँ चढ़ना तकनीकी रूप से ज़्यादा मुश्किल नहीं है

पर्वतारोही माउंट एवरेस्ट को कोई मुश्किल चढ़ाई नहीं मानते। इससे ज़्यादा तकनीकी रूप से मुश्किल चढ़ाई तो दुनिया की 10वीं सबसे ऊँची चोटी कंचनजंगा की है, जहाँ सन 1950 से आज तक सिर्फ 130 लोगों ने चढ़ने की कोशिश की है, जिनमें से 53 की रास्ते में ही मौत हो गयी।

3. माउंट एवरेस्ट चढ़ने के लिए परमिट की ज़रुरत होती है, जो नेपाल सरकार काफी सस्ते में दे देती है

नेपाल दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है। पर्वतारोहण से होने वाली कमाई से यहाँ की अर्थव्यवस्था को सहारा मिलता है और यहाँ स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलता है। सिर्फ 11,000 डॉलर, यानी लगभग 8 लाख रुपए में नेपाल पर्यटन विभाग आपको चढ़ाई करने का परमिट दे देता है। चढ़ने वाले की फिटनेस की जाँच भी नहीं की जाती।

एवरेस्ट चढ़ने में इतनी मौतें क्यों होती हैं ?

सस्ता परमिट होने और फिटनेस की पुख्ता जाँच ना होने की वजह से कई लोग बिना अनुभव के भी एक्सपीडिशन कंपनियों को पैसा देकर एवरेस्ट चढ़ने निकल पड़ते हैं। रास्ते में सबसे ज़्यादा भीड़ ऐसे लोगों की वजह से ही होती है। इन्हें बेहद ऊँची चोटियाँ चढ़ने का ना अनुभव होता है, ना ही ट्रेनिंग; जिससे पहाड़ी दरारें और बर्फीली चट्टानें चढ़ने और पार करने में इन्हें सबसे ज़्यादा समय लगता है। फलस्वरूप इंतज़ार करने वालों की भीड़ लग जाती है और एवरेस्ट की चढ़ाई के रास्ते में जाम लग जाता है।

इंसानी शरीर ज़्यादा ऊँचाई झेलने के लिए नहीं बना होता

समुद्रतल से 8,000 फ़ीट की ऊँचाई से ज़्यादा जाते ही लोगों को सिरदर्द, उल्टी, चक्कर की शिकायत होने लगती है । एवरेस्ट का बेस कैम्प ही 17,000 फ़ीट ऊँचा है। इसके बाद अगर शिखर पर पहुँचने के लिए 13,000 फ़ीट और ऊपर खड़ी चढ़ाई करनी पड़ती है।

अभी हाल ही में जहाँ जाम लगा था वो 22,000 फ़ीट और 29,000 फ़ीट के बीच की जगह थी। इस जगह को 'डेथ ज़ोन' कहते हैं। इतनी ऊँचाई पर जाकर कोई पर्वतारोही नहीं रुकता क्योंकि यहाँ रुकने का मतलब है मौत।

इतनी ऊँचाई पर सिलेंडर में बची एक-एक मिनट की ऑक्सीजन बेशकीमती हो जाती है। सिलेंडर ख़त्म हो गया तो दिमाग में ऑक्सीजन की मात्रा बेहद कम होने से सोचने-समझने और निर्णय लेने की क्षमता जाती रहती है। अच्छा भला इंसान एक ही पल में चोटी से छलांग लगा सकता है। सेरेब्रल एडीमा से दिमाग में सूजन आ जाती है।

अगर कोई सुस्ताने के लिए बैठ भी जाए तो थकान और हाइपोथर्मिया से फिर नहीं उठ पाता ।

ऐसी कितनी ही लाशें हैं, जो आज तक एवरेस्ट की बर्फ में दबी पड़ी हैं।

माउंट एवरेस्ट को यूँ ही दुनिया का सबसे ऊँचा कब्रिस्तान नहीं कहते।

आपको माउंट एवरेस्ट के बारे में और क्या-क्या बातें पता है ? क्या आप भी कभी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करना चाहोगे ? अगर हाँ, तो कमेंट्स सेक्शन में लिख दो। हो सकता है आपको साथ चढ़ने वाला कोई भाई-बंधू मिल जाए।

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