ये कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव और उसके रखवाले भूत की

Tripoto

उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में आता है एक छोटा सा गांव जिसका नाम है ज्योलिकोट। आप में से कम ही लोगों ने इसके बारे में सुना होगा,पर अगर आप ज्योलिकोट में सप्ताहांत में देखने की जगहें ढूंढे तो एक लंबी सी लिस्ट सामने आ जाएगी। इसमें फूलों की खेती और तितलियाँ पकड़ना सीखना जैसी अद्भुत गतिविधियाँ शामिल हैं।आम सैलानी इसे हल्के में ले सकते हैं पर मेरी तरह आप भी अगर नई चीज़े आज़माना पसंद करते हैं तो यहाँ ज़रूर आएँ।

Photo of ये कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव और उसके रखवाले भूत की 1/9 by Kabira Speaking

ज्योलिकोट, उत्तराखंड

समुद्रतल से 1219 मीटर की ऊँचाई में बसे इस गाँव में सैलानी पूरे साल ही आ सकते हैं। अक्सर नैनीताल, नौकुचियताल और भीमताल जैसे कस्बों में छुट्टियाँ मनाने वाले लोग ज्योलिकोट के रास्ते से ही जाते हैं। मगर इन सब सर्द जगहों की तुलना में ज्योलिकोट में तापमान ज्यादा ही रहता है। सर्दियों में भी यहाँ भीनी भीनी धुप हमेशा ही रहती है, इसलिए आप यहाँ छुट्टियाँ मानाने पूरे साल आ सकते हैं। मगर ज्योलिकोट आज भी जाना जाता है ब्रिटिश काल के अपने इतिहास के लिए। सबसे पहले यहाँ उन अंग्रेजी हुक्मरानों ने घर बसाये जिनको नैनीताल की ठंड से राहत चाहिए थी। इस कारण ये ठहरने का एक पसंदीदा पड़ाव बन गया। आज की तरीक में वो सभी घर होटल बन चुके हैं आज भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं

Photo of ये कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव और उसके रखवाले भूत की 2/9 by Kabira Speaking
संरक्षित किया गया अंग्रेज़ो के समय का एक कॉटेज अब HOTS हॉस्टल बन चुका है

कैसा था एक शताब्दी पहले ये छोटा सा गाँव?

1906 में सी. डब्लू .मर्फी द्वारा लिखी गई किताब गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊँ में पहली बार ज्योलिकोट का ज़िक्र हुआ। उस समय सीमित साधनों के कारण यह उन कुछ किताबों में से थी जिसमें काठगोदाम से नैनीताल के सफर में काम आने वाली सभी बातों के बारे में बताया था। आज भी आप इस किताब में उस समय के कूली और हाथगाड़ी का मूल्य लिखा देख सकते हैं। इस किताब के PDF के लिए यहाँ क्लिक करें.

Photo of ये कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव और उसके रखवाले भूत की 3/9 by Kabira Speaking

इस किताब में ज्योलिकोट स्तिथ दो बड़ी रियासतों के बारे में बात की है। एक है वर्गोमॉन्ट एस्टेट और दुसरा है डगलस डेल। दोनों ही एस्टेट्स में नैनीताल जाने वाले अंग्रेजी मेहमानों की खातिर के ख़ास इंतज़ाम थे। सभी काठगोदाम पहुँचने के बाद यहाँ पर थोड़ी देर रुक चाय-नाश्ता कर के ही आगे बढ़ते थे।

द कॉटेज ज्योलिकोट

Photo of ये कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव और उसके रखवाले भूत की 4/9 by Kabira Speaking
श्रेय: श्रेय: बुकिंग डॉट कॉम

वर्गोमॉन्ट एस्टेट में बनी द कॉटेज का नवीनीकरण 1994 में भुवन कुमारी नाम की एक महिला ने कराया। उनको ज्योलिकोट से ख़ास लगाव था। बचपन में अक्सर उनकी स्कूल की गाड़ी यहाँ पर रुका करती थी और वे यहाँ स्ट्रॉबेरी और शहतूत तोड़ने आते थे। आज के समय में जब अंग्रेज़ो के ज़माने के ज्यादातर घर खंडहर बन चुके हैं, ज्योलिकोट में वर्गोमॉन्ट एक ऐसी जगह है जो आज भी अपनी सुंदरता से यात्रियों को लुभाता है।

वर्गोमॉन्ट एस्टेट के आस-पास दो और बड़ी जागीरें है। एक है वॉरविक मैनशन जो ज्योलिकोट में बनने वाले पहले कुछ घरों में है और दूसरा घर है एक महिला का जो खुद को नेपोलियन का वंशज बताती हैं। इस महिला को एक स्थानीय लड़के से प्यार हो गया और उनसे शादी करके वो हमेशा के लिए भारत में ही बस गई।

Photo of ये कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव और उसके रखवाले भूत की 5/9 by Kabira Speaking

अब सुनिए ज्योलिकोट के रखवाले भूत की कहानी

कहानी शुरू करने से पहले ही आपको बता दूँ की ये बस गाँव वालों की कही-सुनी बातें हैं। इस कहानी का कोई ठोस प्रमाण तो नहीं हैं पर अगर आप ज्योलिकोट जाएँगें तो कोई ना कोई आपको इस विचित्र घटना के बारे में बता ही देगा।

Photo of ये कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव और उसके रखवाले भूत की 6/9 by Kabira Speaking
वॉरविक मैनशन

ये 19वी शताब्दी की बात है जब लेफ्टिनेंट कर्नल वॉर्विक नाम के एक अंग्रेजी अफसर ज्योलिकोट आए थे। उस समय में ज्योलिकोट एक छोटा सा गाँव था जहाँ पर नैनीताल जाते हुए अंग्रेजी अफसर और उनके घोड़े कुछ देर सुस्ताते थे।

यहाँ पर रुके वॉर्विक साहब को एक स्थानीय लड़की से प्यार हो गया और कर्नल साहब यहीं के होकर रह गए। उन्होंने गाँव की उस महिला से शादी रचाई और ज्योलिकोट में एक घर भी बनाया। शादी के कुछ सालों बाद वार्विक साहब की पत्नी का देहांत हो गया और 20 कमरों के इस घर में वो अकेले रहने लगे। ना नौकरों को अंदर आने की इजाज़त थी और गाँव वाले अगर पास से भी गुज़रते तो उनको धुत्कार कर भगा दिया जाता।

इस दौरान गाँव वालों ने यहाँ हो रही अजीबोगरीब गतिविधियों पर ध्यान दिया। हर रात अँधेरा होते ही उनको एक औरत दिखा करने लगी जो की घोड़े पर सवार होकर गाँव भर में घूमती थी। लोग घर के अंदर भी रहते तो उनको घोड़े के सरपट दौड़ने की आवाज़ आती। थोड़ी छानबीन के बाद पता चला की वो वॉर्विक साहब ही थे जो अपनी मृत पत्नी के कपड़े और गहने पहन कर रोज़ घोड़े पर सवार गाँव के चक्कर काटते।

Photo of ये कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव और उसके रखवाले भूत की 7/9 by Kabira Speaking

क्योंकि गाँव वालों को इस अंग्रेज़ अफसर से हमदर्दी थी इसलिए उन्होंने कर्नल वॉर्विक को कभी नहीं रोका। धीरे-धीरे लोग ये भी मानने लगे की घोड़े पर सवारऔरत के भेस में वॉर्विक रात को डाकुओं से गाँव वालों की रक्षा करता है और जंगली जानवरों से उनके खेतों को बचाता।

इस घटना के सालों बाद आज भी रातों को ज्योलिकोट में घोड़े की हिनहिनाने और सरपट दौड़ने की आवाज़ें आती हैं। लोग आज भी वॉर्विक को ज्योलिकोट का रखवाला भूत बुलाते हैं।

ज्योलिकोट में और क्या देखें?

Photo of ये कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव और उसके रखवाले भूत की 8/9 by Kabira Speaking

ज्योलिकोट में छुट्टियाँ बिताते समय आप आस-पास के पहाड़ी इलाकों में भी घूमने जा सकते हैं। यहाँ न सिर्फ अतुल्य नैसर्गिक सुंदरता है बल्कि जीव जन्तुओ की भी कमी नहीं है। ये एक छोटी सी लिस्ट है जो आपके काम आ सकती है।

1.अगर आप पक्षियों में रूचि रखतें हैं तो पंगोट जाएँ।

2. तालाबों की सैर करने आप भीमताल, नैनीताल, नौकुचियताल और सातल भी जा सकते हैं।

3. पैराग्लाइडिंग करने आप नौकुचियताल,घोड़ाखाल जा सकते हैं।

4. जोंस एस्टेट भीमताल में आप तितलियों के म्यूज़ियम भी जा सकते हैं।

5. हैराखान स्तिथ नदी के किनारे मंदिर में एक दिन बिताएँ।

6. ज्योलिकोट आने पर यहाँ पर मिलने वाली स्ट्रॉबेरी, शहद और कीवी लेना नाभूलें।

ज्योलिकोट में कहाँ रहें?

Photo of ये कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव और उसके रखवाले भूत की 9/9 by Kabira Speaking

अगर आपको पहाड़ों की शांत वादियाँ पसंद हैं और आस-पास के भीड़-भाड़ वाले इलाके जैसे नैनीताल और अल्मोड़ा से आप ऊब चुके हैं तो गजारि ग्राम स्तिथ ज्योलिकोट के हॉट्स हॉस्टल में कुछ दिन बिताएँ। इस होटल में रह कर आप हर शाम इस गाँव में घूम यहाँ के लोग और उनके जीवन से भी रूबरू हो सकते हैं। वॉर्विक हाउस, सनसेट पॉइंट और देवी मंदिर, सभी इस हॉस्टल से बहुत कम दूरी पर हैं। खाने पीने के लिए इस हॉस्टल में एक रेस्टोरेंट भी है।

Photo of ये कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव और उसके रखवाले भूत की by Kabira Speaking

हॉस्टल का किराया

किंग स्वीट, बालकनी के साथ: Rs 999/- प्रति रात

डॉरमेट्री बेड : Rs 399/- प्रति रात

कैसे पहुँचें ज्योलिकोट?

Photo of ये कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव और उसके रखवाले भूत की by Kabira Speaking

रोड मार्ग: दिल्ली के ISBT आनंद विहार से आपको नैनीताल या काठगोदाम जाने वाली बस मिल जाएँगी। काठगोदाम से आपको ज्योलिकोट के लिए छोटी गाड़ियाँ लेनी होंगी।

रेल मार्ग: सबसे नज़दीक रेलवे स्टेशन काठगोदाम में है जो की ज्योलिकोट से 20 कि.मी. दूर है। रेलवे स्टेशन के बाहर से ही आपको ज्योलिकोट जाने वाली गाड़ियाँ मिल जाएँगी।

हवाई मार्ग: 55 कि.मी. की दूरी पर पंतनगर हवाईअड्डा ज्योलिकोट से सबसे नज़दीक हवाईअड्डा है। सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को दिल्ली से पंतनगर की उड़ाने चलती हैं। पंतनगर से ज्योलिकोट के लिए आपको 600-1000रुपए में टैक्सी मिल सकती हैं।

क्या आप उत्तराखंड की उन जगहों में गए हैं जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं? कमैंट्स में हमको उन जगहों के बारे में बताएँ और अन्य यात्रियों की मदद करें.