जिन्हें दिखाई तक नहीं देता, उन्होंने Mount Everest फतह कर दिखाया

Tripoto
2nd Jun 2021
Photo of जिन्हें दिखाई तक नहीं देता, उन्होंने Mount Everest फतह कर दिखाया by रोशन सास्तिक

किसी ने सही ही कहा है कि- हर वो चीज जिसकी कल्पना की जा सकती है, उसे आदमजात हकीकत में तब्दील करने का माद्दा रखता है। 46 वर्षीय चीनी नागरिक झांग होंग ने माउंट एवरेस्ट को फतह करने का कारनामा कर इस बात को एक बार फिर सही साबित कर दिखाया है। महज 21 साल की उम्र में ग्लूकोमा के चलते आंखों की रौशनी गंवा देने वाले झांग होंग दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाले एशिया के पहले और दुनिया के तीसरे दृष्टिहीन व्यक्ति बन गए हैं।

Photo of Mount Everest, Thoche, Nepal by रोशन सास्तिक

अपनी पहाड़ से ज्यादा मजबूत इच्छाशक्ति के दमपर माउंट एवरेस्ट फतह करने की उपलब्धि पर बात करते हुए झांग ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप विकलांग हैं या नॉर्मल... चाहें आपकी आंखों की रोशनी चली गई हो या आपके पैर या हाथ नहीं हैं... इस तरह की किसी भी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता... जब तक आपके पास एक मजबूत दिमाग है... दिमाग के दम पर हम हमेशा वो काम पूरा कर सकते हैं, जो दूसरे लोग नहीं कर सकते...

Photo of Mount Everest Base Camp, Everest Base Camp Trail, Khumjung, Nepal by रोशन सास्तिक

वैसे झांग होंग की सफलता तक का सफर ढेर सारे संघर्षों से शुरू होकर अनगिनत संघर्षों से भरा हुआ ही रहा है। किसी भी काम को करने की शुरुआत उस काम के लिए जरूरी प्रेरणा से होती है। और हमारे हीरो झांग होंग के अंदर दृष्टिहीन होकर भी माउंट एवरेस्ट को जीतने का इरादा अमेरिकी पर्वतारोही एरिक वेहेंमेयर को देखकर पैदा हुआ। दरअसल, एरिक वेहेंमेयर साल 2001 में माउंट एवरेस्ट फतह करने वाले दुनिया के पहले दृष्टिहीन पर्वतारोही थे। एक बार ठान लेने के बाद झांग होंग ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 24 मई को अपनी मंजिल माउंट एवरेस्ट से मुलाकात कर ही ली।

Photo of Mount Everest by रोशन सास्तिक

झांग के अनुसार उन्होंने अपने माउंटेन गाइड दोस्त कियांग ज़ी की गाइडेंस में ट्रेनिंग शुरू की थी। झांग ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि चढ़ाई के दौरान देख न पाने की कमी के चलते शुरुआत में बेहद डरे हुए थे। क्योंकि चलते वक्त उनके लिए इन बात का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल होता था कि आखिर वो चल कहां रहे हैं। उनके पैर एक जगह पर टिक नहीं पा रहे थे और इसीलिए कई बार वह चलते-चलते गिर भी जाते थे। लेकिन इन कठनाइयों के बावजूद उन्हें इस बात का एहसास था कि चढ़ाई का मतलब ही होता है कठनाइयों का सामना करना और खतरों का जोखिम उठाना।

झांग होंग की सफलता हम सभी को यह सीखा जाती है कि आसमान तक मे सुराख़ किया जा सकता है, बस तबियत से एक पत्थर उछालने की देर है।

- रोशन 'सास्तिक'

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