माउंट एवरेस्ट 29,000 फ़ीट ऊँचा है और माउंट कैलाश 22,000 फ़ीट। सन 1953 में एडमंड हिलेरी और तेंजिन शेरपा के एवरेस्ट पर फ़तेह पाने के बाद आज तक लगभग 4,000 लोग एवरेस्ट जीत चुके।
मगर आज तक एक भी इंसान माउंट कैलाश के शिखर को नहीं छु सका।
ऐसी क्या ख़ास बात है कैलाश पर्वत में कि ऊँचाई में एवरेस्ट से छोटा होने के बाद भी इसे कोई फ़तेह नहीं कर पाया।
कैलाश पर्वत का रहस्य
कैलाश के बारे में जितने मुँह उतनी बातें। कई कहते है ये पहाड़ यहाँ था ही नहीं, इसे बनाया गया है। लोग ये भी कहते हैं कि ये पहाड़ खोखला है, इसके अंदर दूसरी दुनिया में जाने का रास्ता निकलता है।
सन 1999 में रूस के वैज्ञानिकों की टीम एक महीने तक माउंट कैलाश के नीचे रही और इसके आकार के बारे में शोध करती रही। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पहाड़ की तिकोने आकार की चोटी प्राकृतिक नहीं, बल्कि एक पिरामिड है जो बर्फ से ढका रहता है। माउंट कैलाश को "शिव पिरामिड" के नाम से भी जाना जाता है।
जो भी इस पहाड़ को चढ़ने निकला, या तो मारा गया, या बिना चढ़े वापिस लौट आया।
पूरी दुनिया ने कैलाश पर्वत को विश्व का आध्यात्मिक केंद्र माना है
हिन्दू धर्म में कैलाश पर्वत को शिव का गढ़ माना जाता है। कहते हैं पर्वत पर शिव और पार्वती विराजते हैं।
मगर इस रहस्यमयी पर्वत का नाम सिर्फ हिन्दू धर्म की किताबों में ही नहीं आता।
जैन धर्म के अनुयायियों का मानना है कि सबसे पहले तीर्थांकर ऋषभनाथ को कैलाश पर्वत पर तत्व ज्ञान प्राप्त हुआ था।
बौद्ध धर्म के अनुयायी भी मानते हैं कि महात्मा बुद्ध पहाड़ की चोटी पर रहते हैं।
तिब्बत के डाओ अनुयायी इस पर्वत को पूरी दुनिया का आध्यात्मिक केंद्र मानते हैं। डाओ धर्म तिब्बत में बौद्ध धर्म से काफी पहले से है।
ये कोई संयोग नहीं हो सकता कि एक ही पर्वत को चार धर्मों के केंद्र में रखा गया है। इन चारों धर्मों को मानने वाले लगभग डेढ़ अरब लोग कैलाश पर्वत की महिमा जानते हैं।
कैलाश पर्वत ने चीनी सरकार को धूल चटाई
सन् 1980 में चीनी सरकार ने इटली के पर्वतारोही रेनहोल्ड मेस्नर से कैलाश पर्वत फ़तेह करने की गुज़ारिश की। रेनहोल्ड ने कैलाश पर कदम भी रखने से मना कर दिया।
सन 2007 में रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव ने अपनी टीम के साथ माउंट कैलाश पर चढ़ने की कोशिश की। सर्गे ने अपना खुद का अनुभव बताते हुए कहा : 'कुछ दूर चढ़ने पर मेरी और पूरी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लगा। फिर हमारे पैरों ने जवाब दे दिया। मेरे जबड़े की मांसपेशियाँ खिंचने लगी, और जीभ जम गयी। मुँह से आवाज़ निकलना बंद हो गयी। चढ़ते हुए मुझे महसूस हुआ कि मैं इस पर्वत पर चढ़ने लायक नहीं हूँ। मैं फ़ौरन मुड़ कर उतरने लगा, तब जाकर मुझे आराम मिला। "
कर्नल विल्सन ने भी कैलाश चढ़ने की कोशिश की थी। बताते हैं : "जैसे ही मुझे शिखर तक पहुँचने का थोड़ा-बहुत रास्ता दिखता, कि बर्फ़बारी शुरू हो जाती। और हर बार मुझे बेस कैम्प लौटना पड़ता। "
चीनी सरकार ने फिर कुछ पर्वतारोहियों को कैलाश पर चढ़ने को कहा। मगर इस बार पूरी दुनिया ने चीन की इन हरकतों का इतना विरोध किया कि हार कर चीनी सरकार को इस पहाड़ पर चढ़ने से रोक लगानी पड़ी।
कहते हैं जो भी इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता है, वो आगे नहीं चढ़ पाता, उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है।
यहाँ की हवा में कुछ अलग बात है। आपके बाल और नाखून 2 दिन में ही इतने बढ़ जाते हैं, जितने 2 हफ्ते में बढ़ने चाहिए। शरीर मुरझाने लगता है। चेहरे पर बुढ़ापा दिखने लगता है।
कैलाश पर चढ़ना कोई खेल नहीं
29,000 फ़ीट ऊँचा होने के बाद भी एवरेस्ट पर चढ़ना तकनीकी रूप से आसान है। मगर कैलाश पर्वत पर चढ़ने का कोई रास्ता नहीं है। चारों ओर खड़ी चट्टानों और हिमखंडों से बने कैलाश पर्वत तक पहुँचने का कोई रास्ता ही नहीं है। ऐसी मुश्किल चट्टानें चढ़ने में बड़े-से-बड़ा पर्वतारोही भी घुटने तक दे।
हर साल लाखों लोग कैलाश पर्वत के चारों ओर परिक्रमा लगाने आते हैं। रास्ते में मानसरोवर झील के दर्शन भी करते हैं।
लेकिन एक बात आज तक रहस्य बनी हुई है। अगर ये पहाड़ इतना जाना जाता है तो आज तक इस पर कोई चढ़ाई क्यों नहीं कर पाया।